Book Title: Agam Sagar Kosh Part 01
Author(s): Deepratnasagar, Dipratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

View full book text
Previous | Next

Page 186
________________ (Type text] आगम-सागर-कोषः (भागः-१) [Type text] उत्तासणयं- उत्त्रासनिका-स्मरणेनाप्युवेगजनिका। | उत्थिय-उत्थियः-यूथिकः। भग० ३२४१ भग. १७५ उत्थुमण-अवस्तोभनम्, अनिष्टोपशान्तये निष्ठीवनेन उत्तासिया-उत्तासिता-आस्फालिता। भग. १५४ थुथुकरणम्। बृह. २१५। उत्तिंग-उत्तिङ्गः-पिपीलिकासन्तानकः। आचा० २८५१ | उत्पला- हस्तिनागपुरे भीमस्य भार्या। स्था० ५०७) तृणाग्रः। आचा० ३२२१ रन्ध्रम्। आचा० ३९७। उदगं उत्पलिनीकन्द-पद्मिनीकन्दः। प्रज्ञा० ३७। हत्थादिणा पिहेति। निशी. ६३ आ। किटिकानगरम्। उत्पातनिपातप्रसक्तसंकुचितप्रसारितरेक्करचितधान्तस दशवै०१७५। सर्पच्छत्रादिः। दशवै. २२९। म्धान्तः- एकत्रिंशत्तमो नाट्यविधिः। जीवा० २४७। गर्दभाकृतिजीव-विशेषः, कीटिकानगरं वा। आव० ५७३। | उत्पादपूर्व- प्रथमपूर्वनाम। उत्त० ३४२।। कीलियावासो। निशी० २५५ आ। कीडयणगरगो उत्पादसभा-उत्पादभवनविमानभाविनी सभा। प्रश्न उत्तिंगो, फरुगद्दभो वा। निशी० ८३ अ। १३५ कीटिकानगरम्। बृह. १६६ आ। छिद्र। निशी०६३आ। | उत्पादिताच्छिन्नकौतूहलं-स्वविषये श्रोतृणां कीडियानगरयं। दशवे. ८० जनितमविच्छिन्न कौतुकं येन तत्तथा। षडविंशतितमो उत्तिंगसुहुम- उतिङ्गसूक्ष्म-कीटिकानगरम्। दशवै. वचनातिशयः। सम०६३। २३० उत्प्रास्यमान-उन्नतमाना-गर्वाध्मातो महता उत्तिण्णो-उत्तीर्णः-अवतीर्णः। ओघ. २० चारित्रमोहेन मुह्यति संसारमोहेन वोह्यत इति। आचा० उत्तिन्न-अवतीर्णः। दशवै. १९५५ २१६। उत्तिमं-उतमम् श्रेष्ठम्। आव० ४८७। उत्प्लुत-भीतः। ज्ञाता० १६१। उत्तिमट्ठो- उत्तमार्थः-अनशनम्। बृह. १०० अ। उत्प्लृत्य-वृद्ध्यागत्वा। सूर्य०४७। उत्तमार्थः-कालधर्मः। आव०६२६। भक्तप्रत्याख्यानम्। उत्सकलय-अनुजानीहि। ओघ०६८1 आव० ५६३ उत्सर्पण- क्रियाविशेषः। आचा० ३६४१ उत्ती-उक्तिः , शब्दकरणम्। आव०४६४। उत्साहः-सूत्रार्थपरावर्तनायामभियोगः। बृह. ११३ आ। उत्तुअणा- उत्तेजना। बृह० ७२ आ। उत्सित्कं- काजिकस्य सौवीरिणीतो यद निष्काशनं उत्तुइउ- (देशी०) गर्वे। व्यव० २१० आ। तत्। बृह० २७५। उत्तुइया- उत्तेजिता। बृह. २७ आ। उत्सूर-वेलातिक्रमः। पिण्ड०७१। उत्तुडियाइ-राज्यादि। आव० ५५५। उत्सृ(च्छ)तम्-प्रासादादि। आव० ८२६) उत्तुपियं-उत्तुपितं-स्नेहितम्। प्रश्न. ५९। उत्सृष्टम्- उत्सर्जनम्-त्यागः। आचा० ३६२। उत्तेड-बिन्दुः। पिण्ड० १० उत्सेधबहुलं-उत्सेधाख्यो नाभेरधस्तनो देहभागो उत्तेत्ता-अपवर्त्य। आव० ६२४। गृह्यते, ततः सह आदिना-नाभेरधस्तनभागेन उत्थरंत-आस्तृण्वन्-आच्छादयन्। प्रश्न०४७। यथोक्तप्रमाणपलक्षणेन वर्तत इति सादि, उत्थरमाणो-अभिभवन्। आव० १६७ उत्सेधबहलमिति भावः। जीवा० ४२ उत्थल- उन्नतानि-स्थलानि धूल्युच्छ्रयरूपाणि। जम्बू. | उदंक- उदको येनोदकमुदच्यते। जम्बू. १०१। जीवा० १६८1 રા उत्थल्लं-ओघ. १९२ उदंचनम्-अरघट्टघटीनिवहादिभिरुत्सेचनम्। उत्त. उत्था- उत्थानं-मूलोत्पत्तिम्। उत्त०४७५॥ ५९९। पिण्ड० १५३ उत्थाण-अतिसारः। व्यव० २७४ अ। उदंत-सरीरवट्टमाणी, वत्ता। निशी. १३३ अ। उदन्तःउत्थिए- यूथं-सङ्घान्तरं, तीर्थान्तरमित्यर्थः। उपा०१३ | वृत्तान्तः। आव०६१२ उत्थितवादः- उत्थितस्तद्वादः। आचा० २०३। उदंतवाहगो-उदन्तवाहकः, वृत्तान्तवाहकः। आव०५३६। मुनि दीपरत्नसागरजी रचित [186] “आगम-सागर-कोषः" [१]

Loading...

Page Navigation
1 ... 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238