Book Title: Acharang Sutram Part 04
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
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________________ 426 2-2-3-3-2 (500) श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन वा गोप्रहेल्यासु वा गवादनीषु वा खनीषु वा अन्यतरस्मिन् वा तथाप्रकारे स्थण्डिले न उच्चारप्रश्रवणं व्युत्सृजेत्। सः यत् पुनः जानीयात्- डालवर्चसि वा शाकवर्चसि वा मूलकवर्चसि वा हस्तङ्करवसि वा अन्यतरस्मिन् वा तथाप्रकारे स्थण्डिले न उच्चारप्रश्रवणं व्युत्सृजेत्। स: भिक्षुः वा० सः यत्० अशनवने वा शणवने वा धातकीवने वा केतकीवने वा आम्रवणे वा अशोकवने वा नागवने वा पुन्नागवने वा चुल्लगवने वा अन्यतरेषु वा तथाप्रकारेषु स्थण्डिलेषु वा पत्रोपेतेषु वा पुष्पोपेतेषु वा फलोपेतेषु वा बीजोपेतेषु वा हरितोपेतेषु वा न उच्चारप्रश्रवणं व्युत्सृजेत् // 500 / / III सूत्रार्थ : संयमशील साधु या साध्वी स्थण्डिल के सम्बन्ध में यह जाने कि जिस स्थान पर गृहस्थ और गृहस्थ के पुत्रों ने कन्दमूल यावत् बीज आदि रखे हुए है, या रख रहे हैं या रखेंगे। तो साधु इस प्रकार के स्थानों में मल-मूत्रादि का त्याग न करे। इसीप्रकार गृहस्थ लोगों ने जिस स्थान पर शाली, ब्रीही, मूंग, उड़द, कुलत्थ, यव और ज्वार आदि बीजे हुए हैं, बीज रहे हैं और बीजेंगे, ऐसे स्थानों पर भी साधु मल-मूत्रादि का त्याग न करे। जहां कहिं कचरे के ढेर हों, भूमि फटी हुई हो, भूमि पर रेखाएं पड़ी हुई हो, कीचड़ हो, इक्षु के दण्ड हों, खड़े हों, गुफायें हों, कोट की भित्ति आदि हो, सम-विषम स्थान हो तो ऐसे स्थानों पर भी साधु मलमूत्र का त्याग न करे। इसी प्रकार जहां पर चूल्हे हों तथा भैंस, बैल, घोड़ा, कुक्कुड़, बन्दर, हाथी, लावक (पक्षी), चटक, तितर, कपोत और कपिंजल (पक्षी विशेष) आदि के रहने के स्थान हों या इनके लिए जहां पर कोई क्रियाएं या कुछ कार्य किए जाते हों ऐसे स्थानों पर भी मल-मूत्र का त्याग न करे। फांसी देने के स्थान, गीध पक्षी के समक्ष पड़कर मरने के स्थान, वृक्ष पर से गिर कर मरने के स्थान, पर्वत पर चढ़कर वहां से गिर कर मरने के स्थान, विष भक्षण करने के स्थान, अग्नि में जल कर मरने के स्थान, इस प्रकार के स्थानों पर भी मल-मूत्र का त्याग न करे। तथा जहां पर बाग-उद्यान, वन, वनखंड, देवकुल, सभा और प्रपा-पानी पिलाने के स्थान 'परब' आदि हों तो ऐसे स्थानों पर भी मल-मत्रादि न परठे। कोट की अटारी, राजमार्ग, द्वार, नगर का बड़ा द्वार इन स्थानों पर मल-मूत्रादि का विसर्जन न करे। नगर में जहां पर तीन मार्ग मिलते हों या बहुत से मार्ग मिलते हों, या जो स्थान चतुर्मुख हों ऐसे स्थानों पर भी मल-मूत्र का त्याग न करे।