Book Title: Agam Sagar Kosh Part 03
Author(s): Deepratnasagar, Dipratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम-सागर-कोषः (भागः-३)
[Type text]
आ। प्रतिमा-अभि-ग्रहः भिक्षुप्रतिमा। स्था०४१६)
आ। वाचना। आव०३९७। प्रतिमा-श्रावकस्य पञ्चमी प्रतिज्ञा-अभिग्रहरूपा। सम० | पडियाए- प्रतिज्ञाय-उद्दिश्य। आचा० ३६११ १९। प्रतिमा-पिण्डै-षणा-द्यभिग्रहविशेषः। आचा० ३५८१ पडियाण- पटतानकं-पर्याणस्याधो यद्दीयते। ज्ञाता० २३० प्रतिमा-अभिग्रहचारी। व्यव० १३६ आ। प्रतिमा- पडियार- शरीरसंस्कारः। निशी. २६४ अ। भिक्षुप्रतिमा। व्यव० १४६ अ। प्रतिमा-अभिग्रहः। स्था० पडियारणा-आसेवना। आचा० ३६४| ५१११ प्रतिमा-प्रतिज्ञा। स्था० २११ प्रतिमा-प्रतिपत्तिः । पडियारी- प्रतिचारिणः-कायिकीमात्रकादिसमर्पका विश्राप्रतिज्ञा। स्था०६५। प्रतिमा-तथाविधाभिग्रहविशेषरूपा। मकाः। व्यव० १३१ । अनुयो० ५३१
पडिरूव- प्रतिरूपं द्रष्टारं द्रष्टारं प्रति रमणीयम्। सम० पडिमाणुसं- प्रतिमानुषम्। आव० ३४५।
१३८१ अस्यामवसर्पिण्यां चतुर्थक्लकरभार्या। सम. पडिमाणे- प्रतिमानम्। अनुयो० १५१।
१५०। प्रतिरूपः-उत्तरनिकाये द्वितीयो व्यन्तरेन्द्रः। पडिमापडिवण्णओ- प्रतिपन्नप्रतिमः। आव. ९५
भग० १५८१ सदृशम्। भग० ३१९। प्रतिरूपापडिमडिओ-णिसद्धो। निशी० ३२०आ।
चतुर्थकुलकरपत्नी। आव० ११२। प्रतिरूपः-उचितः। पडिमेल्लियपहिणीयया- पेरितशत्रवः। चतु।
दशवै० २४१। द्वितीयो भूतेन्द्र। स्था० ८५ प्रतिरूपःपडियंति- प्रतियान्ति। दशवै०४२।
रूपवान्। प्रश्न० ११६ प्रतिरूपः-साधचित्तस्वरूपः। पडियंसि-पतिते-प्रासादादेर्मञ्चके वा ग्लानभावात्। विपा० ३३। प्रतिरूपः-रूपवान्। औप०११। प्रतिरूपः ज्ञाता०११५
भूतेन्दः। जीवा. १७४। प्रतिरूपं-प्रतिवि-शिष्ट पडिय- वाहनात्पतितः। ज्ञाता० १९३। पतितं-प्रासादशिख- असाधारणं रूपं आकारो यस्य सः। जम्बू.७५ प्रतिरूपं रादेः कलशादिरिवाधो निपतितम्। प्रश्न. १३४| पतितं- उचितम्। उत्त० ५००। प्रतिरूपं-प्रतिबिम्बम्। सूत्र. ४०७। भ्रष्टम्। प्रश्न. १२४१
प्रतिरूपं-प्रतिविशिष्टं। रूपं यस्य तत्। प्रज्ञा० ८७। जा पडियगविठ- प्रत्यगन्तव्यम्। व्यव० ३६९ अ।
वत्थु वत्थु पडुच्च अणुरूवो पउंजइ सो। दशवें. १३०| पडियपुयत्थणी-पतितप्तस्तनी
प्रतिक्षणं नवं नवं रूपं यस्य तद प्रतिरूपम्। प्रज्ञा० ८७। अवनतिगतनितम्बदेशव-क्षोजा। ज्ञाता० २४८।
प्रतिरूपः-उचितः। व्यव० १९ । पडियरंति- प्रतिजागरणं-निरूपणं कुर्वन्ति। ओघ. १०२२ | पडिरूवकायकिरिया- प्रतिरूपकायक्रिया-यथा परिपाट्या पडियरइ- प्रतिचरति-प्रतिजागरणं करोति। ओघ० २०७। शरीरविश्रामणम्। व्यव. २२ अ। पडिक्खति। निशी० १२३ अ।
पडिरूवग- प्रतिरूपकं-प्रतिबिम्बम्। राज०९। प्रतिरूपकंपडियरग- प्रतिचारकः-परिपालकः। पिण्ड०७०
सदृशम्। उपा० ८प्रतिरूपकम्। आव. २९९। प्रतिरूपकंपडियरगा- अवराहा। निशी. ९८ आ। परिण्णीअणस- सदृशम्। आव०८२३।
णोवदिट्ठो, तस्स जे वेयाच्चकारिणो ते पडियरगा। | पडिरूवजोगजुजण- प्रतिरूपयोगयोजनंनिशी० ८६अ।
उपचारविनयभेदः। दशरू. २४१। पडियरणा- प्रतिचरणा-आगमनम्। ओघ. ३३ प्रतिप्रति- | पडिरुवन्न-प्रतिरूपविनयो-यथोचितप्रतिपत्तिरूपस्तं तेष्वर्थेष चरणं गमनं तेन तेन आसेवनाप्रकारेणेति- जाना-तीति प्रतिरूपज्ञः। उत्त० ५०० प्रति-चरणा, प्रतिक्रमणद्वितीयपर्यायः। आव० ५५२। पडिरुवया- प्रतिः-सादृश्ये ततः प्रतीति प्रतिचरणा-आगमनम्। ओघ० ३३।
स्थविरकल्पिकादि-सदृशं रूप-वेशो यस्य स तथा पडियरावितो- प्रतिचारितः। आव. २२७।
तद्भावस्तत्ता-अधिकोपक-रण-परिहाररूपा। उत्त० ५८१ पडियरिए- निरूविए। ओघ. १६१|
पडिरूवा- प्रतिविशिष्ट-असाधारणं रूपं यस्याः सा पडियरिओ- प्रतिचरितः। आव. २९८१
प्रतिरूपा, प्रतिक्षणं नवं नवमिव रूपं यस्याः सा। जम्ब० पडिया-थिग्गलयं। निशी० १२५आ। प्रतिज्ञा। निशी. ५० | र्थकलकरभार्या। स्था० ३९८ प्रतिरूपा-द्रष्टारं
मुनि दीपरत्नसागरजी रचित
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"आगम-सागर-कोषः" [३]

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