Book Title: Agam Sagar Kosh Part 01
Author(s): Deepratnasagar, Dipratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम-सागर-कोषः (भागः-१)
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३१
अज्झथिए-अध्यात्मिकः, अभ्यर्थितः। विपा० ३८१ प्रस्तावादा-त्मनः, निरुक्तविधिना। उत्त०६)
अध्यात्मिकः-आत्माश्रितः। भग० ४६३। आध्यात्मिकः- निरुक्तविधिनाऽर्थनिर्देश-परत्वाद्वाऽस्य क्रियास्थानविशेषः। सम० २५१
अयतेरेतेर्वाऽधिपूर्वस्य। उत्त०७। नाम। सूर्य. ९, १४६। अज्झत्थिओ- आध्यात्मिकः, आत्मविषयः, सकल्प- आव० ७१५) अध्यात्मानयनाच्चेतसो विशुद्ध्यापादनात् विशेषः। जीवा. २४२
। दशवै. १३८। अनेन करणभूतेन सार्बोधसंयअज्झत्थियं-अध्यवसितं, सङ्कल्पम्। आव०६६९। ममोक्षान्। प्रत्यधिकं गच्छति यस्मादेवं आध्यात्मिक-अन्तःकरणोद्भवम्। सूत्र० ३११|
तस्मादध्ययनम्। दशवै० २६। अध्यात्मानयनं, अज्झत्थीओ- अध्यात्मस्थः। आव० ३४९।
अधिगम्यते परिच्छिदयन्ते वा अर्था अज्झत्थेव-अध्यात्मन्येव, ब्रह्मचर्ये व्ववस्थितः। अनेनेत्यधिगमनमेव प्राकृतशैल्या तथाविधार्थप्रदर्शआचा० २०८१
कत्वाच्चास्य वचसोऽध्ययनमिति, अधिकं अज्झत्थो-आध्यात्मिकः, आत्मन्यध्यध्यात्म-तत्रभवः नयनमधिकन-यनं चाध्ययनम्। दशवै०१६) दण्डविशेषः। सूत्र. ३०६।
अध्यात्मानयनं-अध्ययनश्रु-तनाम। दशवै०१६) अज्झप्पं-अध्यात्म, सद्भावनारूढं चित्तमेव। प्रश्न शास्त्रम्। दशवै० २८४। १३४ आध्यात्मिकं, आत्मन्यधीत्यध्यात्म तत्र भवम्। अज्झल-म्लेच्छविशेषः। प्रज्ञा० ५५ आन्तर-शक्तिजनितं सात्त्विकं। सूत्र. १६७। अज्झवसाए-अध्यवसायः, सूक्ष्मो मनःपरिणामसमुत्थः। आत्मानमधिकृत्यात्मा-लम्बनम्। प्रश्न. १२८। मनः। आचा०६८ सूक्ष्म आत्मनः परिणामविशेषः। आचा. सूत्र०६५। अधि आत्मनि वर्तत इति अध्यात्मध्यानम्। आव०७७४। रूढितो मनः। उत्त०७। आत्मनि। | अज्झवसाणं-अध्यवसानं, अन्तःकरणप्रवृत्तिः। सूत्र उत्त० ६१८। चेतः। आव० ५२५। धर्मध्यानादिकम्। सूत्रः | ३४०| मनोविशेषः। औप. ९९। जीवा० १३० २६९। मनः। आचा० २१९| आत्मनि। उत्त०४६५ मनः अन्तःकरणसव्य-पेक्षम्। आव०१८४१ उत्त०५९१
रागस्नेहभयभेदानि अध्यवसानानि। आव २७२ अज्झप्पजोग- अध्यात्मयोगः। (महाप्र०)
अध्यवसायाः। प्रज्ञा० ५४३। श्रवणविधिक्रिअज्झप्पजोगसाहणजुत्ते-अध्यात्मयोगसाधनयुक्तः, याप्रयत्नविशेषरूपम्। औप०६० मन एकाग्रतालम्बनम् अध्या-त्म-मनस्तस्य योगा-व्यापारा
| आव० ५८३। रागस्नेहभयात्मकोऽध्यवसायः। स्था० धर्मध्यानादयस्तेषां साधनानि एकाग्रतादीनि तैर्युक्तः। ४०० उत्त०५९१।
अज्झवसाणावरणिज्जाणं-भावचारित्रावरणीयानि। भग. अज्झप्पज्झाणं-अध्यात्मध्यानं, अमकोऽहं अमककुले
४३३ अम-गसिस्से अमुगधम्मट्ठाणठिइए न य
अज्झवसाणेहि-अध्यवसानैः, मनःपरिणामैः। जम्ब० तव्विराहणेत्यादिरूपम्। प्रश्न. १२८१
२७९ अज्झप्परए-अध्यात्मरतः, प्रशस्तध्यानासक्तः। दशवै. | अज्झवसिए- अध्यवसितम्, २६७।
परिभोगक्रियासंपादनविषयम्। भग० ८९। अध्यवसानम् अज्झप्पसंवुडे- अध्यात्मसंवृतः, स्त्रीभोगादत्तमनाः , प्रयत्नविशेषः। भग०८९। सूत्रार्थोप-युक्तनिरुद्धमनोयोगः। आचा० २१९। अज्झवसियं-अध्यवसितं, क्रियासंपादनविषयम्। औप० अज्झप्पे-अध्यात्मनि, आन्तरम्। सूत्र. २३०
६० अज्झयणं-अध्ययनम्। विशिष्टार्थध्वनिसन्दर्भरूपम्। अज्झाइतं- अधीतम्। आव० ३४७ जीवा०४। स्था०६। पाठः। आव०७३२ सज्झाओ। अज्झाय-अध्यायः भग० ४। कबुद्धीनां मनःपीडानां वा दशवै० १२५। स्वस्वभावे आनीयतेऽनेनेति आनयनं । आयः। भग० ४। पाठः। उत्त०७१३। शास्त्रोऽशविशेषः।
मुनि दीपरत्नसागरजी रचित
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“आगम-सागर-कोषः" [१]

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