Book Title: Acharang Sutram Part 04
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
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________________ 420 2-2-3-3-1 (499) श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन स: भिक्षुः० स: यत् बहून् श्रमण-ब्राह्मण-कृपण-वनीपक-अतिथीन् समुद्दिश्य प्राणिनः भूतानि जीवान् सत्त्वान् यावत् औदेशिकं चेतयति, तथा० स्थण्डिलं पुरुषान्तरकृतं यावत् बहिः नीतः अन्यतरस्मिन् वा तथाप्रकारे स्थण्डिले न उच्चारप्रश्रवण / अथ पुनः एवं जानीयात्- अपुरुषान्तरकृतं यावत् बहिः नीतं अन्यतरस्मिन् वा तथाप्रकारे स्थण्डिले उच्चार० व्युत्सृजेत् / स:० यत्० अस्वप्रतिज्ञया कृतं वा कारितं वा प्रामित्यं वा छन्नं वा घृष्टं वा मृष्टं वा लिप्तं वा संमृष्टं वा सम्प्रधूपितं वा अन्यतरस्मिन् तथा० स्थण्डिले० न उच्चारप्रश्रवण स: भिक्षुः० सः यत् पुनः स्थण्डिलं जानीयात्- इह खलु गृहपतिः वा गृहपतिपुत्रा: वा कन्दानि वा यावत् हरितानि वा अभ्यन्तरतः वा बहिः निष्काशयन्ति, बहिः वा अभ्यन्तरे समाहरन्ति अन्यतरस्मिन् वा तथा० स्थण्डिले न उच्चार / स: भिक्षु:० स: यत् पुनः० जानीयात्- स्कन्धे वा पीठे वा मधे वा माले वा अट्टे वा प्रासादे वा अन्यतरे / वा० स्थण्डिले० न उच्चार०। सः भिक्षुः० सः यत् पुन:० अनन्तरहितायां पृथिव्यां सस्निग्धायां पृथिव्यां सरजस्कायां पृथिव्यां मृत्तिकायां मर्कटायां चित्तवत्यां शिलायां चित्तवति लेष्टौ घुणावासे वा दारुके वा जीवप्रतिष्ठिते वा यावत् मर्कट-सन्तानके अन्य० तथा० स्थण्डिले न उच्चार० // 499 // III सूत्रार्थ : साधु या साध्वी उच्चार प्रश्रवण मलमूत्र की बाधा हो तो स्वकीय पात्र में उससे निवृत्त होकर मूत्रादि को परठ दे। यदि स्वकीय पात्र न हो तो अन्य साधर्मी साधु से पात्र की याचना करके उसमें अपनी बाधा का निवारण करके परठ दे, कितु मल-मूत्र का कभी भी निरोध न करे। परन्तु अण्डादि जीवों से युक्त स्थान पर मल मूत्रादि न परठे न त्यागे। जो भूमि द्वीन्द्रियादि जीवों से रहित है, उस भूमि पर मल-मूत्र का त्याग करे। यदि किसी गृहस्थ ने एक साधु या बहुत से साधुओं का उद्देश रखकर स्थण्डिल बनाया हो अथवा एक साध्वी या बहुत सी साध्वियों का उद्देश्य रखकर स्थण्डिल बनाया हो अथवा बहुत से श्रमण ब्राह्मण, कृपण, भिखारी एवं गरीबों को गिन गिन कर उनके लिए प्राणी, भूत, जीव और सत्त्वों की हिंसा करके स्थण्डिल भूमि को तैयार किया हो तो इस प्रकार का स्थण्डिल पुरुषान्तर कृत हो या अपुरुषान्तर कृत हो किसी अन्य के द्वारा भोगा गया हो या न भोगा गया हो, उसमें साधु-साध्वी मलमूत्र का परित्याग न करे। यदि किसी गृहस्थ ने श्रमण, ब्राह्मण, कृपण, वनीपक-भिखारी, अतिथियों का निमित्त