Book Title: Agam Sagar Kosh Part 03
Author(s): Deepratnasagar, Dipratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 23
________________ [Type text] आगम-सागर-कोषः (भागः-३) [Type text] १५९ आव० ११२। निस्सरति। आव० १०२ ७९ णीइआ- गुल्मविशेषः। प्रज्ञा० ३२ णीवातय-वनस्पतिविशेषः। भग०८०३ णीणवेति-प्रापयन्ति। बृह. १४२ आ। णीवट्टमाणो- निवर्तमानः। उत्त० १३९। णीणाविता-आनायिता। आव० ३५७। णीवारे- निवारः-सूकरादीनां पशूनां णीणावितो-निष्काशितः-दापितः। उत्त० १६८ निष्का- वध्यस्थानप्रवेशनभूतो-भक्ष्यविशेषः। सूत्र० २५८॥ शितः। आव० ३१८ निवारः-भक्ष्यविशेषः। सूत्र. ११४| णीणाविय-अपनायितः। आव०४३४। णोसंक- निशकं-अविदयमानसन्देहम्। भग. ५४ णीणिओ-नीतः। आव. २०४१ णीसह-निसृष्ट-प्रकामम्। बृह. १२९ आ। निसृष्टः-नारणीणितो-णिव्वूढो-घाडितेत्यर्थः। निशी. ३१ आ। केर्विमुक्त आत्यन्तिको वा। प्रश्न. २०| णीणियं-निष्काशितम्। आव०४०९। आनीतम्। उत्त. णीसन्दं-निष्पन्दः। प्रज्ञा०६। णीसरइ-निःसरति। दशवै०६१ णीणिया- चतुरिन्द्रियजन्तुविशेषाः। प्रज्ञा० ४२॥ णीसवमाणो-निश्रवयन्-यस्मात्सामायिकं प्रतिपद्यते णीणेइ-निष्काशयति। उत्त० ४५५। तदावरण कर्मनिर्जयन्। आव० ३४० णीणेऊण- निष्काश्य। उत्त. १९८१ णीसहो-निस्सहः। उत्त. १९३। णीणेति-निष्काशयति। आव० २९७१ णीहट्ट-निःसार्य। आचा० ४०१। णीणेतुं-निर्गमितुम्। आव० ३४८१ णीहारि-निर्हारि-प्रबलो गन्धप्रसरः व्यापि वा। आव. णीणेहि-व्यपनय। आव० २२६। २३१| णीता-नेत्रा-स्वस्थानं प्रापिता। ज्ञाता० २२१। णीहारिम-निहारिमा-दूरदेशगामिनी। औप० ८। णीति-णिग्गच्छति। निशी० ३४ आ। यद्वसतेरेक-देशे विधीयते तत्ततः शरीरस्य निर्हरणात्णीती-नीतिः निर्गमप्रवेशरूपा। आव० ३४६। निस्सारणान्निर्हा-रिमम्। स्था० ९४१ णीध-निर्गच्छत। आव. १९११ यत्पादपोपगमनमाश्रयस्यैकदेशे विधी-यते णीमे-नीपः, वृक्षविशेषः। प्रज्ञा० ३२ तन्निर्हारिमम्। भग०६२५१ णीरए-नीरजाः निर्गतरजः णीहारी-नीहारी-अतिक्रामी। औप०७८। कल्पसूक्ष्मवालाग्रोऽपकृष्टधान्यरजः कोष्ठागारवत्। णीहि-निर्गच्छ। आव. ३९४१ जम्बू० ९६ णीह-अनन्तकायभेदः। भग० ३००, ८०४। णील-नीलः, मरकतमणिः। जम्बू. ११३। णीय- कन्दविशेषः। उत्त०६९१। णीलवंतहहे- उत्तरकुरुषु नीलवद्व्हो नाम द्रहः। जम्बू. णीहया- निर्व्यापारा। व्यव० २५४। ३२९। णुज्झ-नुद्य-सौंदर्यम्। व्यव० १७३ अ। णीलवंते- नीलवान् दिग्हस्तिकूटं द्वितीयः। जम्बू. ३६०। | णुवन्नो- अनुपन्नस्त्वग्वर्तितः। बृह० २३७ आ। जम्बूद्वीपे द्वीपे नीलवन्नाम्ना द्वितीयः णुवोहेज्जा-उपळहयेत्-परिणामवृद्धि कुर्यात्। दशवै० ४८१ वर्षधरपर्वतः। जम्बू० २७७। णूणं- नूनं एवमर्थे। भग० १४। नूनंणीली- गच्छविशेषः। प्रज्ञा० ३२ उपमानावधारणतर्कप्रश्न-हेतुषु। प्रज्ञा० २४६। णीलीगुलिया-नीलीगुलिका-नीलीगुटिका। जम्बू. ३३। निश्चितम्। ज्ञाता०६६। णीलीभेए-नीलीभेदो-नीलीच्छेदः। जम्बू. ३३ | णूमं-दवियं, भिन्नं। निशी० ७० आ। माया। सूत्र० ३४॥ णीले-अष्टाशीतौ महाग्रहे पञ्चविंशतितमः। स्था० ७९। गहनं, मायेति। सूत्र. ५२। प्रच्छन्नं गिरिगहादिकम्। नीलवत्कुट-नीलवद्वक्षस्काराधिपकूटम्। जम्बू. ३७७ सूत्र० ८९,३०७। न्यवमम्। सम०७१। सूत्र० ३०७। णीलोभासे-अष्टाशीतौ महाग्रहे पञ्चविंशतितमः। स्था० | णमए-आच्छादयेत्। बृह. १७७ अ। मुनि दीपरत्नसागरजी रचित [23] "आगम-सागर-कोषः" [३]

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