Book Title: Agam Sagar Kosh Part 03
Author(s): Deepratnasagar, Dipratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 171
________________ [Type text] आगम-सागर-कोषः (भागः-३) [Type text] पडिपुण्ण- प्रतिपूर्णः रूपं न पात्यते। अनयो० २४० दविधाऽपि प्रतिबोधवान जीवतीत्येवं-शीलःप्रतिपूर्णः। आव० ११०| सूत्रतो प्रतिबुद्धजीवो। उत्त० २१३॥ बिन्दुमात्रादिभिरनुनमर्थत-स्त्वध्याहाराकाङ्क्षादिरहितं | पडिबुद्धि- पटवत् प्रतिपूर्णम्। अनुयो० १५ प्रतिपूर्ण-अर्थ प्रतीतिजनकम्। | विशिष्टवक्तृवनस्पतिविसृष्टविविधप्रभृतसम. १६७। प्रतिपूर्ण-अपवर्गप्रापकै-घृणो तम्। आव० । सूत्रार्थपुष्पफलग्रहणसमर्थतया बुद्धिर्येषां ते। औप० २८१ ७६० प्रतिपूर्णं आत्मस्वरूपेणाविकलः। भग० १४९। पडिबुद्धी- प्रतिबुद्धिः-इक्ष्वाकराजः साकेतनिवासी। स्था० पडिपुण्णगल्लकपोल- परिपूर्णगल्लकपोलः। आव० २८८। | ४०१ पडिपुण्णघोष- प्रतिपूर्णघोष-उदात्तादिघोषैरविकलम्। पडिबोह- प्रतिबोधितानि-यौवनेन व्यक्तचेतनावन्ति अनुयो० १६ । कृतानि। ज्ञाता०४२ प्रतिबोधितं-यौवनेन व्यक्त पडिपुन्नं- परिपूर्ण अहोरात्रम्। स्था० २३७। प्रतिपूर्ण चेतनवन्तं कृतम्। ज्ञाता०४२ बाह्येन निषद्याद्वयेन युक्तम्। ओघ० २१४। प्रतिपूर्ण | पडिबोहग- प्रतिबोधकः सुप्तस्योत्थापकः। नन्दी. १७९| अपवर्गप्राप-कैर्गुणैर्भूतम् ज्ञाता० ४९, ५१| पडिबोहियल्लओ- प्रतिबोधितः। आव० ४०८ पडिपेल्लिया- विनाश्य। भक्त पडिभग्ग- प्रतिभग्नः। उन्निष्क्रान्तः। ओघ० १८० पडिपेहित्ता- प्रतिविधाय-पिठित्वा-स्थगित्वा। सूत्र. ३२४। प्रतिभग्नः। आव. २९८ प्रतिभग्नः। आव० ५२० पडिपोग्गले-स्थास्नोर्गतौ। निशी० २३७ अ। प्रतिभग्नः। उत्त० ९० पडिप्पहर- प्रतिप्रहारम्। आवव ५५७।। पडिभज्जंतो- प्रतिभग्नः। आव० ४०८1 पडिबंध- प्रतिबन्धः-अवरोधः। भग० १९| व्याघातः। भग० पडिभाग- प्रतिभागः-प्रतिबिम्बः। जम्बू. १४८। प्रति१०१। उपरोधः। भग० ११७, १२३, १३९, ७३८1 भागः- प्रतिबिम्बमादर्शादाविव विशिष्टःप्रतिबन्धः-स्नेहः। स्था० ४६५ प्रतिबन्धः-अयं ममा- प्रतिबिम्बवस्तुगत आकारः-प्रतिभागः। ३७२। स्याहमित्याशयबन्धरूपः। जम्बू. १४९| प्रतिबन्धः- प्रतिभागः-खण्डः। प्रज्ञा० २८३। अभिष्वङ्गः, परिग्रहस्य दवादशं नाम। प्रज्ञा० ९३। पडिभिण्णो- प्रतिभिन्नः। आव० ३८८, १६) प्रतिबन्धः। आव०४०१। प्रतिबन्धः-आसङ्गः। आव. पडिमंठाइ- प्रतिमास्थायी-प्रतिमया कायोत्सर्गेण ५३५ प्रतिबन्धः- रागः। पिण्ड०१४० भिक्षुप्रति-मया वा मासिकयादिकया तिष्ठति यः सः। पडिबद्ध- प्रतिबद्ध-व्याप्तम्। दशवै० ८६। प्रतिबद्धं-अन्बद्धं, प्रश्न. १०७ सदानुगतम्। जीवा० १३०| प्रतिबद्धं-सूत्रार्थग्रहणसक्तम्। पडिमंजूसा- प्रतिमञ्जूषा। आव०४०१| बृह. २४८ आ। प्रतिबद्धः। आव० ३५९। प्रतिबद्धः। उत्त. | पडिम- प्रतिमा। अन्त० २११ ३५८ प्रतिबद्धः। ओघ०९ पडिमठाती- प्रतिमास्थायी-भिक्षुप्रतिमाकारी। स्था० ३९७। पडिबद्धया- प्रतिबद्धता-गाढसम्बन्धः। भग०८८१ प्रतिमया-एकरात्रिक्यादिकया कायोत्सर्गविशेषेणैव पडिबद्धसरीर- प्रतिबद्धशरीरः- दृढावयवकायः-युवा। सूत्र. तिष्ठति। स्था० २९९। ३२५१ पडिमा- प्रतिमा-अभिग्रहविशेषरूपारेकादशा दर्शनादिः। पडिबद्धा- प्रतिबद्धा-युक्ता संश्लिष्टा। निशी० १०६) उत्त० ६१३। प्रतिमा-दर्शनादिगुणयुक्ताः । आव० ६४६। पडिबाहिर- प्रतिबाह्यं अनाधिकारणः। सम०५३। कालविशेषमानयुतदर्शनायभिग्रहधरणं कृष्णपाक्षिका प्रतिबाह्य-अनधिकारिणं दारेभ्योऽर्थागमदवारेभ्यो वा, क्रिया-वादिभिन्ना एकादशोपासकावस्था वा। उपा० दारान् राज्यं वा स्वयमधिष्ठायेत्यर्थः। सम० ५३ दशा० प्रतिमा नग्नता। बृह. २५३ आ। प्रतिमापडिबुद्धजीवी- प्रतिबुद्धं-प्रतिबोधः द्रव्यतो बिम्बलक्षणम्। आव० ५२४। प्रतिमा-कायोत्सर्गः। प्रश्न. जाग्रत्तोभावतस्तु यथावस्थितवस्तुतत्त्वावगमस्तेन १४३। प्रतिमा-प्रतिज्ञा। आव०६४६। प्रतिमा-श्रावस्य जीवितुं-प्राणान्धर्तुंशीलम-स्येति, प्रतिबुद्धो वा पञ्चमी प्रतिज्ञा। आव०६४६। गेहचेतियं। निशी०६९ मुनि दीपरत्नसागरजी रचित [171] "आगम-सागर-कोषः" [३]

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