Book Title: Agam Sagar Kosh Part 03
Author(s): Deepratnasagar, Dipratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम-सागर-कोषः (भागः-३)
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प्रश्न० ९२ परिग्रहः- धर्मोपकरणवर्जवस्तुस्वीकारः | परिघोलेमाणे- गमागमं कुर्वन्। औप०६१। धर्मोपकरणमूर्छा च। प्रज्ञा० ३३५। परिग्रहः
परिचत्तकामभोग-परित्यक्तकामभोगः-सर्वविरतः। स्वस्वामिभावेन मूर्छ। प्रज्ञा० ४३८ परिग्रहः-स्वीकारः। स्था० १२६| प्रश्न.४ प्रतिग्रहम्। आव० २६२ परिसमन्तात् गृह्यत | परिचत्तलोगवावार-परित्यक्तलोकव्यापारः, इति परिग्रहो-द्विपदचतुष्पदधनधान्य
मुनेर्लक्षणम्। आव० ४०० हिरण्यसुवर्णादिषु ममीकारः। सूत्र. १७७। परिसमन्ता | परिचय-परिचयः-हेवाकः। बृह. २०७ अ। गृह्यत इति परिग्रहः
परिचयसंस्तव-सम्बन्धिसंस्तवः। पिण्ड० १३९। धनधान्यद्विपदचतुष्पदादिसंग्रहः, आत्मात्मी-यग्रहो | परिचार- एकोनपञ्चाशततमकला। ज्ञाता० ३८१ वा। सूत्र० १९श परिग्रहः-संयमातिरिक्तमुपकर-णादिः। | परिचारग-परिचारकः-कामकः, यः परिचारणां-मैथुनाभिआचा० १३२ परिगृह्यते-स्वीक्रियत इति परिग्रहः। ष्वङ्गं करोति सा प्रश्न. ३०| स्था० २६। परिग्रहणं परिग्रहः-मूर्छा। स्था० २६। परिग्रहः | परिचित- दिट्ठी भट्ठो पुव्वज्झुसितो पुव्व एगगामणिवासी -धर्मसाधनव्यतिरेकेण धनधान्यादयः। स्था०४६। वा। निशी० १५५आ। स्थिरः। आचा. १९५० परिग्गहसण्णा-परिग्रहसंज्ञा-परिग्रहाभिलाषः
परिचितसूत्रता-उत्क्रमक्रमवाचनादिभिः स्थितसूत्रता। तीव्रलोभोदय-प्रभव आत्मपरिणामः। आव० ५८० उत्त० ३९ परिग्गहसन्ना- लोभोदयात्
परिचोइओ- परिचोदितः। आव. १९५ प्रधानभयकारणाभिष्वङ्गपूर्विका
परिच्चइत्तए- परित्यक्तम्। ज्ञाता० १३४१ सचित्तेतरद्रव्योपादक्रियैव परिग्रहसज्ञा। भग० ३१४।। परिच्चाग-विवेगकरणं। निशी. १७। परिग्रहसज्ञा-लोभविपाकोदयसमुत्थम परिणामरूपा। परिच्छा- तुलणा। निशी० २६४ अ। जीवा. १५
परिच्छाय-परिच्छेदः-आच्छादनंलोभोदयात्प्रधानसंसारकारणाभिष्वङ्गपूर्विका
कटकम्बादिभिरावरणम्। जम्बू० २०९। सचित्तेतरद्रव्योपादानक्रिया परिग्रहसज्ञा। प्रश्न परिच्छि-नैयत्ये व्यवस्थापितम्। आव० ५९१। રરરા
परिच्छी- प्रीतीच्छिकी। गच्छा। परिग्गहिया-परिग्रहो-धर्मोपकरणवर्जवस्तुस्वीकारः । परिच्छद- गणिः। नन्दी. १९३। धर्मोपक-रणमा स च प्रयोजनं यस्याः सा पारिग्रहिकी, | परिच्छय-परिच्छिकः-लघुः। औप०६३। परिच्छेकोलघः। सम्यग्दृष्ट दवितीया क्रिया। प्रज्ञा० ३३४| प्रगृहीता- ज्ञाता०२२१। अभिग्रहयुक्ता। बृह. २२४ । परिग्रहे भवा
परिजण-परिजनः-दासादिः। भग० ४८३। पारिग्रहिकी। स्था०४१। पारिग्राहिका-विंशतिक्रियामध्ये परिजनकथा-परिजनसम्बन्धकथा। प्रश्न. १३९। द्वितीया। आव०६१२
परिजवन-परिजल्पनं-परिजल्पः। निशी. १८४ अ। परिग्गाहिय-परिगृहीतः-स्वीकृतः। ओघ.१४० परिजविय-परैः-सार्धं भृशमुल्लापं कुर्वन्। आचा० ३८० परिघट्टयंत-परिघट्यमानः। उत्त० ३०३।
परिजाणामि-परिजानामि-आसेवनपरिज्ञानेन परिघट्टिया-परिघट्टिता-संस्पृष्टा। जीवा० १९३।
परिविदधेऽह-मित्यर्थः। आचा० २७१। परिघासियं- परिगुण्डितम्। आचा० ३२१।
परिजाणित-परियानं-देशान्तरगमनं तत्प्रयोजनं येषां परिघासेउं- परिघासयितुं-भोजयितुम्। आचा० २७२। तत् परियानिकं गमनप्रयोजनम्। स्था० ५१८। परिघित्तव्वा-परिग्राह्या भृत्यदासदास्यादि, परिजायकुसुम- परिजातकुसुमम्। प्रज्ञा० ३६१। ममत्वपरिगृहतः। आचा० १७९/
परिजितं-समन्ताज्जितं, परावर्तनम्। अन्यो० १५ परिघोलणं-परिघोलनं-विचारः। आव०४२६। नन्दी. परिजिय-परिचितः। स्था० ३४२।
| परिजुण्णा-परियुना दारिद्र्यात्। स्था० ४७४।
१६४१
मुनि दीपरत्नसागरजी रचित
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"आगम-सागर-कोषः" [३]

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