Book Title: Agam Sagar Kosh Part 01
Author(s): Deepratnasagar, Dipratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम-सागर-कोषः (भागः-१)
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एसा उज्जियधम्मिया। निशी० १२ । निशी. १६३ सूर्य. २९६। देहचेष्टाविशेषः। प्रज्ञा० ४६३। ऊर्ध्वं भवनम्। आ।
जम्बू. १३०| उत्पत्तिः । ज्ञाता० १८९। उज्झियधम्मे-उज्झितमेव धर्मः-स्वभावो यस्य तद उहाणपरियाणियं-परियानं-विविधव्यतिकरपरिगमनं उज्झितधर्म-परित्यागार्हम्। बृह. ९७ आ।
तदेव पारियानिकं-चरित उत्थानात्-जन्मन आरभ्य उट्ट-उष्ट्रः। प्रज्ञा० २५२। उष्ट्र:-द्विखुरचतुष्पदविशेषः। पारियानिकं उत्थानपारियानिकम्। भग० ६६०
प्रज्ञा० ४५। जीवा० ३८1 म्लेच्छविशेषः। प्रज्ञा० ५५ उहाणपरियावणियं-उत्थानपर्यापन्निकम्। आव०६५। उट्टण- आवर्तनम् भक्तिभावनम्। व्यव० २०३ आ। उहाणसूए-उत्थानश्रुतं-उद्वसनं तद्धेतुः उवामा-उष्ट्री। आव०४१८
श्रुतमुत्थानश्रुतम्। नन्दी० २०७। उट्टिए- उष्ट्राणामिदम्। औष्ट्रिकम्। अनुयो० ३५। उहाय-उत्थाय-अभ्युपगम्य। आचा० ३८। सर्वं सावयं उष्ट्रिकाबृहन्म-न्यभाण्डम्। उपा०४।
कर्म न मया कर्तव्यमित्येवं प्रतिज्ञामन्दरमारुद्य। उट्टिते-उष्ट्रलोममयम्। स्था० ३३८।
आदायगृहीत्वा। आचा० १४० उट्टितो-उव्वसिओ। निशी. १७८ आ।
उट्ठावणा-उच्चेव ठावणा उत्-प्राबल्येन वा ह्रावणा उट्टियं- उट्टरोमेसु उट्टियं। निशी० १२६ अ।
उट्ठावणा। निशी०४७ अ। उट्टिया-उष्ट्रिका-महामृण्मयो भाजनविशेषः। औप. उहावणागहणं-उपस्थापनायां १०६। मृण्मयो महाभाजनविशेषः। उपा० २१॥
हस्तितदन्तोन्नताकारहस्तादि-भिर्यद् सुरातैलादिभा-जनविशेषः। उपा०४०।
रजोहरणादिग्रहणं। बृह. २८६ अ। निशी० ५९ अ, ६१ ।
उहिअ- उद्युक्तः। ओघ० २२० उत्थितः-उद्वसितः। उट्टियासमणा-उष्ट्रिका महामण्मयो भाजनविशेषस्तत्र ओघ०४९। उद्यतः। ओघ० २२० प्रविष्टा ये श्राम्यन्ति-तपस्यन्तीति उष्ट्रिकाश्रमणाः। उहिए-उत्थितः-ज्ञानदर्शनचारित्रोद्योगवान्। आचा० औप० १०६।
१७६। उत्-प्राबल्येन स्थितः। आचा० २५८। उर्ल्ड-ओष्ठं-कर्णम्। ओघ. २१११
उट्ठिय-उत्थितः-संयमोदयोगवान्। आचा. २२४। रुअं। उर्ल्डभिया-अवष्टभ्य-आक्रम्य। आचा० ३१२
निशी. २२८ आ। ईश्वरीभतम्। पिण्ड० १२३। उहण-उत्थितः। बृह० ७९ अ।
उट्ठी-अष्टा। आव०६२४। उहवेसि-उद्धरसि। ज्ञाता०६९।
| उट्ठभह- अवष्ठीव्यत-निष्ठीव्यत। भग० ६८५ उहा- उत्था-कायस्योर्ध्वभवनम्। औप० ८३। ऊर्ध्वं | उडेइ-उत्थाय-विबुद्धय। भग० १२२॥
वर्तनम्। सूर्य.६। भग०१४। उष्ट्री। दशवै. १९३। उडेमि-आयामि-आगच्छामि। आव० ६८५१ उट्ठा(ट्टा)-उष्ट्राः -जलचरविशेषाः। सूत्र. १६०
उडंकरिसी-ऋषिविशेषः। बृह. २८६ आ। उहाए- उत्थाय-उद्यतविहारं प्रतिपद्य सर्वालङ्कारं उडए-उटजः-तापसाश्रमगृहम्। निर०२६। परित्यज्य पञ्चमुष्टिकं लोचं विधायैकेन
उडओ-ओटजः-तापसाश्रमः। उत्त० १३४ देवदुष्येणेन्द्रक्षिप्तेन युक्तः कृत–सामायिकप्रतिज्ञ उडव-उटजः-तापसाश्रमः। जीवा० १०५ कोटिंवो। निशी. आविर्भूतमनःपर्यायज्ञानोऽष्टप्रकारकर्म-क्षयार्थं ७७ आ। पर्णकुटी। आव० १८९। तीर्थप्रवर्तनार्थं चोत्थाय। आचा० ३०११ उत्थानं उत्था- | उडवसंठिया-उटजसंस्थिताः-तापसाश्रमसंस्थिताः। ऊध्वं वर्तनं। राज० ५८१
आव-लिकाबाह्यस्य दशमं संस्थानम्। जीवा. १०४| उहाण- उत्थानम्-उद्वसनम्। नन्दी. २०७। प्रथममद | उड्डंकरिसि-ऋषिविशेषः। निशी०६८ आ। गमनम्। उत्त० ३५१। जन्म। भग० ६६१| चेष्टाविशेषः। | उड्डडुग- उदंडकः-जनहास्यः। निशी. ५० अ। स्था० २३। उत्थानम्। पिण्ड०७१। ऊर्वीभवनम्। भग० | उडु- ऋतुः। निशी० २३९ । उडुपः-तरणकाष्टं३११। सूर्य० २८६। श्रवणाय गुरुं प्रत्यभिमुखगमनम्। | तुम्बकादि। पिण्ड० १०२॥
मुनि दीपरत्नसागरजी रचित
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“आगम-सागर-कोषः” [१]

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