Book Title: Agam Sagar Kosh Part 01
Author(s): Deepratnasagar, Dipratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 131
________________ (Type text] आगम-सागर-कोषः (भागः-१) [Type text] आदियणआ-आदानम्, ग्रहणम्। आव०६१४ आधिदैविकम-दैवादिसत्कं दुःखम्। उत्त० २६६) आदियणा-आदानम्, परधनस्य ग्रहणं, आधिभौतिकम्- अन्यभूतसत्कं दुःखम्। उत्त० २६६। तृतीयाधर्मद्वारस्य पञ्चदशं नाम। प्रश्न. ४३। आधूय-भ्रमयित्वा जलेन सदाहत्याहत्य। जम्बू. २३०| आदीअदिद्वभावे-आदौ-आवश्यकादिशास्त्रेषु वर्तमाना आधूयारुहकम्- हरितभेदः आचा. ५७ अदृष्टा भावा येनः सः। बृह१२६ आ। अञ्झत्थियं- आध्यात्मिकम् आत्मसत्कं दुःखम्। उत्त० आदेज्ज-आदेया, दर्शनपथमुपागता सती पुनः पुनराकाङ् | २६६। आत्मनि क्रियमाणम्। आचा०४१६| क्षणीया। जम्बू. १११। आदेयः, रम्यः। प्रश्न० ८३ आनगारिकम्-अनगारेषु-भावभिक्षुषु आदेज्जनाम-आदेयनाम, यद्दयवशात् यच्चेष्टते भाषते | भवमानगारिकमनुष्ठानम्। उत्त० ३३९। वा तत्सर्वं लोकः प्रमाणीकरोति दर्शनसमनन्तरमेव च | आनन्द-श्रुतसामायिकलाभे दृष्टान्तः। आव० ३४७। जनोऽ-भ्युत्थानादि समाचरति तत्। प्रज्ञा०४७५ आनन्दपुरम्-स्थलपत्तने नगरविशेषः। बृह. १८१ आ। आदेयवचनता-सकलजनग्राह्यवाक्यता। उत्त०३९।। जितारिराज्ञः राजधानी । बृह० १०७ आ। नगरविशेषः। आदेशकषाय- कैतवकृतभृकुटिभंगुराकारः। आव० ३९०| व्यव० १४६ अ, ४आ। व्यव० २६६अ। आदेशिकं- श्रमणानुद्दिश्यादेशम्। बृह. ८३ अ। आनन्दविजयः- आचार्यनामविशेषः। जम्बू. ५४५ आदेसं-उद्दिट्ठ। निशी. २३० आ। विशेष आनन्दविमलः- आचार्यनामविशेषः। जम्बू. ५४३। प्रतिनियतव्यक्त्यात्मकम्। उत्त० ६७३। आनुगामिकः-आआदेसतिगं- आदेशत्रिकम्, मतत्रिकम्। पिण्ड० १० समन्तादनुगच्छतीत्येवंशीलमानुगामिकः, अनुगमः आदेसदव्वसुद्धी-आदेशद्रव्यशुद्धिः, द्रव्यशुद्धिभेदः। दशवैः | प्रयोजनं यस्य सः। प्रज्ञा० ५३९। अनुगच्छति २११। साध्याभावे न भवति यो धूमादिहेतुः सोऽनुगामी ततो आदेसा- पाहुणा। निशी० १११ अ| प्राघूर्णकाः। बृह० ८५ | जात-मानुगामिकं, अनुमानं, तद्रूपो व्यवसयायः। स्था० १५१| आदेसे-आदेशः, आदिश्यते यस्मिन्नागते सम्भ्रमेण | आनुपूर्वी- यथासन्नम्। प्रज्ञा० ५०३। परिजनस्तदासनदानादिव्यापारे सः, प्राघूर्णकः। सूत्र० कूर्परलाङ्गलगोमूत्रिका-कारेण यथाक्रम द्वित्रिचतुःसमयप्रमाणेन विग्रहेण भवान्तरोआदेसो-आदेशः, प्रकारः। जीवा० ५३। सत्ताएसो। निशी. त्पत्तिस्थानं गच्छतो जीवस्यानश्रेणिनियता ७१ | अनुज्ञा। व्यव० ३४६ अ। नयान्तरविकल्पः। गमनपरिपाटी। प्रज्ञा० ४७३। व्यव० ३५४ आ। अनुक्रमः- अनुपरिपाटी। अनुयो० ५१। आद्यशब्द-तर्कणादोषादिप्रतिपादनः। निशी० २२५ आपणवीही-आपणवीथिः, रथ्याविशेषः। जम्बू० ४१३। आद्रहणम्- उच्छलदुष्णजलम्। दशवै. १७४१ पिण्ड० ३५ आपणवीथिः। भग० ४७६। आधरिसितो-आधर्षितः। आव.३१| आपन्नपरिहार-मासिकं वा विमासिकं वा यावत् आधत्त-आधत्तम्, ग्रहणके मुक्तम्। बृह. १२० । षण्मासिकं वा प्रायश्चित्तं। व्यव० ४५ आ। आधरिसेहिति-आधर्षिष्यति। आव. १७४। आपाकः- भाण्डपचनस्थानम्। स्था० ४१९। आधाकम्मिए-आधाय-आश्रित्य साधून आपागपत्तं-आपाकप्राप्तम्, ईषत् पाकाभिमुखीभूतम्। कर्मसचेतनस्याचे-तनीकरणलक्षणा अचेतनस्य वा प्रज्ञा० ४५९। पाकलक्षणा क्रिया यत्र भक्तादौ तदाधाकर्म आपाण्डु-आ-ईषच्छुभ्रत्वभाजः, पाण्डुः। उत्त०६८९) तदेवाधाकर्मिकम्। स्था०४६० आपीड:- शेखरकः। जीवा० २७२। आमेलकः-शेखरकः। आधायणं-जत्थ वा महा संगामे मता। निशी० ७३ अ। जीवा. २०७, ३६१। आधिः- मनःपीडा। भग०४| | आपुच्छणा- आप्रच्छनमापृच्छा, आ। ३००। मुनि दीपरत्नसागरजी रचित [131] “आगम-सागर-कोषः" [१]

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