Book Title: Agam Sagar Kosh Part 03
Author(s): Deepratnasagar, Dipratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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[Type text]
आगम-सागर-कोषः (भागः-३)
[Type text]
३५१
प्रश्न. ३९
तंत-तन्यतेऽनेनास्मादस्मिन्निति वा अर्थ इति तन्त्रम्। ण्हाण-स्ननम्। आव० ४१, ८३१। रथयात्रा स्नानं वा। आव० ८६। तन्त्र-तुरीवेमादिः। भग० २५४। तान्तः-कायेन
बृह. १८७ अ। अर्हत्प्रतिमास्नपनम्। बृह. ६१ आ। खेदवान्। ज्ञाता० १३९। तान्तः-तरकाण्डकाङ्क्षावान्। ण्हाणगोल्लो-स्नानीयाः। उत्त. २१९।
ज्ञाता०२२७। तान्ता-मनःखेदेन। विपा०४१। ण्हाणपीढं-स्नानपीठम्। आव० ३५६। ओवारा, कामजलं। | तंतमस्सति-आक्रन्दति। दशवै. १११ निशी० ८३ आ। स्नानपीढं-स्नानयोग्यं आसनम्। तंतयं-तन्त्रं-वेमविलेखन्याञ्छनिकादि, तस्माज्जातं जम्बू. १८९
तन्त्रजं, उभयत्र वस्त्रं कम्बलो वा। उत्त. १२२ ण्हाणमल्लिआ-स्नानयोग्या मल्लिकाविशेषः। जम्बू० | तंतवा-चतुरिन्दियजन्तुविशेषः। जीवा० ३२ प्रज्ञा०४२
तंतिसमं-नट्टभेओ। निशी. १ । तन्त्रीसम-वीणाण्हाणाई-स्नानादि। ओघ. १५१।
दितन्त्रीशब्देन तुल्यं मिलितं च। स्था० ३९४। ण्हाणि-स्नापय। णिण्ड ० १२४॥
तंती-तन्त्री वीणा। जम्बू०६१। सूर्य० २६७ प्रज्ञा० ८९। ण्हाणिओ-स्नपितः। आव. २५८१
जीवा. २१७। तन्त्री-वीणाविशेषः। प्रश्न. १५९। ण्हाणोवदाइ-स्नानोदकदायिका। ज्ञाता० ११७ तंतु-तन्यते भवोऽनेनेति तन्तुः-भवतृष्णा। उत्त० ५०५ ण्हारु-स्नायवः शरीरान्तर्वर्धाः। ज्ञाता० २२२। भग० ४६९। | तंतुअं- तन्तुकम्। आव० ३५५।
स्नायूनि। सम० १५० स्नाय्-शेषशिरा। जीवा० ३४। | तंतुग्गयं-तूरिवेमादेरुतीर्णमात्रम्। भग० ३७६। ण्हारुणि-स्नायुः। प्रश्न० ८ स्नायवः-शरीरान्तर्वर्धाः। तंतुवाए- तन्तुवायः। अनुयो० १४९। जम्बू० २०१।
तंतुवाय-पटकारकः। प्रश्न. ३०| तन्तुवायःपहाविई-नापिती। आव० ३९६|
शाटिकाकारः। आव०४२११ पहाविओ-नापितः-क्षौरकारः। आव० ४२६।
तंतुवायसाला- कुविन्दशाला। भग० ६६३। हाविता-कम्म—गिताविसेसो। निशी० ४३ आ। तंतुवाया- तन्तुवायाः-कुविन्दाः। प्रज्ञा० ५६। पहाविय-नापितः-। आव० २२४। नापितः-मण्डनकारः। | तंतू-सूत्राष्टिका। बृह. ९आ। दशवै. १०५ निशी. ९आ।
तंदुल- तन्दुलं-औषधिः। आव० १३१। तन्दुला-निस्त्वपहावियसालिग-नापितशाला। आव० ३९०
चितकाणाः। जम्बू. १०४५ ण्डया-स्नुषा-वधूः। दशवै. ९७
तंदुलकणिया- तन्दुलकणिका। आव० ८५५। ण्हे-अनयोः। उत्त० ३९४।
तंदुलपलम्ब-भुग्नशाल्यादितन्दुलानिति। आचा० ३५७। ण्होरगं-निहोरकम्। बृह. १२ अ।
तंदुलमच्छा-तन्दुलमत्स्यः मत्स्यविशेषः। जीवा० ३६। -x-x-x-x
जलचरविशेषः। जीवा. १२९। प्रज्ञा०४४।
तंदलीयकं- हरितभेदः। आचा० ५७। हरितविशेषः। जीवा. त-तावत्। प्रज्ञा०७। तदा। आव० ३५८। तंगधं-तद्गन्धं तादृग्गन्धवत्। ओघ० २२३।
तंदलेज्जग-वनस्पतिविशेषः। भग०८०२ तंजहा- तद्यथा-वक्ष्यमाणभेदकथनप्रकाशनार्थः। प्रज्ञा०
तंदुलेज्जगतणे- हरितविशेषः। प्रज्ञा० ३३। ७। तदयथा-प्रतिज्ञातार्थोदाहरणम्। आचा. १३
तंदुलेयकं- हरितविशेषः। उत्त० ६९२ तदयथा। सम० १५० तदयथा-उपप्रदर्शनार्थः। आचा.
| तंदुलोदयं-तन्दुलोदकम्। आव० ६२०| १३०
तंब-ताम्र-शुभं(शूल्वं)। प्रश्न० १५२। ताम्र-पृथिवीभेदः। तंडवेति-ताण्डवयति ताण्डवरूपं नृत्यं करोति। जीवा.
आचा० २९। ताम्रा-रक्ताः । जम्बू० ११० ताम्रम्। प्रज्ञा. २४७
२७ तंडुल- यूपविशेषः। सूर्य. २९३
तंबकरोडयं- ताम्रकरोटकम्। प्रज्ञा० ३६०। तंडुलीयक- हरितविशेषः। प्रज्ञा० ३११
२६)
मुनि दीपरत्नसागरजी रचित
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"आगम-सागर-कोषः" [३]

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