Book Title: Agam Sagar Kosh Part 01
Author(s): Deepratnasagar, Dipratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 44
________________ (Type text] आगम-सागर-कोषः (भागः-१) [Type text]] ८९। स्तोकप्रदेशम्। प्रज्ञा० २६३। पश्चाद्भावे स्तोके च। बह. ३३। स्तोकम्। प्रज्ञा० ५०२। प्रमाणतो वज्रादि। दशवै० १४७। लघुः, हीन। सूर्य० २६१ जम्बू० ५२२ अणुअतणुअ- अनुकतनुकानां-अतिसूक्ष्माणाम्। जम्बू० २३७ अणिस्सि(ब्भि) अप्पा-अनिभृतात्मा, अनिदानः। आव. ८४३। अणिस्सिए-अनिश्रितः, द्रव्यभावनिश्रारहितः प्रतिबन्धवि-मुक्तः । दशवै० २२३।। अणिस्सिओवहाणे-अनिश्रितोपधानं, ऐहिकामुष्मिकापेक्षा-विकलं तपः, योगसंग्रहे चतुर्थो योगः। आव० ६६४। अनिश्रितं तपः। प्रश्न. १४६। अणिस्सितं-अनिश्रितम्। आव० ३५८। सर्वाशंसारहितः। भग. ३८५ अणिस्सियं-अनिश्रितम्, कीर्त्यादिनिरपेक्षम्। प्रश्न. अणुओग-अनुयोगः, अर्थकथनम् सूत्रादनपश्चादर्थस्य योगोऽनुयोगः सूत्राध्ययनात्पश्चादर्थकथनम्। अणोर्वा लघी-यसः सूत्रस्य महताऽर्थेन योगोऽनुयोगः। आचा० २। व्याख्यानः। ओघ०८१| | अणुओगत्थो-अनुयोगार्थः, व्याख्यानभूतोऽर्थः। आचा० १२६ ७) अणिस्सिय-अनिश्रितम्, कुलादिष्वप्रतिबद्धम्। दशवै. | अणुओगदारं- अनुयोगद्वारम्, सूत्रविशेषः। आव० ७४०| ७२। अस्वाध्याये परिहर्तव्यसूत्रविशेषः। निशी० ७१ आ०| अणिस्सेयस-अनिश्रेयसः-अमोक्षाय। स्था० १४९। | अणुओगदारे- अनुयोगद्वारम्, अनुयोगद्वारसूत्रम्। अकल्याणाय, अमोक्षाय। स्था० २९२ अकल्याणाय। भग. २२१। स्था० ३८५ अणुओगो-अनुयोगः, सूत्रस्यार्थेनानुयोजनम्, अभिधेये अणिस्सो-अनिश्रः-कस्यचित्संबन्धिनाऽवष्टम्भेन व्यापारः सूत्रस्य योगो वा, अनुकूलोऽनुरूपो वा योगः। रहितः। उत्त०६३३॥ आव० ८६, स्था०४८११ अणिहय-अनिहतः, अन्तकृद्दशानां तृतीयवर्गस्य सूत्रपाठानन्तरमनुपश्चामत्सूत्रस्यार्थेन सह योगोतृतीयम-ध्ययनम्। अन्त०३। घटना। जीवा. २ अनुकूलःअविरोधी सूत्रस्या-र्थेन सह अणिहे- अनिभः, अमायः। दशवै. २६८। अनिहः, योगो वा। जीवा० २। सूत्रस्यार्थेन सह सम्बन्धनं, परीषहोपसर्गनिहन्यत इति निहः, न निहः अनिहः- अनुरूपोऽनुकूलो वा योगो व्यापारः सूत्रस्यार्थउपस-गैरपराजित इति। सूत्र०६९। अस्रिहः प्रतिपादन-रूपः। अणोः-लघोः पश्चाज्जाततया अष्टकर्मरहितः, अरागः-रागद्वेषरहितः, वाऽनशब्दवाच्यस्य योऽभिधेयो योगोभावरिपभिरनिहतः। आचा. १९०| स्निह्यत इति व्यापारस्तस्तत्सम्बन्धो वाऽणुयोगो अनु-योगो वा। स्निहः, न स्निहः-सर्वत्र ममत्वरहित इति। सूत्र०६९। जम्बू. ४॥ दृष्टिवादचतुर्थो भेदः। सम० १२८। नियोगः। अकुट्ठिले। दशवै० १५१|| आव० ६९४। अनुयोजनम्, अनुकूलो वा योगः। अणुअणीए-अनीकम्, सैन्यम्। भग० ८९। सूत्रं, महान् अर्थस्ततो महतोऽर्थस्याणुना सूत्रेण योगो अणीयजसे- अनीकयशाः, नागस्य गाथापतेः कुमारः।। वा। ओघ० ४। विचारः। स्था० ४८१, ४९५) अनुरूपोsअन्त०४१ नुकूलो वा योगः। सम० १३१। अध्ययनार्थः। आव० ५४। अणीयसे- अन्तकृद्दशानां तृतीयवर्गस्य प्रथममध्ययनम्। सूत्रस्पर्शकनियुक्तिः सूत्रानगमश्च। आव० ८६। परीक्षा। अन्त०३। आव० १५७ अणीसहूं- हस्तमानावग्रहादस्फिटितम्। बृह० २३९ । | अणुकंपं- अनुकम्पां-उपष्टम्भम्। स्था० १७०। अणीहारि-अनिर्हारि, तपोभेदः। उत्त०६०० अणुकंपओ-अनुकम्पकः-अनुरूपक्रियाप्रवृत्तिः। उत्त. अणीहारिमे- अनिर्हरणाद् गिरिकन्दरादौ अनशनम्। ३५१ स्था० ९४। जइ बहिं पडिवज्जइ। निशी०५८ अ। | अणुकंपा- अनुकम्पा, अनुग्रहः। दशवै० ६७। भक्तिः । अणु-अनु-प्रतिदिवसम्। सूर्य. १३६, १३३। थेवे दशवैः । ओघ० १९६। आव० ३४८। सम्यक्त्व गुणविशेषः। आव. मुनि दीपरत्नसागरजी रचित [44] “आगम-सागर-कोषः" [१]

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