Book Title: Agam Sagar Kosh Part 01
Author(s): Deepratnasagar, Dipratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
View full book text
________________
(Type text]
आगम-सागर-कोषः (भागः-१)
[Type text]
अद्वसोवण्णिअं-अष्टसुवर्णा मानमस्येत्यष्टसौवर्णिकं, ३६ सुवर्णमानमिदम्-चत्वारि मधुरतृणफलान्येकः । अद्विकरकम्- तन्दुलोदकम्। दशवै० १७७ श्वेतसर्षपः, षोडश श्र्वेसर्षपा एकं धान्यमाषफलं, वे अद्विखंड-अस्थिखण्डं। आव० ३६९। धान्माषफले एका गुजा एकः कर्ममाषकः, षोडश अद्विग-अस्थिकम्-कीकसम्। भग० ३०८। कर्ममाषकाः एकः सुवर्णः। जम्बू. २२६।
अद्विचम्मावणद्धे-अस्थिचर्मावनद्धम, अस्थीनि अट्ठा-अर्थक्रिया, अर्थाय यत्करणम्, क्रियायाः, प्रथमो चर्मावन-द्धानि यस्य। भग० १२५ भेदः। आव०६४८१
अहिज्झामे-अस्थिध्यामम्, अस्थि च तद्ध्यामं चअट्ठाणं-अस्थानम्, अयुक्तं, असाम्प्रतं वा। सूत्र. १६० अग्निना ध्यामलीकृतं-आपादितपर्यायान्तरम्। भग. शब्दप्रतिबद्धावसतिः। ब्रह. १९७ आ।
२१३॥ अट्ठाणढवणा-अस्थानस्थापना-गुर्ववग्रहादिके अस्थाने | अहितग्गामं-अस्थिकग्रामम्, पूर्व वर्द्धमानकनामकम्। प्रत्युपेक्षितोपधेः स्थातनं-निक्षेपः। स्था० ३६२।
आव० १८९। अट्ठादंडे- अर्थाय-शरीरस्वजनधर्मादिप्रयोजनाय दण्ड:- अद्विभंजणं-अस्थिञ्जनम्, कीकसामईनम्। प्रश्न. २२॥ त्रसस्थावरहिंसा। सम० २५
अद्विमिंज-अस्थिमिजः-त्रीन्द्रियजीवविशेषः। उत्त. अट्ठावय- (अष्टापदः) पर्वतविशेषः। आव०७२७५
६९५४ अद्वापदं- अर्थात्पदम्। आव० ३५२।
अद्विमिंजा-अस्थिमिजा, अस्थिमध्यम्। सूत्र. ४०८। अट्ठारसवंको-अष्टादशवकः, अष्टादशसरिको हारः।। भग०५२६| आव०६८११
अट्ठिय-आर्थिकः, अर्यत इत्यर्थः-मोक्षः, स अट्ठारसवंजणाउलं-अष्टादशव्यञ्जनाकुलम्। सूर्य. २९३। | प्रयोजनमस्येति अर्थः स एव प्रयोजनरूपोऽस्यास्तीति। स्था० ११७
उत्त०६५ अट्ठावए-अष्टापदम्, दयुतम्, अर्थपदं वा। दशवै० ११७ अद्वियकहट्ठियं-अस्थिकाष्ठोत्थितम्। उत्त० ३२९। अट्ठावओ-पर्वतविशेषः। आव० १४८
अद्वियगाम-अस्थिकग्राम-श्रीवीरस्य अट्ठावयं-अष्टापदम्। जीवा. २७६। अर्थपदम्। आव० प्रथमचातुर्मासग्रामः। भग०६६१। ४१२। शारिफलकट्यूतं तद्विषयकलाम्। जम्बू. १३७। | अहिलग्गो-मुष्टिं कृत्वा। आव० ६९०| दयुतफलकम्। पश्न०८४| पर्वतविशेषः। आव० १५१।। अहिल्लगो-अस्थि (बीजम्)। निशी० ५६ आ।
यूतक्रीडाविशेषः। सूत्र. १८१। दयूतफलकं, कैलाशः- अद्विसरक्खा-अस्थिसरजस्का-कापालिकाः। व्यव. २७३ पर्वतविशेषो वा। प्रश्न. ७० अष्टापदः, पर्वतविशेषः। आ। आव० ८२७। यूतफलकम्। जम्बू. ११४१
अद्विसेणा- वत्सगोत्रान्तर्गतं गोत्रम्। स्था० ३९० अट्ठावयसेलसिहरंसि-अष्टापदशैलशिखरे। जम्बू. १५८ अहि-अस्थि मज्जा। अनुत्त०५। एड्डसरक्खा। निशी. अट्ठाहिअं-अष्टाहिकाम्, अष्टानामां-दिवसानां समा- १७२। हारोऽष्टाहं तदस्ति यस्यां महिमायां सा अष्टाहिका अट्टप्पत्ती- ववहारो। निशी० १०१ अ। ताम्। जम्बू. १६३
अढे-अर्थः, भावः। भग० ३४| अट्ठाहिया-अष्टाहिका, महामहिमाविशेषः। जीवा. ३६५) अद्वेति-निवसति। निशी. ६२आ। जम्बू०४२३॥
अट्ठो-अर्थित्वं च धर्मः। आव०३४१। अर्थः विज्ञानम्। अद्वि-अस्थि, कीकशम्। प्रश्न०८, भग० १३५।
सूत्र० ३९८१ अर्यत इत्यर्थो मोक्षः। उत्त०६५) अद्विकच्छभा- ये अस्थिबलाः। कच्छपास्ते
अट्ठियकप्पा-मध्यमजिनानां महाविदेहजिनानां वा अस्थिकच्छपाः। प्रज्ञा० ४४१
साधवः। बृह० २५४ आ। अट्टिकच्छमो- अस्थिकच्छपः, कच्छपविशेषः। जीवा० | अइंडिमकुदंडिम-अदण्डिमकुदण्डिमम्, दण्डो
मुनि दीपरत्नसागरजी रचित
[34]
“आगम-सागर-कोषः" [१]

Page Navigation
1 ... 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238