Book Title: Agam Sagar Kosh Part 03
Author(s): Deepratnasagar, Dipratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 142
________________ [Type text] आगम-सागर-कोषः (भागः-३) [Type text] सम०४४॥ पञ्चमी। भग. ९२० निसीहऽभिहडे- निशीथाभ्याहृतं-अविदितदायकभावं यत्। | निसीहियाए-नैषेधिकी-निषीदनस्थानम्। राज०६४। पिण्ड. १०३। निशीथिका-द्वितीयमध्ययनम्। आचा. ४०७। निसीहिता-निषेधेन निर्वत्ता नैषधिकी निसीहियापरीसहे-सोपद्रवेतरा च स्वाध्यायभूमिः, व्यापारान्तरनिषेध-रूपा। स्था० ४९९। दवाविंश-तिपरीषहे दशमः। सम०४०। निसीहिय-नैषेधिकं-कायोत्सर्ग स्वाध्यायभूमि। सम० | निसीहियारए- निषीधिकारताः स्वाध्यायध्यायिनः। ३९। स्वाध्ययस्थानम्। स्था० ३१४। निषिध्यन्ते- | आचा० ३६९। निराक्रियन्ते अस्यां कर्माणीत नैषेधिकी-निर्वाणभूमिः। । निसुंभंति-भूमौ पातयन्ति। आव०६५०| कृकाटिकायां उत्त. ३२११ सकलकर्मनिराकरणलक्षणे भवा, गृहीत्वा भूमौ पातयन्ति। सूत्र० १२५।। मुक्तिगतिः, प्रतिमा। उत्त. ३२१। निषीधिका- निसुंभ-निशुम्भः-पुरुषसिंहवासुदेवशत्रुः। आव० १५९। स्वाध्यायभूमिः। आचा० ३६१। निसुंभा- वैरोचनेन्द्रस्य द्वितीयाऽग्रमहिषी। भग० ५०३। निसीहिया-निषेधः-स्वाध्यायव्यतिरेकेण ज्ञाता०२५१। सकलव्यापारप्र-तिषेधः तेन निवृता नैषेधिकी। व्यव० | निसेए-निषेकः-स्वस्याबाधाकालस्योपरि १२७ अ। निषेधेन ज्ञानावरणीयादि कर्मपुद्गलानां वेदनार्थमुपचयः। प्रज्ञा. स्वाध्यायव्यतिरिक्तशेषव्यापारप्रतिषेधेन निवृत्ता २९ नैषेधिकी। व्यव० १२७ आ। जत्थ सज्झायं करेति, | निसेक- निषेकः-कर्मपुद्गलानां प्रतिसमयमनुभवनार्थं सेज्जाए वा निसीहिएति। दशवै. ८५ नैषेधिकी- रचना। भग० २८० वसतिप्रवेशे निषि-द्धोऽहं गमनक्रियाया इति भणनम्। निसेज्जा-रयहरणस्योपरितनाः। ओघ० १११। जंमि बृह. २२२। नैषेधिकी। आव०६७२। निसण्णो अच्छइ। दशवै० ५१| निषीदन्त्यस्यामिति निषद्या स्थानम्। आव०६५७। निसेह-निषेधः। आव. २६६। बावीसपरीषहे दशमपरीषहः। आव०६५७। नैषेधिकी- निस्तूंशः-नृशंसः। उत्त०६५६) प्राणातिपातादिनिवृत्ता। आव. १४७। नैषेधिकी- निस्संकिय-निःशंकितः देशसर्वशङ्कारहितः। दशवै. निषीदनस्थानं, द्वारकुड्यसमीपे नितम्बः। जीवा० १०१। निर्गतं शङ्कित यस्मादसौ निःशङ्कितः ३६०। स्वाध्यायभूमिः। ज्ञाता० २०६। निषेधे भवा देशसर्वशङ्कारहितः। प्रज्ञा. ५६। नैषेधिकी-उपाश्रयाद्वहिः कर्तव्यव्यापारेष्ववसितेषु निस्संगो-निःसङ्गः-विषयजस्नेहसङ्गरहितः। आव० पुनस्त-त्रैव प्रविशतः साधोः ५९१ शेषसाधूनामुत्त्रासादिदोषपरिजिहीर्षया निस्संचरो-निस्सञ्चारः मनुष्यसञ्चारवर्जितः। आव. बहिर्व्यापारनिषेधेनोपाश्रयप्रवेशसूचनादिति। अनुयो. ६४१॥ १०३। स्वाध्यायभूमिः शून्यागारादिरूपा। भग० ३९० | निस्संतिया-तं अद्दहियणयं दव्वं अण्णत्थ निस्संदिऊण ग्रामादिषु प्रतिपन्नमासकल्पादेः स्वाध्यायादिनिमित्तं | तेण ताय णेऊ देह। दशवै ८० शय्यातो विविक्त-तरोपाश्रये गत्वा निषीदनम्। भग० | निस्संधिणा-निस्संधिः। मरण। ३९१। निषधेन निर्वत्ता नैषेधिकी दशधा सामाचार्या निस्संधी-निःसन्धिः निर्विवरः। प्रश्न. १६) पञ्चमी। आव० २५९| निषी-धिका। ओघ. १७४। निस्संस-नृशंसं शूकावर्जितम्। प्रश्न २७। निःशंसं वा नैषेधिकी स्वाध्याय-भमिः। दशवै. १८२। नैषेधिकी श्लाघारहितम्। निषेधनं निषेधः पापकर्मणां गमनादिक्रिया-याश्च स निस्स-दरिदो। निशी० १४१ अ। प्रयोजनमस्याः नैषेधिकीस्मशानादिका स्वाध्या- निस्सकयं-निश्राकृतं गच्छप्रतिबद्धम्। बृह. २७६ आ। यादिभूमिः निषद्या वा। उत्त० ८३। दशधासामाचार्या निस्सग्गरुई-निसर्गः स्वभावस्तेन रुचिः मुनि दीपरत्नसागरजी रचित [142] "आगम-सागर-कोषः" [३]

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