Book Title: Agam Sagar Kosh Part 03
Author(s): Deepratnasagar, Dipratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
View full book text
________________
[Type text]
आगम-सागर-कोषः (भागः-३)
[Type text]
ओघ० २१
विष्णुशङ्ख। प्रश्न० ८८ शङ्खविशेषः। प्रश्न० ७७ पाग-पाकः-एतन्नामा इन्द्रस्य बलवान् रिप्ः। भग० शङ्खविशेषः। सम० १५७ १७४| पाको नाम बलवान्। उपा०२६। पाकः-बलवान् पाटल-वृक्षविशेषः। जीवा. १९१। रिपुः। प्रज्ञा० १०१।
पाटला-पुष्पजातिविशेषः। ज्ञाता० २३१| पागइय- प्राकृतिकः-प्रकृतीनां मध्ये यः। ओघ. १२० पाटलिपुत्र-नगरम्। भग० ३२ वसतिदृष्टान्ते नगरम्। पागट्ठी-प्राकर्षी-प्रकर्षको अग्रगामी। ज्ञाता०६३।
अनुयो० २२५५ पागड- प्राकृतः-अनतिशायी। सूर्य. २७४। प्रगटः-जगत् | पाटलिपुर-मरुण्डराजराजधानी। नन्दी. १६२ प्रतीतः। जम्बू०१८४१ प्रकटः। मरण।
पाटलीपुत्र-नगरम्। उत्त०७९) पागडभाव-प्रकटभावः-निर्मायता। प्रश्न. १५८।
पाटीगणितं- गणितविशेषः। स्था०४९७। पागडा-चरणमालिका-संस्थानविशेषकतं पादाभरणम। पाठ-संमूर्छिमतरुजीवः। आचा० ५७। जम्बू० १०६।
पाठक-सूत्रधरः पृच्छति प्रश्नयति सूत्रादिव्याकरोति ब्रूते पागत-प्राकृतः। आव० १९२|
तदेवेति। स्था० १९७५ पागतितो-छिराते हरंतो, राउलवग्गस्स अवकंतितो पाठान्तर- वाचनाभेदः। जम्बू० ८७
पागयज-णस्स हरंति उ पागतितो। निशी. ३८ आ। पाठीण- पाठीनः-मत्स्यविशेषः। प्रश्न पागय-प्राकृतः-अनतिशायी। जीवा. ३३६। प्राकृतं-भोज- | पाडंतिय- प्रतिश्रुतिकं-दवितीयोऽभिनयविधिः। जीवा.
नम्। ओघ०७२। प्रकृतिषु भवः-प्राकृतः। आव० २३९।। २४७ पागसासण-पाको नाम बलवान रिपुः स शिष्यते- पाडग-घरपंती। वाडग। निशी. १८७ अ। निराक्रियते येन सः पाकशासनः इन्द्रः। प्रज्ञा० १०१। पाडणा-यैरुपायैरखण्ड एव गर्भः पतति सा पातना। पाको नाम बल-वान् रिपुस्तं यः शास्ति निराकरोत्यसौ विपा०४२ स पाकशासनः-इन्द्रः। भग० १७४| पाकः-बलवान् रिपः | पाडल-चतुर्दशतीर्थकरचैत्यवृक्षः। सम० १५२| स शिष्यते-निराक्रियते येन सः पाकशासनः इन्द्रः। । पुष्पविशेषः। दशवै० १७४। जीवा० ३८८१
पाडलय-पाटलः-कथाकथकस्तालाचारः। उत्त. १३४। पागसासणि-पाकशासनी-इन्द्रजालसंज्ञिका विद्या। सूत्र० | पाडलसंड-पाटलखण्डः, सिद्धार्थराजधानी। विपा०७४। ३१९|
पाडला- गच्छाविशेषः। प्रज्ञा० ३२। पाटला गौविशेषः। पागार-प्राकारः-वप्प्रः। भग०२३७ प्राकारः, शालः। प्रज्ञा. आव०८८५ ८६। प्राकारः। जीवा० २५८, २६९। प्राकारः-वप्रः। ज० | पाडलावासि-वनस्पतिविशेषः। भग०८०३। १०६। प्राकारः-शालः। प्रश्न०८ प्रकर्षेण मर्यादया च । पाडलिपुत्त- पाटलिपुत्रं, क्षितिप्रतिष्ठितस्य षष्ठं नाम। कुर्वन्ति तमिति प्राकारः धूलीष्टकादिविरचितः। उत्त. उत्त. १०५। पाटलिपुत्र दक्षिणापथे नगरम्। दशवै० ४४। ३११| ज्ञाता०९९
पाटलिव-क्षोत्पत्तिस्थानम्। भग०६५३| पागारछाया- प्राकारछाया। सूर्य ९५।
चन्द्रगुप्तनृपतेर्नगरी। निशी० १०२ अ। पाटलिपुत्रपागारजढं- प्राकारजढं प्राकाररहितम्। आव. २३४| योगसंग्रहेऽनिश्चितोपधानदृष्टान्ते नगरम्। आव० पागारसंठिय- प्राकारसंस्थितः। सूर्य. १३०
६६८। पाटलिपुत्र-वैनयिकीबुद्धिदृष्टान्ते ग्रन्थिविषये पागारा- प्राकारा। आचा० ३३७
मुरुण्डराजधानी। आव० ४२४। पाटलिप्त्रं-आचारोदाहरणे पाजावच्चे-प्राजापत्यः स्थावरकायविशेषः। स्था० २९२। नगरम्। आव०७०७। पाटलिपत्रं-प्रशंसा-विषये नगरम्। पाज्जिए- प्रार्जिका-प्रार्थिका मातृमातुः पितृमातुर्वा माता। आव० ८१७। पाटलिपुत्र-गुणोदाहरणे नग-रम्। आव० दशवै०२१६।
८१९। अशोकचन्द्रराजधानी। बृह० ४७ अ। पाञ्चजन्य- वासुदेवस्य शङ्खः। उत्त० ३५०
अशोकनृपस्य नगरम्। निशी० ४४ आ| निशी. २४३ अ।
ग
मुनि दीपरत्नसागरजी रचित
[225]
"आगम-सागर-कोषः" [३]

Page Navigation
1 ... 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272