Book Title: Agam Sagar Kosh Part 03
Author(s): Deepratnasagar, Dipratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम-सागर-कोषः (भागः-३)
[Type text]
णूमगिह-भूमिघरं। निशी० ६९ आ।
णेमिपासेसु-नेमिपार्श्वेषु। जम्बू० २०९। णूमियं- गोपितम्। उत्त० ११५
णेमी-नेमिः-कृतिकर्मदृष्टान्ते भगवान्। आव० ५१५१ णूमेति-नूमन्ति-गोपयन्ति। ज्ञाता० २२७।
नेमिः-धारा। जम्बू० २०४। णूमेस्सति-स्थापयिष्यति। निशी. १५४ अ।
णेम्म-निभ-सदृशम्। प्रश्न. १३४। विज्जादिएहिं णेति-निर्गच्छन्ति। आव०६३२१
रुक्खादी णमिज्जंतीति णेम्मं वर्ल्ड सिक्खा विज्जंतस्स णे-आत्मनिर्देशः। निशी० ३३०| अस्माकम्। बृह० ८८१ | अंगाणि णमि-ज्जति। निशी० ७१ । नो-अस्माकम्। सूत्र० ११३। नः। भग० १००
णेयगहणत्तणं- ज्ञायते इति ज्ञेयं-धर्मास्तिकायादि णेउणिअ-नैपुण्यं-आलेख्यादिकला लक्षणम्। दशवै. तगहनत्वं गह्वरत्वं ज्ञेयगहनत्वम्। आव०५९७। २४९।
णेयव्वं-नेतव्यं-संवेदनविषयतां प्रापणीयं प्रापयितव्यम्। णेउणियवत्थु-निपुणं वस्तु-अनुप्रवादपूर्वे
उत्त० ८। नेतव्यं-स्मृतिपथं प्रापणीयः। जम्बू. २७। आलापकविशेषः। उत्त. १६३।
णेयाउय-न्यायेन चरति-प्रवर्तत इति नैयायिकःणेउरं- नुपुरं-पादभूषणम्। आव० ३४९।
न्यायोपपन्नः। उत्त. १८५। निश्चित आयो-लाभो णेउरपंडिया- नुपुरपण्डिता। उत्त० ४९६|
न्यायः-मुक्तिरित्यर्थः स प्रयोजनमस्येति नैयायिकः। णेउरा-द्वीन्द्रियजन्तुविशेषः। प्रज्ञा० ४१|
उत्त० २१३ णेक्कंतितो-व्यतिक्रमः| निशी. २०२ अ।
णेवत्थं-नेपथ्यं-देशनेपथ्यंणेक्कारो-जुगुच्छितो, कोलिगजातिभेदो णेक्कारो। स्त्रीपुरुषाणामाभूषणसम्बन्धीवि-चारः। निशी० ४३ आ।
देशकथायाश्चतुर्थो भेदः। आव० ५८१। णेगम-वणियवग्गो जत्थ वसति तं णेगमं| निशी७० । णेवत्थकहा-तासामेव अन्यतमायाः आ। निगमेषु वा भवो नैगमः, निगमाः
कच्छाबन्धादिनेपथ्यस्य यत्प्रशंसादि नेपथ्यकथा। पदार्थपरिच्छेदाः। आव. २८३। न एकं नैकं-प्रभूतानि, स्था० २०९। नैकैर्मानैः-महासत्ता-सामान्यविशेषज्ञानैर्मिमीते णेवालं-नेपालं-देशविदेषः। उत्त. १०६। मिनोतीति वा नैकमः। आव. २८३। नैकेन
णेसज्जिते-नैषयिकः-समपदप्तादिनिषद्योपवेशी। सामान्यविशेषग्राहकत्वात् तस्यानेकेन ज्ञानेन मिनोति- | स्था० ३९७९
तीति नैकमः, अथवा निगमाः-निश्चिता- सत्थिएस-सालिमादियं पोतिएस्। निशी० ३२७ आ। र्थबोधास्तेषु कुशलो भवो वा नैगमः, अथवा नैको गमः- | णेसप्प-निधौ नैसर्पनामनि। जम्ब० १५८ नैसर्पः-नवअर्थमार्गो यस्य स प्राकृतत्वेन नैगमः। स्था० १५२। निधौ प्रथमः। स्था०४४८१ नैगमः। प्रज्ञा० २८४। नयविशेषः। प्रज्ञा० ३२७
णेहावगाढ-स्नेहावगाढं-स्नेहव्याप्तम्। ज्ञाता० १९९। णेगामोसा-न एके आमर्शाः अनेकामर्शाः, अनेकस्पर्शाः। | हिं-तैः-एतैः। उत्त० ३५६। तैः। आव० ११६| ओघ० ११०
णोइंदियओ-मणो। निशी० ८५आ। णेड्डं-नीडम्। आव० १८९। गृहम्। आव० ३९५) णोमालिआगुम्मा-नवमालिकागुल्माः। जम्बू. ९८१ णेति-उत्पादयति, करेति। निशी० २०५आ।
णोमालिय- गुल्मविशेषः। प्रज्ञा० ३२ णेत्तं-नेत्रम्। सूत्र० ३१२
णोल्लिय-नोदिता-स्वदेशगमनवैमख्येन णेदूर-म्लेच्छविशेषः। प्रज्ञा० ५५
यमपुरीगमनाभिमु-खीकृता। ज्ञाता० १६८1 णेमा-भमेरूज़ निष्क्रामन्तः प्रदेशाः। जम्ब० ४शणेमा | णोसअ-नोश्रुतं प्रत्याख्यानम्। आव० ४७९। नाम भूमिभागादूर्ध्वं निष्क्रामन्तः प्रदेशाः। जम्बू० २३) । | ण्हं-निपातः पूरणार्थो वर्तते। आव० १६७। वाक्यालङ्कारे णेमी- बाह्यपरिधिः। जम्बू. ३७। नेमिः-बाह्यपरिधिः। अवधारणे वा। सूत्र. ४१० प्रश्न. २०| जीवा० १९२
| ण्हवणं-स्नपनं-सौभाग्यपुत्राद्यर्थं वध्वादेर्मज्जनम्।
मुनि दीपरत्नसागरजी रचित
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"आगम-सागर-कोषः" [३]

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