Book Title: Agam Sagar Kosh Part 01
Author(s): Deepratnasagar, Dipratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 120
________________ [Type text] आगम-सागर-कोषः (भागः-१) [Type text] प्रत्याख्यानवर्णनम्। नन्दी० २०६। आउस्सियकरणं-आवश्यककरणम्, आवर्जिकरणम्। अपूर्वश्रुतप्रत्याख्यानम्। आव० ४७९। प्रज्ञा०६०४१ आउरसरणं- आरोग्गसाला। दशवै. ५१ आउहं-आयुधम्, क्षेप्यं शस्त्रम्। प्रश्न०४७। अक्षेप्यम्। आउरस्सरण-आतुरशरणम्, दोषातुराश्रयदानम्। दशवै. विपा० ४६। खेटकादि। जीवा० २५९। क्षेप्यास्त्रम्, भग० १९८1 आतुरस्मरणम्, क्षुधाद्यातुराणां १९४| शस्त्रम्, अथवाऽऽयुधं-अक्षेप्यशस्त्रं खड्गादि। पूर्वोपभुक्तस्मरणं चानाचरितम्। दशवै०११७) भग० ३१८ आउरीभूएहिं-आकुलीभूतैः, आतुरीभूतैः। बृह. ३८ अ। आउहसाला- आयुधशाला-शस्त्रागारम्। आव० १४८१ आउल-आकुलम्। व्यग्रम्। आव० ५८५। प्रचुरम्। भग० आऊ-आयुः, एति-आगच्छति प्रतिबन्धकतां ९५। गडुलं, आविलं वा। सम० ५३ स्वकृतकर्म-बद्धनरकादिकुगतेर्निष्क्रमितुमनसो आउलगमणं- आकुलगमनं-एकत्र मिलिता गच्छन्ति। जन्तोरिति। अथवा आसमन्तादेति-गच्छति भवाद् ओघ० १२६॥ भवान्तरसक्रान्तौ विपाको-दयमिति वा। प्रज्ञा०४५४| आउलमाउलं-आकुलाकुलम्, आए- अनन्तकायः-कुहणविशेषः। प्रज्ञा० ३३। आत्मना। स्त्र्यादिपरिभोगविवाहयुद्धा-दिसंस्पर्शननानाप्रकारम्। स्था० १३९ आव० ५७४ आएस- प्राघूर्णकः। ओघ०६७ निर्देशः। निशी. १९ आ। आउला-आकुला, त्वरमाणा। बृह० ६५अ। प्राघूर्णक आयातः। ओघ० १०१। आज्ञा। निशी. २८५ आउलाकुल-आकुलाकुलः, अतिव्याक्लः। प्रश्न. ५० आ। आदेश-कृत्रिमकृतभृकुटीभंगादयः। आचा० ९१। आउली- तडवडावृक्षः। जीवा० १९१| प्राघूर्णकः। आचा० १३९, ३५२। कर्मकरादिः। आचा० आउलो-आकुलः, अभिभूतः। आव० ५८९। ४१५ व्यापारनियोजना।आचा० ३१८ दृष्टांतः। आचा० आउसं- आयुः-जीवितं तत्संयमप्रधानतया प्रशस्तं प्रभूतं २६२ आदिश्यते इत्यादेशः आचार्यपारम्पर्यश्र-त्यायातो वा विद्यते यस्यासावायुष्मांस्तस्यामन्त्रणम्। स्था० ७) वृद्धवादो, यमैतिह्यमाचक्षते। आचा० २६२। वृद्ध-वादः। आउसंत- आयुष्मान्, चिरजीवी। दशवै० १३७। आवसन् आचा० २६३। प्राघूर्णकः। स्था० १३८1 उपचारो, व्यवहारः गुरुमूलमावसन् वा। दशवे. १३७।। (देशे प्रधाने च)। स्था० २२३। आदेशः, विशेषः, आङिति आउसंतेणं- आजुषमाणेन, श्रवणविधिमर्यादया गुरून् मर्यादया विशेषरूपानतिक्रमात्मिकया दिश्यते-कथ्यत सेव-मानेन। उत्त० ८० भगवतेत्यस्य इति। उत्त० ३२॥ प्राघूर्णकसाधुः। आव० २६३। प्राघूर्णकः। विशेषणमायुष्मता-चिर-जीवितवता। सम० २। ओघ. १८३। आदेश:-प्रकारः सामान्यविशेष-रूपस्तत्र श्रवणविधिमर्यादया गुरूनासेवमानेन। स्था० ९। चादेशेन-ओघतो द्रव्यमात्रतया न त् तद्गतसर्वआयुष्मदन्ते, आयुष्मता। नन्दी० २१२। आजु-षमाणेन-। विशेषापेक्षयेतिभावः, अथवा आदेशेनप्रीतिप्रवणमनसा। सम० २। हे आयुष्मन्। सम० २।। श्रुतपरिकर्मिततया। भग० ३१७। आदेशः, कथनम्। नन्दी० २१२। आमृशता-गुरूक्रमयुगलं संस्पृशता। सम० उत्त० १४७। संखडिविषयो दृष्टान्तः। ब्रह. १३५आ। २। गुरुकुलमावसता। दशवै० १३७। आवसता गुरुकुले। प्राघूर्णकः। निशी० १४ आ। पाहण्णकं। निशी० २९३ आ। सम. आयुष्मन्, शिष्यामन्त्रणम्। उत्त०८० प्राघूर्णकः। बृह. १९५अ। प्रायश्चित्तप्रकारः। बृह. ९८ आउसंवट्टणं-आयुरुपक्रमः। निशी. २७४ अ। आ। अस-त्यार्थादेशः। प्रश्न०१७। विध्यन्तरम्। दशवै. आउसणाहि-आक्रोशना मृतोऽसि त्वमित्यादिभिर्वचनैः। १३। व्यपदेशः। आचा० ७४। अभ्यर्हितः प्राहुणकम्। भग० ३८३ उत्त० २७२। अधि-कारः। बृह० २७६ आ। अनुज्ञा। व्यव० आउसेइ-आक्रोशयति, शपति। भग० ३८३। ३४६ अ। उपचारः, व्यवहारः, स च बहतरे प्रधाने आउसो- आयुष्मन्, पुत्रादेरामन्त्रणम्। भग० १३५) वाऽऽदिश्यते। स्था० २२३। नयान्तरविकल्पः। व्यव० आउस्स-आक्रोशः, असभ्यवचनरूपः। सूत्र. ९३। ३५४ आ। आदिश्यते-आज्ञाप्यत इत्यादेशः मुनि दीपरत्नसागरजी रचित [120]] “आगम-सागर-कोषः" [१]

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