Book Title: Agam Sagar Kosh Part 01
Author(s): Deepratnasagar, Dipratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
View full book text
________________
(Type text]
आगम-सागर-कोषः (भागः-१)
[Type text]
१४६
आरोहा- महामात्रा। विपा०४६।
आलंबण-आलम्बनम्, प्रपततां साधारणस्थानम्। आव. आरोहो- उस्सेहो। निशी. २६६ आ। नातिदैर्घ्य
५३४ प्रवृत्तिनिमित्तं शुभमध्यवसानम। आव० ५८६। नातिहस्वता शरीरोच्छ्रयो वा। बृहपृ० ३०१ आ। ग्लानादि। उत्त० ५८७। रज्ज्वादिवदापगर्ताआर्जिका-अज्जिए, आर्यिका, मातः पितुर्वा माता। दशवै. दिनिस्तारक-त्वादालम्बनम्। भग०७३८, ७३९। २१६
आश्रयणीयं गच्छकुटुं-बकादि। स्था० १५४। आर्ताः-दुःखिनः रागद्वेषोदयेन। आचा० १८३। आलंबणबाहा-अवलम्बनबाहाः, द्वयोः आर्द्रकः-आईकनगराधिपतिः। सूत्र. ३६। विशिष्टतप- पार्श्वयोरवलम्बनाश्र-यभूता भित्तयः। जम्बू० २९२ श्चरणफलवान्। सूत्र. २९९। सचित्तंतरुशरीरम्। आव० | आलइअ-आलगितम्, आविद्धम्। आव० १८५। यथास्थानं ૮૨૮.
स्थापितम्। जम्बू० १६० प्रज्ञा० १०१। आर्द्रकुमारः- प्रतिमादर्शने दृष्टान्तः। बृह. १८५। आलइयमालमउड-आलगितमालमुकुटम्, आलगितमालं सदाचारप्रयत्नवज्ज्ञातं। सत्र. ३८५
मुकुटं यस्य सः। भग० १७४। आलगितमालमुकुटः। आर्यः-आरात्-सर्वहेयधर्मेभ्योऽर्वाग् यातः। नन्दी०४९। आचा०४२३। आर्यकम्- हरितम्। दशवै० १८५
आलए-आलयः, आश्रयः। जीवा० २७९। उत्त० ४५४। अज्जकण्हे- आर्यकृष्ण आचार्यनाम।
जम्बू. १८ वसतिः, सुप्रमार्जिताः आर्यखपुट-विद्याबले दृष्टान्तः। बृह. १५६ अ। विद्या- स्त्रीपशुपण्डकविवर्जिता वा। आव० ५२९। सिद्धः, सिद्धमन्त्रः। दशवै १०३।
आलग्गो-अधृतिमापन्नः, कातरः। आव० ८००। आर्यमंगु-आचार्यनाम। बृह. २४ अ।
आलपाल- प्रलापः। आव०६६९। अज्जरक्खिय- आर्यरक्षित आचार्यनाम।
आलभिआ-आलंभिका नगरीविशेषः, वीरस्य अज्जवयणं-आर्यवचनम्, आर्याणां-तीर्थकृतां वचनम्- सप्तमवर्षारा-त्रस्थानम्। आव. २०९, २२१ आगमः। उत्त०५२६||
आलभिया-आलंभिका, नगरीविशेषः। भग. ५५०| आर्यवजः- कर्णाभ्यां श्रुते दृष्टान्तः। बृह० ६३ । नगरीविशेषः। भग०६७५ आर्यश्यामः-आचार्यविशेषः। प्रज्ञा०६०६।
आलय-आवासः। ओघ० ११६। आश्रयः। जीवा. १७६। आर्यसमुद्रः-आचार्यविशेषः। बृह. २४ अ।
जम्बू. १२१॥ आर्यसुहस्ती-आचार्यविशेषः। बृह० २४ आ।
आलयविन्नाणं-आलयविज्ञानं-ज्ञानसंततिः। सूत्र. २६। अज्जा-आर्या, प्रशान्तरूपा। अन्यो० २६। भिक्षुणी। आलयगुणेहि-आलयग्णैः, बहिश्चेष्टाभिः ओघ० २०८१
प्रतिलेखनादिभिरु-पशमगुणेन च। बृह० ६२ अ। अज्जासुत्तं- आर्यासूत्रम्, सूत्रभेदः। बृह. २०१आ। आलवंते-आलपन, अत्यर्थं लपन। अनयो० १४२ आर्जिका- आर्यिका मातुः पितुर्वा माता। दशवै० २१६। आलपति, आङिति ईषल्लपति-वदति। उत्त ५५ आर्यः- तीर्थकुद्भिः। आचा० २७४। सकलहेयधर्मेभ्यो दूर आलविज्ज- ईषत्सकृद्वा लपनमालपनम्। दशवै. २१६| यातैस्तीर्थकरादिभिराचार्यैर्वा। उत्त. २९३।
आलवित्तए-आलपनम्, सकृत्सम्भाषणम्। आव०८११| आलंकारिअभंड-आलङ्कारिकभाण्डम्,
आलपितुं-सकृत्सम्भाषितुम्। उपा० १३। आभरणभृतभाजनम्। जम्बू० २५५)
आलस्स- आलस्यम्, अनुद्यमस्वरूपम्। उत्त० १५१| आलंकारियं-आलङ्कारिकम्, अलङ्कारयोग्यं भाण्डम्। अनुत्साहात्मा। उत्त० ३४५। जीवा० २३६।
आला- विद्युत्कुमारीमहत्तरिका। स्था० ३६१। आलंच-आलञ्चः, द्रव्यस्य बह्त्वेतरादिभिर्लोके आलाएति-आलगयति। आव० १०० प्रतीतभेदः। प्रश्न. ५६।
आलानम्- हस्तिबन्धनस्तम्भम्। नन्दी. १५३। आलंब-आलम्बः, प्रलम्बः। भग० १७५।
आलाव-आलापः, सकृज्जल्पः। भग० २२३। आलापः
मुनि दीपरत्नसागरजी रचित
[144]
“आगम-सागर-कोषः" [१]

Page Navigation
1 ... 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238