Book Title: Agam Sagar Kosh Part 01
Author(s): Deepratnasagar, Dipratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 21
________________ [Type text] आगम-सागर-कोषः (भागः-१) [Type text] अगडेसु-अवटेषु, कूपेषु। प्रज्ञा० ७२।। अनभिलाषविषयभूताम्। भग० ६७२। अगडो-कूपः। निशी० ४३ अ। अवटः, कूपः। प्रज्ञा० २६७। | अगारं-अगैः कृतं गृहम्। निशी. १४० अ। गेहम्। प्रश्न. अगणि-अग्निः, इन्धनस्य प्लोषक्रियाविशिष्टरूपस्तथा | गृहम्। आव० ३२९। अगारः, गृहस्थः । आव० ३२९| विदयुदुल्काशनिसङ्घर्षसमुत्थितः अगार-अगारम्, गृहम्। दशवै०६२। सूर्यमणिसंसृतादिरूपश्च। आचा०४९। आव० ६२१। अयः अगारविय-अगारस्थितभाषा-गृहस्थभाषा। व्यव० ५४| पिण्डानुगतः। दशवै. २२८१ दशवै० १५४। अग्निभयात्- अगारधम्म-अगारधर्मम्, गृहाचारं गार्हस्थ्यम्। उत्त. प्रदीपनभयात्। ओघ०११८५ ५७८१ अगणिज्झामिय-अग्निध्यामितम्, वह्निना ध्यामितं, | अगारबंधणं- गृहपाशं पुत्रकलत्रधनधान्यादिरूपम्। श्यामी-कृतम्। भग० २१३। आचा०४२९। अगणि-झूसिए-सेवितः, क्षपितः। भग०६८३। गारत्थेहि-अगारस्थेभ्यः, अनमतिवर्जसर्वोत्तमदेशविरअगणिज्यूसिय-अग्निना शोषितं, पूर्वस्वभावक्षपणात्, तिप्राप्तेभ्यः। उत्त० २५० अग्नि-नना सेवितां वा। भग० २१३। अगारा-अगाराः, गृहिणः। स्था० ५३ अगणिपरिणामिय-अग्निपरिणामितम्, अगाराओ- गृहवासात्। जम्बू० १४५) सजाताग्निपरिणामम्। भग० २१३। अगारिसामाइयङ्गाई-अगारिणो-गृहिणः सामायिकंअगणी- अग्निः । ओघ० १५६। चतुर्दशशतके सम्य-क्त्वश्रुतदेशविरतिरूपं तस्याङ्गानिपञ्चमोद्देशकः। भग०६३०| निःशकताकालाध्ययना-णव्रतादिरूपाणि अगतं- नकुलाज्जादि। निशी. ७६अ। अगारिसामायिकाङ्गानि। उत्त० २५१। अगतो-अगदः, औषधिः। आव०८३५ अगारी-अगारी, क्षत्रियादिकः। सूत्र० १४३। गृही, अगत्थिओ- वृक्षविशेषः। अनुत्त० ५। असंयतः। स्था० १८१। जम्बू० १४५१ अगत्थिगुम्मा-अगस्त्यगुल्माः। जम्बू० ९८१ अगालिणो-अगारिणः। बृह. २८२ अ। अगत्थी-अगस्तिः , ग्रहविशेषः। जम्बू० ५३५। स्था० ७९| | अगाहा-अगाधा, अपरिमितजला। आव० ८१९। अगदो- अणेगदव्वेहि। निशी० १८ आ। प्रायोगंभी-रम्। दशवै० २२० अगमा-वृक्षाः। बृह. १८३आ। निशी० १५२ आ, १८३ | | अगिण्हियव्वं-अग्रहीतव्यम्, अनुपादेयं, हेयम्। दशवै. अगमेत्त- ज्ञात्वा, आज्ञापयेदात्मानमनासेवनयेति। ८० आचा० २१९ अगिला- अग्लानिः। नि०१७ आ। अग्लानः-उचितकअगम्मगामी-अगम्यगामी, भगिन्यायभिगन्ता। र्तव्यसहिष्णः। आचा. २८१। प्रश्न०३६। अगिलाए- अग्लान्या, अखिन्नतया बहुमानेनेत्यर्थः। अगर-अगुरुः दारुविशेषः। प्रश्न. १६२। स्था० २९९ अगरला-सुविभक्ताक्षरता। औप० ७८। अगिलायउ- अग्लान्यैव, शरीरश्रममविचिन्त्यैव। उत्त. अगरिहिअं-अगर्हणीयम्, सामायिकनवमपर्यायः। आव. ५३६| ४७४। अगीयत्थं-अपरीणामग, अतिपरिणामगाय। निशी. ४५ अगलदत्तो-अगडदत्तः। उत्त० २१५ आ। अगहणे-अग्रहणे-अकरणे। ओघ० १४९। अगीयत्थत्त-अगीतार्थत्वम्। आव. ५२ अगा-वृक्षाः। निशी. १४०। अगीयत्थो-जेण आवस्सगादीयाण अत्थो ण स्तो। अगामितं- अगामिक, अकामिक-अनभिलषणीय। स्था. निशी० २५॥ ३१४) अगुण- अगुण, अविद्यमानगुणः। दशवै० २६३। अगामियं-अगामिकां, अकामिकां वा | अगुणगुणे- वक्रता। आचा० ८६। मुनि दीपरत्नसागरजी रचित [21] “आगम-सागर-कोषः” [१]

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