Book Title: Acharang Sutram Part 04
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
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________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी-हिन्दी-टीका 2-3-2 (510) 475 हुए कल्प सूत्र का उल्लेख किया गया है, इससे कल्पसूत्र की रचना का आधार आगम ही 'प्रतीत होते है। इस तरह हम कह सकते हैं कि आगमों में अनेक स्थलों पर गर्भ संहरण का उल्लेख प्राप्त होने के कारण इस घटना को घटित होने में सन्देह को अवकाश नहीं है... प्रस्तुत सूत्र में यह बताया गया है कि भगवान महावीर गर्भावास में मतिश्रुत और अवधि इन तीन ज्ञानों से युक्त थे। वे अपने अवधिज्ञान से यह जानते थे कि मेरे गर्भ का संहरण किया जाएगा और त्रिशला की कुक्षि में रखने के बाद भी जानते थे कि मुझे देवानन्दा की कुक्षि से यहां लाया गया है इस तरह वे अपने गर्भ संहरण के सम्बन्ध में हुई समस्त क्रियाओं को जानते थे। किंतु संहरण काल को नहि जानते थें। इस प्रसंग पर यह प्रश्न हो सकता है कि गर्भ का संहरण करते समय गर्भ को कोई कष्ट तो नहीं होता ? आगम में इसका स्पष्ट उल्लेख मिलता है कि इस क्रिया से गर्भ को कोई कष्ट नहीं हुआ। यह क्रिया देव द्वारा निष्पन्न हुई थी, इसलिए गर्भस्थ जीव को बिल्कुल त्रास नहीं पहुंचा। उसे सुख पूर्वक एक गर्भ से दूसरे गर्भ में स्थानान्तरित कर दिया गया। प्रस्तुत सूत्र में बताया गया है कि ग्रीष्म ऋतु के प्रथम मास और द्वितीय पक्ष अर्थात् चैत्र शुक्ला त्रयोदशी के दिन उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में त्रिशला महाराणी ने बिना किसी प्रकार की पीड़ा के, सुख पूर्वक बाधा-पीड़ा से रहित पुत्र को जन्म दिया। भगवान के जन्म के समय माता एवं पुत्र को कोई कष्ट नहीं हुआ। दोनों स्वस्थ, नीरोग एवं प्रसन्न थे। ___ प्रस्तुत सूत्र में बताया गया है कि भगवान के जन्म से भवनपति, वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक चारों जाति के देवों के मन में हर्ष एवं उल्लास छा गया और वे प्रसन्नता पूर्वक भगवान का जन्मोत्सव मनाने को आने लगे। उन देव देवियों के रत्न-जडित विमानों की ज्योति एवं मधुर ध्वनि से वह रात्रि ज्योतिर्मय हो गई और चारों ओर मधुर ध्वनि सुनाई देने लगी। प्रस्तुत सूत्र में बताया गया है कि भगवान महावीर के जन्म पर हर्ष विभोर होकर देवो ने अमृत, सुवासित पदार्थ, पुष्प, चांदी, स्वर्ण एवं रत्नों आदि की वर्षा की। उन्होंने उस क्षेत्र को सुवासित एवं रत्नमय बना दिया। महान् आत्माओं के प्रबल पुण्य से यह सब संभव हो सकता है। प्रस्तुत सूत्र में भगवान के जन्मोत्सव का उल्लेख किया गया है। भगवान का जन्म होने पर 56 दिशा कुमारियों ने भगवान का शुचि कर्म किया और 64 इन्द्रों ने भगवान को मेरु पर्वत के पाण्डुक वन में ले जाकर उनका जन्म अभिषेक किया। इसका विस्तृत वर्णन जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति में किया गया है और उसी के आधार पर कल्पसूत्र में भी उल्लेख किया