Book Title: Acharang Sutram Part 04
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
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________________ 324 2-1-4-2-1 (470) श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन की निरवद्य भाषा के प्रयोग से सुनने वाले मनुष्य के मन में क्रोध नहीं, किंतु हर्ष भाव पैदा होता है, अतः वह साधु ऐसी मधुर एवं निर्दोष भाषा बोल सकता है। इसी प्रकार साधु अथवा साध्वी बावड़ी. कुंएं, खेतों के क्यारे यावत् महल-घरों को देखकर उनके सम्बन्ध में इस प्रकार न कहे कि यह अच्छा बना हुआ है, बहुत सुन्दर बना हुआ है, इस पर अच्छा कार्य किया गया है, यह कल्याणकारी है और यह कार्य करने योग्य है। इस प्रकार की भाषा से सावध क्रिया का अनुमोदन होता है। अतः साधु इस प्रकार की सावध भाषा न बोले। किन्तु उन बावडी यावत् मकान-घरों को देखकर इस प्रकार कहे कि यह आरम्भ कृत है, सावध है और यह प्रयत्न साध्य है, तथा यह देखने योग्य है, रूपसम्पन्न है और प्रतिरूप है। इस प्रकार की निरवध भाषा का प्रयोग करे। IV टीका-अनुवाद : ___ वह साधु या साध्वीजी म. कभी कहिं गंडीपद, कुष्ठी आदि रूप देखे तब उन्हे गंडीपद आदि नाम से न बोलें... जैसे कि- गंडी याने गंडवाले, अथवा काटे हुए गुल्फ-पैरवाले... वह गंडी है... किंतु उन्हें गंडी कहकर बुलाना नहि चाहिये... इसी प्रकार कुष्ठी को कुष्ठी कहकर न बुलाइयेगा... इसी प्रकार अन्य रोग-व्याधिवाले मनुष्य को उन रोगों के नाम से न बुलाइयेगा... यावत् मधुमेही को मधुमेही न कहीयेगा... मधुमेही याने निरंतर मूत्र होने के रोगवाला... यहां आठवे धूताध्ययन में रोग-विशेष का कथन कीया गया है... अतः इस अपेक्षा से सूत्र में “यावत्" पद का कथन कीया है... इसी प्रकार- कटे हुए हाथवाले, कटे हुए पैरवाले, कटी हुइ नासिकावाले, कटे हुए कानवाले कटे हुए होठवाले इत्यादि... और भी इस प्रकार के काणे, कुंटे आदि... इन विशेषणोंवाले शब्द बोलने पर यदि वे मनुष्य कोप करतें हैं, तब उन्हे ऐसे प्रकार के वचनों से न बुलाइयेगा..... अब जिस प्रकार से बोलना चाहिये वह कहतें हैं... जैसे कि- वह साधु यदि गंडीपद आदि रोगवाले मनुष्य को देखे तब उनमें रहे हुए ओजः या तेजः आदि विशेष गुण को लेकर हि जरुरत होने पर उन्हे बुलाइयेगा... जैसे कि- केश के समान कृष्ण... कुत्ते के मृत शरीर में भी श्वेत दांत के गुण लेने की तरह विशिष्ट गुण को लेकर हि उन्हे बुलाइये... इस प्रकार साधु गुणयाही बने... . तथा वह साधु यदि इस प्रकार के दृश्य-रूप देखें जैसे कि- वप्र याने किल्ला यावत् घर महल आदि तब साधु सदोष भाषा न बोले... वह इस प्रकार- यह सुकृत है, यह अच्छा कीया है, यह सुंदर है, यह कल्याणकारक है, यह ऐसा हि करने योग्य है, इत्यादि... ग्रह और ऐसे अन्य प्रकार के पापाचरण के अनुमोदनवाले वचन साधु न बोलें...