Book Title: Acharang Sutram Part 04
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
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________________ 398 2-1-7-2-2 (494) श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन पर ठहरना चाहता हूं। जितने समय के लिए आप आज्ञा देंगे उतने समय ठहर कर बाद में विहार कर दूंगा। इस तरह बागवान की आज्ञा प्राप्त होने पर वह वहां ठहरे। यदि वहां स्थित साधु को आमफल खाने की इच्छा हो कैसे आमफल को ग्रहण करना चाहिए ? इसके सम्बन्ध में बताया गया है कि वह आमफल अंडादि से युक्त हो तो वह साधु उसे ग्रहण न करे। अंडादि से रहित होने परन्तु यदि उसका तिरछा छेदन न हुआ हो तथा उसके अनेक खण्ड भी न किए गए हों तो भी उसे साधु स्वीकार न करे। परन्तु यदि वह आमफल अंडादि से रहित हो, तिरछा छेदन किया हुआ हो और खंड 2 किया हुआ हो तो अचित्त एवं प्रासुक होने से साधु उसे ग्रहण कर सकता है। परन्तु आम का आधा भाग, उसकी फाड़ी, उसकी छाल और उसका रस एवं उसके किए गए सूक्ष्म खंड यदि अंडादि से युक्त हों या अंडादि से रहित होने पर भी तिरछे कटे हुए न हों और खंड 2 न किए गए हों तो साधु उसे भी ग्रहण न करे। यदि उनका तिरछा छेदन किया गया है, और अनेक खंड किए गए हैं तब उसे अचित्त और प्रासुक जानकर साधु ग्रहण कर ले। यदि कोई साधु या साध्वी इक्षु वन में ठहरना चाहे और वन पालक की आज्ञा लेकर वहां ठहरने पर यदि वह इक्षु (गन्ना) खाना चाहे तो पहले यह देख ले कि जो इक्षु अंडादि से युक्त है और तिरछा कटा हुआ नहीं है तो वह उसे ग्रहण करना न चाहे / यदि अंडादि से रहित और तिरछा छेदन किया हुआ हो तब उन्हे अचित्त और प्रासुक जानकर प्राप्त होने पर ग्रहण कर ले। इसका शेष वर्णन आम के समान ही जानना चाहिए। यदि साधु इक्षु के पर्व का मध्य भाग, इक्षुगंडिका, इक्षुत्वचा-छाल, इक्षुरस और इक्षु के सूक्ष्म खंड आदि को खाना-पीना चाहे तो वह अंडादि से युक्त या अंडादि से रहित होने पर भी तिरछा कटा हुआ न हो तथा वह खंड-खंड भी न किया गया हो तो साधु उसे ग्रहण न करे। इसी प्रकार लशुन के सम्बन्ध में भी तीनों आलापक समझने चहिए। रि IV टीका-अनुवाद : ___ वह साधु या साध्वीजी म. कभी आम (आम) के बगीचे में उसके स्वामी या रक्षक आदि के पास अवग्रह की याचना करके ठहरे, तब वहां यदि होने पर कारण (प्रयोजन) उपस्थित आम-फल खाने-पीने की इच्छा करे... किंतु यदि वे आमफल अंडे (जीव-जंतु) सहित या मकडी के जाले सहित हो तो अप्रासुक (अकल्पनीय) जानकर उन आम्रफलों को ग्रहण न करें... किंतु यदि वह साधु देखे कि- यह आमफल अंडे रहित हैं या मकडी के जाले से रहित है, परंतु तिरच्छे छेदे (काटे) हुए नहि है, तथा अखंडित हैं अतः अप्रासुक हैं ऐसा जानने पर उन आमफलों को ग्रहण न करें... और यदि वह साधु देखे कि- यह आमफल अंडे रहित हैं