Book Title: Agam Sagar Kosh Part 01
Author(s): Deepratnasagar, Dipratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 60
________________ (Type text] आगम-सागर-कोषः (भागः-१) [Type text] ४७ अ(दुयबंधणं-अन्दुकबन्धनम्। सूत्र० ३२८१ अद्दा-आर्द्रानामनक्षत्रम्। स्था० ७७। अदुवं- अथवा। उत्त० ११० अदाए- आदर्शः। निशी० ३८७ अ। अदुव-अथवा। भग० १३० अदाओ-आदर्शः। आव. २९८, ४१६] अदुवा- अथवा, अदागं- आर्द्रकं। ओघ. १७२। दर्पणः। ब्रह. १३६ आ। पक्षान्तरोपन्यासद्वारेणाभ्युच्चयोपदर्शनार्थः। आचा. आदर्शः। स्था० २४३, सम. १२४१ ओघ १४८। अद्दागो-आदर्शः। स्था० ५१२ अयालियं-उन्मिश्रितम्। उत्त० १४६। अद्दाणक्खत्ते-आर्द्रानक्षत्रम्। सूर्य. १३० अदूर- प्रत्यासन्नम्। आव. २३२१ अद्दामलगमेत्तं-आर्द्रामलकमात्र। आव० ८५७। अदूरसामंते-अदूरसामन्तम्, नातिदूरे नातिनिकटे। सूर्य | अदायं-आदर्शः। आव०६५ अद्दाय-आदर्शः। प्रज्ञा० २९३। अदेसकालप्पलावी-जहा भायणं पडिक्कमियं अद्दारिद्वे-आर्द्रारिष्ठः, कोमलकाकः। जम्बू. ३२१ अट्टकरणपिसे कयं लेवितं, रूढ ततो पमाणतं भग्गं ताहे | अद्दिज्जमाणेहि-आद्रैःसो अदेसकालप्प-लावी मए पुव्वं चेव णायं एयं पुत्रकलत्राद्यनुषङ्गजनितस्नेहादाी-क्रियमाणैः। आचा० भज्जिहिति। निशी० ८०आ। अदेशकालप्रलाती, अतीते २१२ कार्ये यो वक्ति-यदिदं तत्र देशे काले वाऽकरिष्यत् ततः | अद्दी-अर्दिः, याञ्चा। प्रश्न. ९३। सुन्दरमभविष्यदिति। उत्त० ३४७। अद्दीण-अद्रीणः, अश्रुमिनः। प्रश्न० १०१। अद्द-आर्द्रम, सरसम्। प्रज्ञा० ९१। सूत्रकृताङ्गस्य अद्दीणमाणसे-अदीनमनसा। आचा० ४२४। षष्ठमध्य-यनम्। उत्त०६१६। आव०६५८१ अद्दीणा-अदीनाः, कथं वयमम्त्र भविष्याम इति गुच्छविशेषः। प्रज्ञा० ३२ वैकलव्य-रहिताः परिषहोपसर्गादिसम्भवे वा न अद्दइज्ज-आर्द्रकीयम्, सूत्रकृताङ्गस्य षष्ठमध्ययनम्। | दैन्यभाजः। उत्त० २८२। सूत्र. २८५। सूत्रकृतागाध्ययननामविशेषः। सम०४२ अद्धं-अर्द्धम्। सूत्र०१६ अद्दए-आर्द्रकम्, अनन्तकायभेदः। भग० ३००। अदंसं-उत्तरासङ्गः। बृह. २५४ अ। निशी. १९१ अ। अद्दकुमारिज्जं-आर्द्रककुमारीयम् (महाध्ययनम्)। स्था० | अद्ध-अद्धाकालः३८७ चन्द्रसूर्यादिक्रियाविशिष्टोऽर्द्धतृतीयद्वीप-समुद्रानार्वर्ती अद्दक्खु-अद्राक्षुः, दृष्टवन्तः। भग० २१९। समयादिलक्षणः। आव० २७७। कालो। निशी० ३३७ अ। अद्दण्णो-पीडितः। आव० ७००। अधृतिमापन्नः, कातरः। । अर्द्धम, भागमात्रा। भग० २०८ तिर्यग्व-लितम्। जम्बू आव०८००। अधृतिमुपगतः। आव०४१६। अधृतिमापन्नः। दशवै० ४८१ अक्षणिकः। बृह० ४६ अ। अधृति- अद्धकविद्वगसंठाणसंठिते-अर्द्धकपित्थसंस्थानसंस्थितम मुपगतः। आव. १९० चन्द्रविमानस्वरूपम्। सूर्य. २६२। अद्द(ड)न-माषविशेषनामः। व्यव० ३५७ अ। अद्धकवित्थसंठाणसंठियं-अर्द्धकपित्थसंस्थानसंस्थितम् अद्दन्ना-आकुलीभूताः। बृह० २९० आ। उत्तानीकृतमर्द्धकपित्थं तस्येव यत्स्थानं तेन संस्थितम् अद्दपुरं- आर्द्रपुरं, आईकराजधानी। सूत्र० ३८५। | जीवा० ३७८१ अद्दया- आर्द्रका, हरिद्रा। उत०२१८। अद्धकायसमाणा-आलोककव्यन्तरादिकार्यार्धप्रमाण। अद्दवदवं-आर्द्रवद्रवम्, निगालितम्। आव० ८५४। जम्बू० १७ अद्दसुतो-आर्द्रसुतः, आर्द्रकराजकमारः। सूत्र० ३८५। अद्धखल्लया- पादार्धाच्छादकं चर्म। ब्रह. २२२ आ। अद्दहिज्जति-आद्रहति। निशी० ३१७ अ। अद्धखल्ला-अद्धं जाव खल्लया जीए उवाणहा। निशी. अद्दहिया-आद्रहणम्। आव०८५४। १३६ आ। १२॥ मुनि दीपरत्नसागरजी रचित [60] “आगम-सागर-कोषः” [१]

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