Book Title: Acharang Sutram Part 04
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
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________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 2-1-5-2-1 (483) 359 आचाराङ्गसूत्रे श्रुतस्कन्ध-२ चूलिका - 1 अध्ययन - 5 उद्देशक - 2 // वस्त्रैषणा / पहेला उद्देशक कहा अब दुसरे उद्देशक का प्रारंभ करतें हैं यह इन दोनों में परस्पर इस प्रकार संबंध है कि- पहले उद्देशक में वस्त्र ग्रहण की विधि कही, अब यहां दुसरे उद्देशक में वस्त्र धारण करने की विधि कहेंगे... इस संबंध में आये हुए इस दुसरे उद्देशक का यह प्रथम सूत्र है... I सूत्र // 483 // ___ से भिक्खू वा० अहेसणिज्जाइं वत्थाई जाइज्जा, अहापरिग्गहियाई वत्थाई धारिज्जा, नो धोइज्जा नो रएज्जा नो धोयरत्ताइं वत्थाई धारिज्जा, अपलिउंचमाणो गामंतरेसु० ओमचेलिए, एयं खलु वत्थधारिस्स सामग्गियं / से भिक्खू वा० गाहावडकुलं पविसिउकामे सव्वं चीवरमायाए गाहावइकुलं निक्खमिज्ज वा पविसिज्ज वा, एवं बहिय विहारभूमिं वा वियारभूमिं वा गामाणुगामं वा दूइज्जिज्जा, अह पुण० तिव्वदेसियं वा वासं वासमाणं पेहाए जहा पिंडेसणाए, नवरं सव्वं चीवरमायाए // 483 // II संस्कृत-छाया : सः भिक्षुः वा० अथ एषणीयानि वस्त्राणि याचेत, यथापरिगृहीतानि वस्राणि धारयेत्, न प्रक्षालयेत् न रञ्जयेत्, न धौतरक्तानि वस्राणि धारयेत्, अगोपयन् यामान्तरेषु० अवमचेलिकः एतत् खलु वस्त्रधारिणः सामग्यम् / _ सः भिक्षुः वा० गृहपतिकुलं प्रविष्टकामः सर्वं चीवरं (वस्त्र) आदाय गृहपतिकुलं निष्क्रामेत् वा प्रविशेत् वा, एवं बहिः विहारभूमिं वा विचारभूमिं वा ग्रामानुग्रामं वा गच्छेत्, अथ पुनः० तीव्रदेशिकां वा वर्षा वर्षन्तं प्रेक्ष्य यथा पिण्डै षणायां, नवरं सर्व चीवरमादाय / / 483 // III सूत्रार्थ : संयमशील साधु या साध्वी भगवान द्वारा दी गई आज्ञा के अनुरूप एषणीय और निर्दोष वस्त्र की याचना करे और मिलने पर उन्हें धारण करे। परन्तु, विभूषा के लिए वे उन्हें न धोए