Book Title: Acharang Sutram Part 04
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
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________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 2-1-2-1-4 (401) 179 बसा से मालिश करेगा। और फिर उसे प्रासुक शीतल या उष्ण जल से स्नान कराएगा या लोध्र से, चूर्ण से तथा पद्म से एक अथवा अनेक बार उसके शरीर को घर्षित करेगा, तथा शरीर की स्निग्धता को उबटन आदि से दूर करेगा। उस मैल को साफ करने के लिए उसके शरीर का प्रासुक शीतल या उष्ण जल से प्रक्षालन करेगा। उसके मस्तक को धोएगा या उसे जल से सिंचित करेगा, अथवा अरणी के काष्ठ को परस्पर रगड़ कर अग्नि प्रज्वलित करेगा और उससे साधु के शरीर को गर्म करेगा। इस तरह गृहस्थ के परिवार के साथ उसके घर में ठहरने से अनेक दोष लगने की संभावना देखकर भगवान ने ऐसे स्थान पर ठहरने का निषेध किया है। IV टीका-अनुवाद : वह साधु या साध्वीजी म. जब ऐसा जाने कि- इस उपाश्रय में स्त्रीजन रहे हुए हैं तथा अथवा क्षुद्र ऐसे सिंह, कुत्ता, बिल्ली इत्यादि रहे हुए हैं... तथा पशुओं के आहार-पानी रहे हुए हैं... अथवा गृहस्थों से भरे हुए उपाश्रय में साधु स्थान शय्या निषद्यादि न करें... क्योंकि- ऐसे उपाश्रय में रहने से कर्मो का बंधन होता है... तथा गृहस्थ के कुटुंब के साथ रहनेवाले साधु को कर्मबंधनादि अनेक दोष लगतें हैं.. तथा गृहस्थों के वहां रहने से वे साधु लोग भोजनादि क्रिया निःशंक नहि कर शकतें... अथवा तो कोइ रोग-व्याधि उत्पन्न हो... जैसे कि- अलशक याने हाथ-पैर आदि का स्तंभित होना अथवा हाथ-पाउं में सोजे आ जाना, विशूचिका तथा सरदी इत्यादि पीडाएं उस साधु को पीडा करे, अथवा अन्य कोइ ज्वरादि रोग या तत्काल प्राण जाय ऐसा शूल देह में उत्पन्न हो... इस स्थिति में साधु को रोगादि से पीडित देखकर कोइ गृहस्थ करुणाभाव से या पूज्य-भक्ति से उस साधु के शरीर को तैल, घी, मक्खन आदि से मसले और बाद में स्नान याने सुगंधिद्रव्य, कल्क याने कषायद्रव्य का कवाथ, लोध्र और वर्णक याने कंपिल्लकादि, यव आदि के चूर्ण, तथा पद्मक इत्यादि पदार्थों से एक बार या बार बार देह को घसे, घीसने के बाद तैलादि के अभ्यंग को दूर करने के लिये उदवर्तन करे और उसके बाद शीतजल से या गरम जलसे देह की शुद्धि करे या पुरे शरीर का स्नान करे... तथा लकडी से लकडी का घर्षण करके अग्नि उत्पन्न करे और प्रज्वलित करके साधु के शरीर को एक बार या बार बार सेक दे... इस कारण से साधुओं को पूर्व कही गइ प्रतिज्ञाएं है कि- इस प्रकार के उपाश्रय में साधु स्थान, शय्या, निषधादि न करे... .V सूत्रसार : प्रस्तुत सूत्र में बताया गया है कि- साधु-साध्वी को ऐसे मकान में नहीं ठहरना चाहिए जिसमें गृहस्थ सपरिवार रहता हो और अपने परिवार एवं पशुओं के पोषण के लिए सब तरह के सुख-साधन एवं भोगोपभोग की सामग्री रखी हो। क्योंकि, गृहस्थ के साथ ऐसे मकान