Book Title: Agam Sagar Kosh Part 03
Author(s): Deepratnasagar, Dipratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 214
________________ [Type text] आगम-सागर-कोषः (भागः-३) [Type text] पलोएति- गृह्णति। निशी. १९ आ। सञ्जातपरिपूर्ण-प्रथमपत्रभावरूपः। जीवा० २२९। पलोक्कइ-प्रलोक्यते-प्रकर्षेण निश्चीयते। भग. २४९। पल्लवग-पर्ययपरिमाणं-अभिधेयादि तद्धर्मसङ्ख्यानं पलीट्टइ-प्रलोटति-परिवर्तते। भग०१०। प्रलोट्यते। यथा 'परित्ता तसा', पर्ययशब्दस्य 'पल्लव'त्ति निर्देशः, आव०६२११ प्राकृत-त्वात् पर्यङ्कः- पल्यङ्कः इत्यादिवदिति, अथवा पलोठेति-विप्रतारयति। बृह. ८९ आ। पल्लवा इव पल्लवाः - अवयवास्तत्परिमाणम्। सम. पलोयए- प्रलोकयेत्-पर्यालोचयेत्। आचा०४२९। ११३ पलोयणा- रसवतीए पलिं विसित्ताओ अणाति पलोइउं पल्लवग्राहिणी- पल्लवमात्रग्राहि। बृह० ५८ आ। भणाति इतो इतो य पयत्थाहित्ति एस पलोयणा। पल्लवप्रविभक्तिकं-विंशतितमनाट्यभेदः। जम्बू. ४१७ निशी. १८५आ। पल्लावाकुर- प्रवालः। प्रज्ञा० ३१| पल्लंक-पल्यकः। आव० ५७८॥ पल्लि- ग्रामः। बृह० ७२ अ। गामो। निशी० ११५ पल्लंघणं- प्रकृष्टं लङ्घनं-प्रलिङ्घनम्। भग० ९२५। पल्ली-सन्निवेशः। आव० ५७८ पल्यन्तेऽनया पौनः-पन्येनातिक्रमणं प्रलङ्घनम्। औप०४२। दुष्कृतिवि-धायिनो जना इति, वृक्षगहनाद्याश्रितः प्रलङ्घनम्। प्रज्ञा०६०६। प्रलङ्घनं अर्गलादेः। स्था० प्रान्तजननिवासः। उत्त०६०५ ४०९। प्रलङ्घनं-सामा-न्येन गमनम्। उत्त० ५११| पल्लीण- प्रलीनः-पश्चात् प्रकर्षेण लीनः। भग. ९२४॥ पल्ल-पल्यं-वंशकटकादिकृतो धान्याधारविशेषः। स्था० पल्लोट्ट- प्रवृत्त-उत्पन्नः। ज्ञाता० २६| १२४| पल्यः-वंशादिमयो धान्याधारविशेषः। भग० २७४ | | पल्लोवम-पल्योपम-शीर्षपहेलीकैव गणितस्य पल्यो-धान्याश्रयविशेषः। जम्बू० ९५| पल्यम्। अनुयो० | विषयोऽतः पर-मौपमिकं कालपरिमाणम्। जीवा० ३४५ १८०| पोट्टं। निशी. १४७ आ। पल्यं-वंशकटका-दिकृतो | पल्हत्थ-पर्यस्तं-अधोमुखतया न्यस्तम्। भग० १८० धान्याधारः। बृह. १६८ आ। स्थापितः। आव०७०३ पल्लक-पल्लकः-लाटदेशे धान्याधारविशेषः। नन्दी. | पल्हत्थमुह- पर्यस्तं-अधोमुखतया न्यस्तं मुखम्। भग० १८० पल्लग-पल्यङ्कः-लाटदेशप्रसिद्धो वंशदलेन निर्मापितो | पल्हत्थिय-पर्यस्तितं-पर्यस्तीकृतं सर्वतः निक्षिप्तम्। धान्याधारकोष्टकः। जम्बु. ३००| पल्लकः-लाटदेशे ज्ञाता० २१९। भग० १९०| पर्यस्तम्। दशवै०४४। धान्यालयः। आव०४१। पल्हत्थिया-पर्यस्तिका। योगपटः। ब्रह. २५३ आ। पल्लच्छिज्जति- प्रस्तीर्यते-प्रच्छादयति। आव० ६२३ । पर्यस्तिका जानजङ्घोपरिवस्त्रवेष्टनाऽऽत्मिका। उत्त. पल्लट- पर्वतशिखराद् गण्डशैल इव स्वाश्रयाच्चलितम्। प्रश्न.१३४१ पल्हव-म्लेच्छविशेषः। प्रज्ञा० ५५ पल्लत्थ- पर्यस्तं-निवेशितम्। विपा०४९। पल्हवदेशज-पल्हविकः। ज० १९११ पल्लत्थिया-पर्यास्तिका प्रसिद्धा। उत्त०८1 पल्हवि- प्रल्हत्तिः। स्था० २३४। प्रल्हत्तिःपल्लय-पल्लकः-लाटदेशे धान्यधामः। आव० ७५१ दुष्प्रतिलेखित-दुष्यपञ्चके प्रथमो भेदः। आव०६५२ पल्ललं-पल्वलं-नड्वलम्। प्रश्न. १४| पल्वलं-प्रहलादन- | पल्हविण-पल्हविकः-देशविशेषः। ज्ञाता०४१। शीलः। भग० २३८१ पल्हाओ-क्रोधादिपरितापोपशमात् प्रह्लादितःपल्ललए-पल्वलं-आखातं सरांसि। प्रज्ञा०७२। आपन्नसुखः। आचा० १५०| पल्लव-कोमलं पत्रम्। प्रश्न. ९२। किशलयम्। ज्ञाता० पल्हायणभाव-प्रहलादनभावः३६| पल्वलः-प्रहलादनशीलः। ज्ञाता०६३| पल्लव:- चित्तप्रसत्तिरूपोऽभिप्रायः। उत्त० ५८४ जातपूर्ण-प्रथमपत्रभावरूपः। जम्बू० ३२४। पल्लवः- | पल्होट्ठ- पल्हढं-एकान्तेन विस्मृतम्। व्यव० ७७ आ। अशः । सम०६१। शाखाभङ्गः। आचा० ३४५। पल्वः- | पवंच- प्रपञ्चः ८ ५४१ मुनि दीपरत्नसागरजी रचित [214] "आगम-सागर-कोषः" [३]

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