Book Title: Acharang Sutram Part 04
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
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________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 2-1-2-1-5 (402) 181 मा वा उपद्रवन्तु, अथ भिक्षूणां पुटवोप० यत् तथाप्रकारे सागा० नो स्थानं वा घेतयेत् // 402 // III सूत्रार्थ : . गृहस्थों से युक्त उपाश्रय में निवास करना साधु के लिए कर्म बन्ध का कारण कहा है। क्योंकि उसमें गृहपति, उसकी पत्नी, पुत्रिय, पुत्रवधु, दास-दासियां आदि रहती हैं और कभी वे एक-दूसरी को मारें, बांधे या उपद्रव करें तो उन्हें ऐसा करते हुए देखकर मुनि के मन में ऊंचे-नीचे भाव आ सकते हैं। वह यह सोच सकता है कि ये परस्पर लड़े-झगड़े या लड़ाई-झगड़ा न करें आदि / इसलिए तीर्थकरों ने साधु को पहले ही यह उपदेश दिया है कि वह गृहस्थ से युक्त उपाश्रय में न ठहरे। IV टीका-अनुवाद : . - गृहस्थवाले उपाश्रय (मकान) में रहनेवाले साधु को कर्मबंध होता है, क्योंकि- ऐसे उपाश्रय में बहोत प्रकार के अपाय याने उपद्रवों की संभावना हैं... जैसे कि- गृहस्थादि गृहपति यावत् दास-दासियां परस्पर आक्रोशादि करे... तब उनके परस्पर होनेवाले आक्रोशादि को देखकर उस साधु का मन “उंचा-नीच' हो... “उंचा' याने यह लोग ऐसा आक्रोशादि न करे इत्यादि... तथा "नीचा' याने परस्पर आक्रोशादि करे इत्यादि... शेष सुगम है... सूत्रसार : प्रस्तुत सूत्र में भी परिवार से युक्त मकान में ठहरने का निषेध किया है। क्योंकि कभी पारिवारिक संघर्ष होने पर साधु के मन में भी अच्छे एवं बुरे संकल्प विकल्प आ सकते हैं। वह किसी को कहेगा कि तुम मत लड़ो और किसी को संघर्ष के लिए प्रेरित करेगा। इस तरह वह साधना के पथ से भटककर झंझटों में उलझ जाएगा। यहां प्रश्न हो सकता है कि किसी को लड़ने से रोकना तो अच्छा है, फिर यहां उसका निषेध क्यों किया गया ? इसका समाधान यह है कि परिवार के साथ रहने के कारण उसका मन तटस्थ न रहकर राग-द्वेष से युक्त हो जाता है और इस कारण वह अपने अनुरागी व्यक्ति का पक्ष लेकर विरोधी को कना चाहता है और अनरागी को भडकाता है. उसकी यह राग-द्वेष यक्त प्रवत्ति कर्म बन्ध का कारण होने से साधु के लिए इसका निषेध किया है। यदि कोई साधु तटस्थ एवं मध्यस्थ भाव से संघर्ष को शान्त करने का प्रयत्न करता है तो उसका कहीं निषेध नहीं किया गया है। भगवान महावीर ने कहा है कि साधु जनता को शान्ति का मार्ग बताए और उपदेश के 'द्वारा कलह को शान्त करने का प्रयत्न करे। प्रस्तुत प्रसंग में जो निषेध किया है, वह रागवेष युक्त भाव से किसी का पक्ष लेकर हां या ना करने का निषेध किया गया है, और इसी