Book Title: Acharang Sutram Part 04
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
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________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 2-1-3-1-1 (445) 251 से दुसरे व्याम में विहार नहीं करना चाहिए। किन्तु वर्षाकाल के समय एक स्थान पर ही स्थित रहना चाहिए। तात्पर्य यह है कि- साधु वर्षा काल पर्यन्त भ्रमण न करे किन्तु एक ही स्थान पर ठहरे। IV टीका-अनुवाद : .... चतुर्मास-वर्षाकाल निकट में आने पर मेघ बरसने से साधुओं की सामाचारी (आचार) इस प्रकार हैं कि- आषाढ चतुर्मास के प्रारंभ से पहले हि वर्षावास क्षेत्र में पहुंचकर तृण फलक डगलक एवं भस्म तथा मात्रक आदि ग्रहण कर लें... क्योंकि- वरसाद बरसने से बहोत सारे क्षुद्र जंतु जैसे कि- इंद्रगोपक बीयावक गर्दभक आदि उत्पन्न होतें हैं तथा बहोत प्रकार के बीज भी अंकुरित होतें हैं... यहां वर्षाकाल एवं वृष्टि पढ़ की चतुर्भगी होती है... 1. . वर्षाकाल प्रारंभ वृष्टि होना . वषाकाल प्रारभ वृष्टि न होना 3. वर्षाकाल . के पहले वृष्टि होना 4. वर्षाकाल * के पहले वृष्टि न होना... इत्यादि... यहां चौथा विकल्प निर्दोष है, अतः वर्षाकाल के प्रारंभ के पहले हि एवं वृष्टि होने के पहले से हि चातुर्मास-क्षेत्र में साधु पहुंच जाएं... तथा चतुर्मास के पहले किंतु वर्षा होने के बाद विहार करने पर बिच के मार्ग में चलते हुए साधुओं को बहोत सारे क्षुद्र (स) जीव तथा बहोत प्रकार के बीज अंकुर यावत् मकडी के जाले आदि की विराधना हो तथा मार्ग भी लोगों के आने जाने से रहित हो... इस कारण से मार्ग तृण आदि से व्याकुल (भरे हुए) होने के कारण से साधुओं को ऐसे मार्ग में चलने की अनुमति नहि दी है... अर्थात् इस स्थिति में साधु एक गांव से अन्य गांव में न जावें... किंतु संयत हि रहकर वर्षाकाल में यथावसर प्राप्त वसति में हि तीन गुप्तिओं से गुप्त-लीन रहे, अर्थात् वर्षावास- चतुर्मास कल्प करें... अब इसका अपवाद कहतें हैं... v सूत्रसार : प्रस्तुत सूत्र में साधु को वर्षा काल में विहार करने का निषेध किया गया है। एक वर्ष में तीन चातुर्मास होते हैं- 1. ग्रीष्म, 2. वर्षा और 3. हेमन्त। इनमें वर्षाकाल में ही साधु को एक स्थान में स्थित होने का आदेश दिया गया है क्योंकि वर्षाकाल में पृथ्वी शस्य-श्यामला हो जाती है, क्षुद्र जन्तुओं की उत्पत्ति बढ़ जाती है अतः हरियाली एवं पानी की अधिकता के कारण साधु को वर्षाकाल में विहार नहीं करना चाहिए।