Book Title: Agam Sagar Kosh Part 01
Author(s): Deepratnasagar, Dipratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 47
________________ [Type text] आगम-सागर-कोषः (भागः-१) [Type text] २५७। उत्त० ३९३| अणुनवनं- अनुज्ञातम्। ओघ० १६०| अणुत्तर-अनुत्तरम्, वृद्धिरहितम्। आचा० १४१ अणुनाओ-अनुज्ञातः। ओघ० २१५॥ अणुत्तरणवासो-अनुत्तरणपाशः, आत्मनः | अणुनास-सानुनासिकं नासिकाकृतस्वरम्। स्था० ३९६। पारतन्त्र्यहेतुतया पाशवत्पाशः, अन्त्तरणश्चासौ अणुन्नया- अनुन्नया-नोर्ध्वमुखा। व्यव० २३७ आ। पाशश्च। उत्त० ४३। अनुत्तरणवासः न विद्यते अणुन्नवणा-अनुज्ञापना, वन्दनके द्वितीयं स्थानम्। उत्तरणं-पारगमनमस्मिन् सती-त्यनुत्तरणः, स चासौ | आव. ५४८ वासश्च-अवस्थानम्। उत्त०४३। अणुन्नविय-अनुज्ञापितः। आचा० ४२६| अणुत्तरनाणी-केवलज्ञानवान्। उत्त० २७० अनुज्ञाप्ययाचित्वा। आचा० ३३८१ अणुत्तरधरे-न विद्यते उत्तरमन्यत्प्रधानमेषामिति। अणुन्नवेमाणउत्त० ३५७ तत्स्वजनादींस्तत्परिष्ठापनायानुज्ञापयन्तः। स्था० अणुत्तरधरो-अनुत्तरधरः, न विद्यते उत्तरं ३५४३ अन्यत्प्रधानमेषा-मित्यनुत्तराः, ते च | अणुन्ना- अनुज्ञा, अनुमोदनम्। सूत्र० ३२९। प्रकमात्प्रकर्षप्राप्ता ज्ञानादय एव गुणा-स्तान् सूत्रार्थयोरन्यप्रदानम्। व्यव० २६ अ। अधिकारदानं। धारयतीति। अनुत्तरान् गुणान् धारयतीति वा। उत्त. स्था० १३९। अणुन्नायं- अनुज्ञातम्, भोग्यतयैव वितीर्णम्। प्रश्न. अणुत्तरविमाणे-नैषामन्यान्युत्तराणि विमानानि सन्ति | १०२ इति अनुत्तरविमानानि। अन्यो० ९२ अणुपभु-जुवराया, सेणावति। निशी. १७४ आ। अणुत्तरे-स्थित्यादिभिः सकलनरकज्येष्ठेऽप्रतिष्ठान सेनाधिपतिः। बृह. ९०आ। इति। उत्त० ३९२ अणुपरियन्ति-अनुपरियन्ति, सातत्येन पर्यटन्ति। अणुत्तरो-अनुत्तरः-न विद्यन्ते उत्तरा:-प्रधानाः उत्त० २९६ स्थितिप्र-भावसुखयुतिलेश्यादिभिरेभ्योऽन्ये देवाः। | अणुपरिवट्टइ- अनुपरिवर्तयते, आत्मनश्चावयते। सूर्य उत्त० ७०२१ १०७ अणुत्तरो- अनुत्तरः, कृष्णवासुदेवागमनम्। आव० १६३। | अणुपरिवट्टिय- अनुपरिवर्त्य, प्रादक्षिण्येन परिभ्रम्य। अचल ? विजयभद्र २ बलदेवत्रयागमनम्। आव० १६३ | जीवा० ३७५, ३९९| अणुत्तरोववाइय-अनुत्तरोपपातिकम्। भग० २२२। अणुपरिहारी-जतो जतो परिहारी गच्छति ततो ततो अणत्तरोववाइया-अनुत्तरोपपातिकाः प्रज्ञा०६९| | अणपिट्ठतो गच्छति। अण-थोवं पडिलेहणादि साहेज्जं अणुदिन्नं- (अनुदीर्णम्)। भग० ५८१ करेतीति। निशी. १३२आ। अणुदिसा-अनुदिशः, प्रतिदिशः। दशवै २०१। एकप्रदेशा | अणुपविटे- अनुप्रविष्टः-तदुदयवर्ती। स्था० २१९। अनुत्तराः (दिक्कोणाः)। स्था० १३३। अणुपस्सओ- अनुपश्यतः-पर्यालोचयतः। उत्त० ३१०| अणुद्दिहो-अनुद्दिष्टः, यावन्तिकादिभेदवर्जितः। प्रश्न. अणुपात्तं-कम्मंण कारविज्जतित्ति। निशी० १०६) १०८ अणुपालइत्ता- अनुपाल्य-सततमासेव्य। उत्त० ५७२। अणुद्धरी-अनुद्धरी, आत्मदोषोपसंहारविषये अणुपालणा- अनुपालना, अनुयो॰ विशुद्धिः, द्वारवत्याम-महमित्रवेष्ठिभार्या। आव०७१४। | प्रत्याख्यानशुद्ध्या पञ्चमो भेदः। आव० ८४७। अणुचुअ-अनुभूताम्, आनुरूप्येण यथामार्दङ्गिकविधि अणुपालणासुद्धे- अनुपालनाशुद्ध-कान्तारादिषु न भग्नं उद्धृता-वादनार्थमुत्क्षिप्ता। जम्बू. १९४। यत्प्रत्याख्यानम्। स्था० ३४९। अणुधम्मो-अनुधर्मः। सूत्र० ३९९। अणुपालियं-अनुपालितं, पूर्वकालसाधुभिः अणुनई- अनुनदि, नदी नदी प्रति। आव० ४५३। | पालितत्वाद्विव-क्षितसाधुभिश्चानु मुनि दीपरत्नसागरजी रचित [47] “आगम-सागर-कोषः" [१]

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