Book Title: Agam Sagar Kosh Part 01
Author(s): Deepratnasagar, Dipratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम-सागर-कोषः (भागः-१)
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आलुयं- आलुकम्, कन्दविशेषः। अनुत्त० ६। त्रयोविंश- | आलोएज्जा-आलोचनं-गुरुनिवेदनम्। स्था० १३७। तितमशतकाद्योद्देशकः। भग०८०४१ आर्द्रकम्। भग. आलोएत्तो-आलोयणा। व्यव० १०८ अ। ८०४१
आलोको-आलोक्यत इति आलोकःआलेखः-विचित्रम्। जीवा० १९९
स्थानदिगादिनिरूपणम्। ओघ. १८१। आलेवणं- आलेपनम्। आव० ६२३। आचा० ३२
अतिस्निग्धदीपशिखादिदर्शनम्। उत्त०६३१। सावकाश आलेहो-आलेखः, चित्रम्। जम्बू. ३२१
मुक्त्वाऽभ्यन्तरे स्वपन्ति। ओघ. १०७। आलोक्यन्ते आलो-आलं, अशक्यक्रियम्। आव. ९४।
दिशोऽस्मिन् स्थितैरिति। उत्त०४५११ आलोअं-अवलोकः, नि!हकादिरूपः। दशवै० १६६। बहिः- | आलोग-आलोकम्, सौरप्रकाशम्। जम्बू० २२९| चोपप्रस्थानभाविनि शकुनानुकूल्यालोकेन। जम्बू. २६३। लपादी। दशवै०७६ समो भूभागः। ओघ. १९३। सौरप्रकाशम्। प्रज्ञा० ५०००
आलोकनमालोको यावद्दृष्टिप्रसरः। ओघ० २३। आ(अव)लोअचलं-आ(अव)लोकचलम्, अवलोकनमा- | आलोचयति- गणयति प्रेक्षते च। आव० ५३६। लोकस्तस्मिंश्चलं, दर्शनलालसम्। आव० ७८४१ आलोयं-आलोकम्। ओघ० ८४ दृष्टिपथम्। औप०६९। आलोअणं-आलोकनम्, निरूपणम्। ओघ. ५२। अण्णेसिं | स्थानदिक्प्रकाशादिसप्तधाssलोकम्। बृह. १४६ आ।
आख्यानं। निशी० ३३४ अ। आलोक्यन्ते दिशो-ऽस्मिन् प्रकाशः। आव० ६४२। आलोकस्थानं-गवाक्षादिकं। स्थितैरिति। उत्त० ४५१। आलोचनम्-गुरुनिवेदनम्। आचा० ३४१। स्था. १३७। प्रायश्चित्तभेदः। स्था० २००
आलोयणं-आलोचनम्, यथागृहीतभक्तपाननिवेदनम्। आलोअणा-आलोचना, आभिमुख्येन गुरोरात्मदोषप्रका- प्रश्न. १११। आलोचना, प्रयोजनतो शनम्। आव०४६९।
हस्तशताबहिर्गमनागमनादौ ग्रोर्विकटना, आलोअभायणं-आलोकभाजनम्, मक्षिकाद्यपोहाय मिथ्यादुष्कृतं च। आव०७६४। एकादशी गुर्वाशातना। प्रकाशप्र-धानं भाजनम्। दशवै. १८०
आव० ७२५। गुरोः पुरतो वचसा प्रकटीकरणम्। व्यव० आलोइज्ज-आलोचयेत्-प्रकाशयेत्। उत्त० ५४४
१४ अ। स्था० २००। अलवणं। व्यव० ३३५अ। सकृत् आलोइज्जा-आलोकयेत्-पश्येत्-ब्रुयात्। आचा० ३२८१ अनेकशः प्रलोकनम्। निशी० २२२१ अवलोकयेत्। आचा० ३९६|
आलोयणा-आलोचना, आङिति-सकलदोषाभिव्याप्त्याआलोइता-आलोकिता, ईषदष्टा। उत्त० ४२५
लोचना-आत्मदोषाणां गुरुपुरतः प्रकाशना। उत्त० ५७९। समन्तादृष्टा। उत्त० ४२५
आलोचना। ओघ. २२७ योगसङ्ग्रहे प्रथमो योगः। आलोइत्तए-आलोचयित्म,
आव० ६६३। परस्स पागडं करेइ। निशी० ८५ अ। व्यव. गुरवेऽपराधान्निवेदयितुमिति। स्था० ५६।
१०७ आ। आलोइयं-आलोकितं-प्रत्यपेक्षितं। आचा० ४२८। | आलोयणाणुलोम-आलोचनानुलोम्यम्, पूर्व लघवः आलोइयपडिक्कंते-आलोचितप्रतिक्रान्तः, आलोचितं आलो-च्यन्ते पश्चाद् गुरवः। आव० ७८१। गुरूणां यदतिचारजातं तत्प्रतिक्रान्तम्
आलोयणारिह-आलोचना-निवेदना तल्लक्षणां शुद्धिं अकरणविषयीकृतं येनाथ
यदर्हत्यतिचारजातं तदालोचनाहम्। भग० ९२०। वाऽऽलोचितश्चासावालोचनादानात्प्रतिक्रान्तश्च आलोयभायणं-आलोकभाजनम्, प्रकाशम्खे भाजने, मिथ्याद्-ष्कृतदानादालोचितप्रतिक्रान्तः। भग० १२८१ अथवा आलोके-प्रकाशे नान्धकारे आलोए-आलोकः, दर्शनम्। भग० ३१८ दर्शनं, दृश्य- पिपीलिकावालादीनामनुप-लम्भात्, तथा भाजने-पात्रे, मानता। जीवा० ३९१। आलोचयेत्-दत्तावधानो भवेत्। पात्रं विना जलादिसम्पतित-सत्त्वादर्शनादिति। प्रश्न. आचा० ३४२। चक्षुर्दर्शनपथे। ओघ. १८३
११२ आलोएइ-आलोचयति। आव०७२५१
आलोविअ-अलोपिकः। दशवै०४४।
मुनि दीपरत्नसागरजी रचित
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“आगम-सागर-कोषः" [१]

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