Book Title: Acharang Sutram Part 04
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
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________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 2-1-1-2-1 (344) 33 चतुर्विध आहार आदि के विषय में इस प्रकार जाने कि- यह अशनादि आहार अष्टमी पौषधव्रत विशेष के महोत्सव में एवं अर्द्धमासिक, मासिक, द्विमासिक, त्रिमासिक, चतुर्मासिक, पंचमासिक और पाण्मासिक महोत्सव में, तथा ऋतु, ऋतुसन्धि और ऋतु परिवर्तन महोत्सव में बहुत से श्रमण शाक्यादिभिक्षु, ब्राह्मण, अतिथि, कृपण और भिखारियों को एक बर्तन से दो बर्तनों से एवं तीन और चार बर्तनों से परोसते हुए देखकर तथा छोटे मुख की कुम्भी और बांस की टोकरो से परोसते हुए देखकर एवं संचित किये हुए घी आदि पदार्थों को परोसते हुए देखकर इस प्रकार के ये अशनादि चतुर्विध आहार जो पुरुषान्तर कृत नहीं है यावत् अनासेवित एवं अप्रासुक है ऐसे आहार को मिलने पर भी साधु ग्रहण न करे। और यदि इस प्रकार जाने कि- यह आहार पुरुषान्तर कृत यावत् आसेवित प्रासुक और एषणीय है तो मिलने पर ग्रहण करें। IV टीका-अनुवाद : - वह साधु या साध्वीजी म. आहारादि के लिये गृहस्थों के घर में प्रवेश करने पर ऐसा देखे कि- अष्टमी पर्व के उपवासादिक पौषध-उत्सव है, तथा अर्धमासिक, मासिक आदि तथा ऋतु, ऋतु का अंतभाग और ऋतु का बदलना इत्यादि पर्व दिनो में बहुत सारे श्रमण, ब्राह्मण, अतिथि, कृपण एवं वनीपकों को एक पिठरक याने छोटे मुखवाला बर्तन (बटलोइ-तासला) में से कूर-चावल आदि लेकर दिये जा रहे आहारादि को भोजन करते हुए देखकर के... इसी प्रकार दो बर्तन, तीन बर्तन में से दिये जा रहे आहारादि को भोजन करते हुए देखकर तथा कुंभीमुख से या कलोवइ नाम के बर्तन से अथवा गोरस दूध आदि के संनिधि-संनिचय से दिये जा रहे आहारादि को भोजन करते हुए देखकर तथाप्रकार के आहारादि साधुओं के लिये बनाया गया अप्रासुक और अनेषणीय है ऐसा जानता हुआ साधु ऐसे आहारादि प्राप्त होने पर भी ग्रहण न करें... अब जब ऐसा जाने कि- अन्य पुरुष के लिये बनाया हुआ है यावत् आसेवित हो प्रासुक एवं एषणीय हो तब उन आहारादि को ग्रहण करें। अब कौन से घरों (कुल) में आहारादि के लिये प्रवेश करें... वह बात सूत्रकार महर्षि आगे के सूत्र से कहेंते है... .v सूत्रसार : प्रस्तुत सूत्र में बताया गया है कि- साधु को उस समय गृहस्थ के घर में आहार के लिए प्रवेश नहीं करना चाहिए या प्रविष्ट हो गया है तो उसे आहार नहीं ग्रहण करना चाहिए क्योंकि जिसके यहां अष्टमी के पौषधोपवास का महोत्सव हो या इसी तरह अर्धमास, एकमास, दो, तीन, चार, पांच या छः मास के पौषधोपवास (तपश्चर्या) का उत्सव हो या ऋतु, ऋतु सन्धि (दो ऋतुओं का सन्धि काल) और ऋतु परिवर्तन (ऋतु का परिवर्तन-एक ऋतु के अनन्तर