Book Title: Acharang Sutram Part 04
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
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________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 2-3-2 (510) 471 भोजयित्वा मित्रज्ञाति० वर्गेण इदमेतत्-रुपं नामधेयं कारयन्ति / यत: प्रभृति अयं कुमारः तिशलाया: क्षत्रियाण्याः कुक्षौ गर्भ: आहुतः, ततः प्रभृति इदं कुलं विपुलेन हिरण्येन सुवर्णेन धनेन धान्येन माणिक्येन मौक्तिकेन शङ्ख शिलाप्रवालेन अतीव अतीव परिवर्धते, तस्मात् भवतु कुमारः वर्धमानः / . ततः श्रमणः भगवान् महावीरः पधधात्रीपरिवृतः, तद्यथा-क्षीरधाम्या 1. मज्जनधाच्या 2. मण्डनधात्र्या 3. क्रीडनधात्र्या 4. अङ्कधाञ्या 5. अङ्काद्अङ्क समाहियमाण: रम्ये मणिकुट्टिमतले गिरिकन्दरसलीनः इव चम्पकपादप: यथानुपुर्व्या संवर्धते। ततः श्रमणः भगवान् महावीरः विज्ञातपरिणतः विनिवृत्तबाल्यभावः अल्पौत्सुक्यान् उदारान् मानुष्यकान् पचलक्षणान. कामभोगान् शब्द-स्पर्श-रस-रुपगन्धान् परिचरन् एवं च विहरति // 510 / / III सूत्रार्थ : श्रमण भगवान महावीर इस अवसर्पिणी काल के सुषम-सुषम नामक आरक, सुषम आरक, सषम-दुषम आरक के व्यतीत होने पर और दुषम-सुषम आरक के बहु व्यतिक्रान्त होने पर, केवल 75 वर्ष, साढ़े आठ मास शेष रहने पर ग्रीष्म ऋतु के चौथे मास, आठवें पक्ष आषाढ़ शुक्ला षष्ठी की रात्री को उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र के साथ चन्द्रमा का योग होने पर, महाविजय सिद्धार्थ, पुष्पोत्तर वर पुण्डरीक, दिक्रस्वस्तिक, वर्धमान नाम के महाविमान से वीस सागरोपम की आयु को पूरी करके देवायु, देवस्थिति और देव भव का क्षय करके, इस जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र के दक्षिणार्द्ध भारत के दक्षिण ब्राह्मण कुन्ड पुर सन्निवेश में कुडाल गोत्रीय ऋषभदत्त ब्राह्मण की जलन्धरगोत्रीय देवानन्दा नाम की ब्राह्मणी की कुक्षि में सिंह की तरह गर्भ रुप में उत्पन्न हुए। श्रमण भगवान महावीर तीन ज्ञान (मतिज्ञान श्रुतज्ञान और अवधि ज्ञान) से युक्त थे वे यह जानते थे कि मैं स्वर्ग से च्यवकर मनुष्य लोक में जाऊंगा, मैं वहां से च्यव कर अब गर्भ में आ गया हूं। परन्तु वे च्यवन समय को नहीं जानते थे। क्योंकि वह समय अत्यन्त सूक्ष्म होता है। देवानन्दा ब्राह्मणी के गर्भ में आने के बाद श्रमण भगवान महावीर के हित और अनुकंपा करने वाले देवने, यह जीत आचार है। ऐसा कहकर वर्षाकाल के तीसरे मास, पांचवें पक्ष अर्थात्-आश्विन कृष्णा त्रयोदशी के दिन उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र के साथ चन्द्रमा का योग होने पर 82 रात्रिदिन के व्यतीत होने और 83 वें दिन की रात को दक्षिण ब्राह्मण कुण्ड