Book Title: Agam Sagar Kosh Part 03
Author(s): Deepratnasagar, Dipratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
View full book text
________________
[Type text]
आगम-सागर-कोषः (भागः-३)
[Type text]
निषधवर्षधराधिपवासकूटम्। जम्बू. ३०८।
विहिंसन मनागपि न शकते, निशंतो वा परप्रशंसा णिसा-निशेव नित्यान्धकारत्वात् निशा-नर्कभूमिः। सूत्र | रहितः। उत्त०६५६। ४०१
णिस्सरणं- प्रस्खलम्। बृह. १५८ आ। णिसाओ-निषादः-ब्राह्मणेन शूद्रयां जातिः। उत्त० १८२ णिस्सरणणंदी-निःसरणेन-गच्छादेर्निर्गमेन नन्दति यो णिसाते-निषीदन्ति स्वरा यस्मिन् स निषादः। स्था० नन्दिा यस्य सः। स्था० २१७ ३९३
णिस्साकरउ-जो किंचि अववादपदं लभिता मुसलं णिसामिअ-निशम्य-आकर्ण्य
पक्खिवइ। निशी. १४९ अ। तत्राक्षिप्तचित्ततयेतिभावः। उत्त०४३४।
णिस्साणं-आलंबणं। निशी० १०२ आ। णिसासमणो-निःश्वसन्तीव अधोगमनसाधर्म्यात् णिस्सारो-निस्सारः। आव० ३५३। तदगतज-ननिःश्वाससाधादवा निःश्वसन्ती। ज्ञाता० | णिस्सासनिरंभण- निःश्वासं निरुणद्धि-नासिकां दृढं १५८
गण्हाति निःश्वासनिरोधार्थम्। ओघ० ८४१ णिसिटुं- निषेधनं-निषेधम्। बृह. २२३ आ। निसृष्टम्। णिस्सीला- निश्शीलाः-गताचाराः। जम्बू. १७१ आव० ३६७। अनुज्ञातम्। पिण्ड० ११३।
णिस्सेस-निःश्रेयसो-मोक्षः। उत्त० ३०५ निःश्रेयसःणिसिरणा-परिट्ठावणिया। निशी० ८७ आ।
निश्चितकल्याणः। राज०१०२ णिसिरामो-प्रयच्छामः। आचा० ३५०|
णिहए-निहतः-अपहतसर्वसमृद्धिः। जम्बू. २७७। णिसिरिय-निसृज्ज-पातयित्वा। सूत्र० ३१४|
णिहह-निहत्य-निवेश्य। जम्बू. १८७। णिसीयणं-उवविसणं| निशी०६०।
णिहणाहि-निजहि। आव० ३९६| णिसीयति-निषीदति-उपविशति। जीवा. २०११ णिहणिऊण-निहत्य। दशवै. ५९| णिसीयव्वं-निषीदितव्यं-उपवेष्टव्यं
णिहया-णिक्खाया। निशी० ७२ आ। संदंशकभूमिप्रमार्जनादि-न्यायेनेत्यर्थः। ज्ञाता०६१। णिहरति-निर्हरति-अपनयति उद्धरति। सूत्र० ३१३| णिसीहं-अप्रकाशम्। निशी. २३ अ, १८७ अ।
णिहा- कोहमाणादि। दशवै० ३३आ। णिसीहादि- छेदसुत्तं। निशी० ३० आ।
णिहाणपउत्तं-निधानप्रयुक्तम्। आव० ३५७। णिसीहिया-समणट्ठाण णिमित्तं णिसीहिया। निशी. णिहाय-निधाय-परित्यज्य। सूत्र. २४०, ४१०
२२३ । नैषेधिकी-निषीदनस्थानम्। जीवा. २०५। णिहालेयव्वं-निभालयितव्यः। उत्त०५१। निषदनस्थानम्। जम्बू०५१।
णिहिअ-निहितः-उप्तः। जम्बू. २४३। णिसुदंते-आद्रीभवत्स्। निशी. २४५आ।
णिहिणि-निहितम्। उत्त० २२१। णिसेगो-शुक्रपद्गलाहरणलक्षण ओजः। बृह. १०४ ।। णिहितं-पक्खितं। निशी० ८२आ। णिसेज्जणा-पुत्ता। निशी० २४७ अ।
णिहिरण्णो-निर्हिरण्यः-असारः। ओघ. १८८1 णिसेज्जा-निषद्या। आव० २२७। निषद्या स्त्रीभिः-कृता | णिहुए- निभृतः-अनुयुक्तः। सूत्र०१७३। माया, स्त्रीव सती वा। सूत्र. ११० निषदया-प्रणिपत्य | णिहुओ- प्रशान्तवृत्तिः। औप० ४८१ पृच्छा (गौतमस्य तिसुः अनियताः शोषाणां। आव०) णिहुय-उपशान्तः। प्रश्न० ४३। एगाए निसज्जाए एक्कारस अंगा चोद्दसहिं। | णिहुया-करचरणिदिएसु जे सत्था अच्छंति ते णिह्या। चोद्दसपूव्वाणि नं०)
निशी. ९। णिस्संचार-द्वारापद्वारैः जनप्रवेशनिर्गमवर्जितः। जिहे-निहा-माया। सूत्र. १७३। ज्ञाता०१४९।
णिहोडणा-निवारणम्। व्यव. २४३। णिस्संसो-नृशंसाः-निःशूकः, निष्क्रान्तो वा शंसायाः णीअवारं-नीचदवारं-नीचनिर्गमप्रवेशः। दशवै. १६७। श्लाघाया इति। प्रश्न. ५ नृशंसः-निस्तूंशो जीवान्। णीइ-निर्गच्छति। ओघ. १५९। निरेति-निर्गच्छति।
मुनि दीपरत्नसागरजी रचित
[22]
"आगम-सागर-कोषः" [३]

Page Navigation
1 ... 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 ... 272