Book Title: Agam Sagar Kosh Part 01
Author(s): Deepratnasagar, Dipratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम-सागर-कोषः (भागः-१)
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४३
लोकेनाभ्यर्हितः। आव० १४४।
४३ अणहं- अनघं, अक्षतम्। सूर्य. २९२।
अणाउत्तआइयणया-अनायुक्तवस्त्रादिग्रहणता। स्था० अणहशब्दोऽक्षतपर्यायो देशश्यस्तेनाणहं-अक्षतं। जम्बू० २२११
अणाउत्तमज्जणया- अनायुक्तपात्रादिप्रमार्जनता। स्था० अणहवीया-अविणद्ववीया। निशी० ८०अ।
४३ अणहारए- ऋणधारकः। विपा०७२।
अणाउत्तो-अनाकुलः-अक्षणिकता। बृह० ४४ आ। अणहारेणं-स्वदेशजाहाराभावेनेति। स्था० ५४। अणाउल-अनाकुलः, क्रोधादिरहितः। दशवै० १६६। अणहिअपरमत्था- अनधिगतपरमार्थाः। (गणि०) अणाउले-अनाकुलः, आचा० ४२४। अणहिकडा- अनधिकृता
अणाउलो-अनाकुलः। आव०४०४। तल्लक्षणायोगतस्तत्रानन्तर्भाविनी। प्रज्ञा० २४८। अणाए-अनया। आव० ३९९। अणहियासिया-अनध्यासिनी। आव०४२८१
अणाएसे-अनादेशः, न आदेशः, सामान्यम्। उत्त० ३२| अणहियासी-अनधिकासिकाः, सजावेगोत्पीडितः सन् | अणागई- अनागतिः, सिद्धिः, अशेषकर्मच्यतिरूपा या याति सा। ओघ० २००१
लोकाग्राकाशदेशस्थानरूपा वा। सूत्र. २२३। अणहे- अनघः, नास्याघमस्तीति, निरवद्यानुष्ठायी। अणागतं-अनागतम्, अनागतकरणात्, सूत्र०६९
पर्युषणादावाचार्यादिअणहो-अनघः, अक्षतशरीरः। प्रश्न. ११५
वैयावृत्त्यकरणान्तरायसद्धावादारत एव अणाइण्णं- पणगपरिहाणीक्रमेण पत्तं। निशी. १५७। तत्तपःकरणम्। आव० ८४०, स्था०४९८१ अणाइण्णा-अणासेविय। नि० १४४ आ।
अणागमणधम्मिणो-अनागमनधर्माणः-यस्मिन अणाइन्नं-अनाकीर्णः-असंक्लः। उत्त० ४२८।
मनुष्यलोके अनागमनं धर्मो येषां ते, न पुनर्गहं अणाइयं-अणातीतं, अनादिकं, अज्ञातिकं, ऋणातीतं । प्रत्यागमनेप्सवः। आचा० २४३। अणातीतं वा, अविदयमानादिकं, अविदयमानस्वजनं, अणागमो-अनागमः-अनवसरः। आचा. १२२ ऋणं वाऽतीतं ऋणजन्यदुःस्थतातिक्रान्तम्, अणागयं-अनागतम्, एष्यत्कालम्। आव० ५०९। दुःस्थतानिमित्ततयेति ऋणातीतं, अणं वा अणकं- अणागय-अनागताम्, आयत्याम्। आव० ५०९। अनागतं, पापमतिशयेनेतं-गतमणातीतम्। भग० ३५। आ
अनागतकरणादनागतम्। भग० २९६) समन्तादतीव इतो-गतोऽनाद्यन्ते संसारे आतीतः, न | अणागलिय-अनिर्गलतः-अनिवारितोऽनाकलितः। भग० आतीतः अनातीतः, अनादत्तो वा संसारो येन स तथा, ६७३ संसारार्णवपारगामी। आचा० २८६।
अणागारं-अनाकारम, अविद्यमानाकारम्। आव०८४० अणाइत्तो-अनुपयुक्तः। (महाप्र०)
स्था०४९८1 अविदयमानाकारंअणाइयंतो-विवादानतिक्रामन। व्यव०१०।
यविशिष्टप्रयोजनसम्भवा-भावे कान्तारदुर्भिक्षादौ अणाइले- अनाविलः, अदीनस्य चतुर्थं नाम। अन्त० २२॥ महत्तराद्याकारमनुच्चारयद्धिर्विधीयते तदनाकारम्। अकलुषः। प्रश्न० १११। अकल्षः, शुद्धस्वभावः। प्रश्न भग० २९६। १३६|
अणागारपासणया-अनाकारपश्यत्ता-चिन्त्यमानायां अणाइसेसि-अनतिशयी, अवध्यादयतिशयरहितः। आव. प्रकृष्टं परिस्फुटरूपमीक्षणमवसेयम्। प्रज्ञा० ४३०| २४०।
अणागारो-अनाकारः, यथोक्ताकारविकलः। जीवा. १८५ अणाई- अनादिः, नास्यादिरस्तीति संसारः। सूत्र. ३४११ सामान्यग्राही। भग०७३ अणाउट्टी- अनाकुट्टिः। आव० ३७३।
अणाजीवी-अनाशंसी। निशी. १८ अ। अनाजीविको अणाउत्तं- असावधानता। औप० ४२। अनुपयुक्तः। स्था० | निःस्पृहः। दशवै० १०६
मुनि दीपरत्नसागरजी रचित
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“आगम-सागर-कोषः” [१]

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