Book Title: Agam Sagar Kosh Part 01
Author(s): Deepratnasagar, Dipratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम-सागर-कोषः (भागः-१)
[Type text]
अनिरुद्ध-अनिरुद्धः, अन्तकृद्दशानां
उद्देशनिर्देशनिर्गमादिदवार-कलापात्मको वा। सम. चतुर्थवर्गस्याष्टमाध्य-यनम्। अन्त०१४॥
११५। अनुगमनम्, अनुपातः। उत्त० ६३१| अनिरुद्धो- अनिरुद्धः, कृष्णवासुदेवापत्यनाम। प्रश्न०७३। | अनुगामि-यन्मोक्षाय अनुगच्छति। व्यव० ३१८ अ। अनिर्विष्टं-न दत्तफलम्। बृह० ५०आ।
अनुगामिकता-परम्परया शुभानुबन्धसुखम्। जीवा० अनिव्वुइ-अनिवृतिः, अस्वास्थ्यनिबद्धना कायादिचेष्टा ર૪રા. | आव०४९९।
अनुगुणं-अनुकूलमन्लोमं च। जीवा० ३। अनिलः- अनिलनरेन्द्रः यवराजर्षिपिता। बृह. १९० आ। अनुग्गहे-अनुग्रहकृत्स्नं, यत् षण्णां मासानामारोपितं अनिलसुओ-अनिलसुतः यवराजा। बृह. १९१ ।। षट् दिवसा गतास्तदनन्तरमन्यत् षण्मासान् अनिल्लंछिएहि-अवर्द्धितकैः। भग० ३७२।
आपन्नस्ततो यत् अव्यूढं तत्समस्तं झोषितं पश्चात् अनिवृत्तिकरण-सम्यक्वप्राप्तौ करणविशेषः। स्था० यदन्यत् पाण्मासिकमापन्नं तदवहति। व्यव० ११८ ३१ अनिवृत्तिकरणं, न निवर्तनशीलम्। आव०७५ आ। अनिवृत्तिबादरः-दर्शनसप्तकलोभोपशमयोरन्तरम्। अनुज्ञा-विधिः। आव० ७१३॥ आव० ८२
अनुज्ञातभक्तादिभोजनम्अनिव्वाणि-अनिर्वाणिः-असुखम्। व्यव० ६२। खेदः अदत्तादानविरमणचतुर्थभावना। प्रश्न० १२८१ (गणि)
अनुज्ञातसंस्तारकग्रहणम्अनिव्वुइकरो-अनिवृतिकरः,
अदत्तादानविरमणद्वितीयभावना। प्रश्न० १२७। अस्वास्थ्यनिबद्धनकायादिचे-ष्टाकरः। आव० ४९९। अनुज्ञापनाय-अनुमत्यै। आव० ५४२। अनिव्वुडं-अचित्तभोजी त्रिदण्डोवृत्तभोजी। दशवै. अनुतटभेदः- वंशवत् तटभेदः। स्था० ४७५)
अनुत्संकलितम्-अवितीर्णम्। आचा० ३६। अनिश्रितवचनता- रागाद्यकलुषितवचनता। उत्त० ३९। | अनुदिशं- उपाध्यायप्रवर्तिनीलक्षणम्। व्यव० २०० अ। अणिप्फण्णायावणा- अनिष्पन्नातापना-आतापनाया । अदिक्। व्यव० १९६ आ। व्यव० २०४ आ। भेदः। औप०४०१
अनुद्धातकृत्सन-कालगुरु निरन्तरं वा। व्यव० ११८ आ। अनिसाइ-अनिशादी। सम०२०
अनुद्धरिः- कुन्थुविशेषः, त्रीन्द्रियजीवभेदः। उत्त० ६१५) अनिसीहं-अनिशीथम, निशीथादविपरीतम्। उत्त. २०४। | चलन्नेव कुन्थः स विभाव्यते। स्था० ४३० बद्धश्रुतम्। आव०४६४१
अनुनादि- वाण्यतिशयविशेषः। सम०६३। अनिहुआ-त्रिदण्डिनः। बृह० २३५ आ। कन्दर्पबहुला | अनुपथ-मार्गमध्यः। अचा० २६५। मायिनश्च। बृह. १९५आ।
अनुपरतम्- उत्सन्नं, बाहुल्येन। आव० ५९०। अनिहो- अनिहः-अमायः, न निहन्यत इति वा परीषहै- अनुपरिहारकाः- पारिहारकवैयावृत्त्यकराः। स्था० ३२४॥ रपीडितः, अस्निहः-स्नेहरूपबन्धनरहितः। सूत्र०४००१ | अनुपयाएइ-अनप्रवाचयति अन्-परिपाट्या प्रकर्षण अनीहडं-अनिर्गतम्। आचा० ३२५।
विशिष्टार्थावगमरूपेण वाचयति। जीवा० २५४ अनीहारिमे-अनिर्दारितम्। अटव्यादिकृतमनशनम्। अनुप्रास-अलङ्कारविशेषः। जम्बू. १४३। भग० १२०| गिरिकन्दरादौ अनशनम्। स्था० ९४। भग. अनुप्रेक्षितम्-ध्यातम्। स्था० १७३। ६२५१
अनुभवसज्ञाअनु- पश्चात्। आव० २४२। सातत्यम्। उत्त० ६२७। स्वकृतासातवेदनीयादिकर्मविपाकोदयसमत्था। जीवा. अनुकूलं-अनुगुणं, अनुलोमं च। जीवा० ३।
१५ अनुगमः सूत्रस्य न्यासानुकूलः परिच्छेदः। स्था० ४। अनुमतं- कामम्। आव० ५२७ संहितादिव्याख्यानप्रकाररूपः,
अनुमान-साधनधर्ममात्रात् साध्यमात्रनिर्णयात्मकम्।
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मुनि दीपरत्नसागरजी रचित
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“आगम-सागर-कोषः" [१]

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