Book Title: Acharang Sutram Part 04
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
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________________ 354 2-1-5-1-7 (481) श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन अध्रुवं अधुवं अस्थिरं अस्थिरं अस्थिरं अस्थिरं अलम् अलम् अलम् अलम् अलम् अलम् अलम् अलम् अधारणीयम् धारणीयम् अधारणीयम् धारणीयम् अधारणीयम् धारणीयम् अधारणीयम् धारणीयम् स्थिरं अधुवं अध्रुवं स्थिरं स्थिरं स्थिरं 16. अब इन सोलह (16) विकल्पों में से पंद्रह (15) विकल्प अशुद्ध हैं, मात्र एक हि सोलहवा विकल्प शुद्ध कहा गया है... अतः इस सोलहवे विकल्प के अधिकार में यह सूत्र कहा गया हैं... वह इस प्रकार- वह साधु या साध्वीजी म. जब इस प्रकार के चार पदों से विशुद्ध वस्त्र है ऐसा जाने तब यदि वह वस्त्र प्राप्त हो तो उसे ग्रहण करें... तथा वह साधु या साध्वीजी म. जब ऐसा देखें कि- “मेरी पास नया वस्त्र नहि है" अतः यदि वह साधु उस अपने पुराने वस्त्र को जल से धोकर एवं सुगंधि द्रव्यों से सुवासित करने का प्रयत्न करे वह उचित नहि है... अतः पुराने वस्त्र को सुंदर बनाने का प्रयास न करें... __ तथा वह साधु एवं साध्वीजी म. जब देखे कि- मेरी पास नया वस्त्र नहि है, तब उस पुराने वस्त्र को शीत जल से बार बार न धोवें... यदि वह साधु गच्छनिर्गत (जिनकल्पवाले) है, तब वह साधु मल से मलीन वस्त्र को जल से धोवे नहि एवं सुगंधि द्रव्यों से उस वस्त्र को सुगंधित भी न करें... किंतु यदि वह साधु स्थविर कल्पवाला है तो लोकोपघात के भय से जयणा के साथ अचित्त जल से वस्त्र के मैल को दूर करे... इत्यादि.... अब धोये हुए वस्त्र को सुखाने की विधि का अधिकार कहतें हैं... V सूत्रसार : प्रस्तुत सूत्र में बताया गया है कि साधु को ऐसा वस्र स्वीकार नहीं करना चाहिए, जो अण्डे एवं मकड़ी के जालों या अन्य जीव-जन्तुओं से युक्त हो। इसके अतिरिक्त वह वस्त्र भी साधु के लिए अग्राह्य है, जो अण्डों आदि से युक्त तो नहीं है, परन्तु जीर्ण-शीर्ण होने के कारण पहनने के अयोग्य है और गृहस्थ भी उसे कुछ दिन के लिए ही देना चाहता है ओर साधु को भी वह पसन्द नहीं है। अतः जो वस्त्र अण्डों आदि से रहित हो, मजबूत हो, गृहस्थ पूरी अभिलाषा के साथ देना चाहता हो और साधु को भी पसन्द हो तो ऐसा कल्पनीय वस्त्र साधु ले सकता है।