Book Title: Acharang Sutram Part 04
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
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________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 2-1-6-1-1 (486) 373 यदि कोई गृहस्थ उस पात्र पर नई क्रिया किए बिना ही लाकर दे तो साधु उसे कहे कि मैं तुम्हारे इस पात्र को चारों तरफ से भली-भांति प्रतिलेखना करके लूंगा। क्योंकि बिना प्रतिलेखना किए ही पात्र ग्रहण करने का केवली भगवान ने कर्मबंध का कारण बताया है। हो सकता है कि उस पात्र में पाणी बीज और हरी आदि हो, जिस से वह कर्मबन्ध का हेतु बन जाए। शेष वर्णन वस्त्रैषणा के समान जानना। केवल इतनी ही विशेषता है कि यदि वह पात्र तैल से, घृत से, नवनीत से और वसा या ऐसे ही किसी अन्य पदार्थ से स्निग्ध किया हुआ हो तो साधु स्थंडिल भूमि में जाकर वहां भूमि की प्रतिलेखना और प्रमार्जना करे। और तत्पश्चात् पात्र को धूली आदि से प्रमार्जित कर-मसल कर रूक्ष बना ले / यही साधु का समय आचार है। जो साधु ज्ञान दर्शन चारित्र से युक्त एवं पांच समितियों से समित है वह साधु के शुद्ध आचार को पालन करने का प्रयत्न करे। इस प्रकार मैं कहता हूं। IV टीका-अनुवाद : वह साधु या साध्वीजी म. पात्रकी गवेषणा करना चाहे तब वह यह जाने- देखे कितुंबडेके पात्र इत्यादि... तब जो साधु मजबूत-दृढ संघयण बलवाला हो वह उनमेंसे एक हि पात्र ग्रहण करे, एकसे अधिक नहि... यह बात (नियम) जिनकल्पवाले साधुओंके लिये है, और स्थविरकल्पवाले साधु तो मात्रक पात्रके सहित दो पात्र ग्रहण करें... यदि वह संघाटक साधुयुगल हो तब एक पात्रमें भोजन एवं दुसरे पात्रमें जल ग्रहण करें... और मात्रक पात्रमें तो आचार्य आदिके प्रायोग्य आहारादि हि ग्रहण करें... अथवा अशुद्ध आहारादि... . वह भिक्षु... इत्यादि सूत्र सुगम है... यावत् अधिक मूल्यवाले पात्र निर्दोष हो तो भी ग्रहण न करें... तथा अयोबंधनादि सूत्र भी सुगम है... तथा चार प्रतिमाओंके सूत्र भी ववैषणा की तरह जानीयेगा किंतु तीसरी प्रतिमामें दाताके खुदके पात्र कि- जो उपयोग कीया हुआ हो, या दो-तीन पात्रोंमें अनुक्रमसे उपयोग कीये हुए पात्रकी याचना करे... उपर कही गइ पात्रैषणाकी विधिसे पात्रकी गवेषणा करते हुए साधुको देखकर यदि कोइ गृहस्थ घरके महिला-बहिन आदिको कहे कि- इन पात्रोंको तैल आदिसे साफ करके साधुको दीजीये... इत्यादि सूत्र सुगम है... तथा वह गृहस्थ साधुको कहे कि- आपको देनेके लिये पात्र खाली नहि है अतः आप मुहूर्त (दो घडी) तक ठहरीये, तब तक मैं आहारादि बना करके पात्रमें भरकर देता हूं... इस प्रकार रसोड (आहारादि) बनानेवाले उस गृहस्थको साधु मना करे... यदि ना कहने पर भी वह गृहस्थ आहारादि बनावे तब साधु उस पात्रको ग्रहण न करें...