Book Title: Acharang Sutram Part 04
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
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________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 2-1-1-3-7.(354) 57 है अथवा अस जीव उडते हैं और गिरते हैं। ऐसा देखकर या ऐसा जानकर अपने सभी पात्रादि उपकरणों को ग्रहण करके माधुकरी के लिए गृहस्थ के घर में प्रवेश न करे और न निकले, इसी तरह न स्वाध्याय भूमि या शौच भूमि में जाय ! एक गांव से दूसरे गांव भी न जावे / || 354 // IV टीका-अनुवाद : वह साधु ऐसा देखे कि- मोटी धार से एवं बहुत क्षेत्र में बरसात बरसता हो, तथा अंधकार वाली महिका याने धूमस गिर रही हो, तथा महावायु के साथ धूली उड रही हो, तथा तिर्यक् संपातिम अस प्राणी-जंतु बहुत सारे चारों और उड रहे हो, इस स्थिति में सर्व पात्र आदि उपकरणों को लेकर गृहस्थों के घरों में आहारादि पिंड की इच्छा से न प्रवेश करे या न निकले... तथा बाहर स्वाध्याय भूमि या स्थंडिलभूमि में भी न जायें या न निकले... यावत् यामानुयाम गमन भी न करें... यहां सारांश यह है कि- साधुओं की सामाचारी हि ऐसी है कि- गच्छ-निर्गत जिनकल्पिकादि तथा गच्छ में रहे हुए स्थविर कल्पिक साधु उपाश्रय से बाहर निकलते वख्त उपयोग देकर देखतें हैं, और यदि बरसात या धूमस हो तो जिनकल्पिक साधु उपाश्रय से बाहर न निकले... क्योंकि- उनके शरीर का सामर्थ्य हि ऐसा है कि- वे छह माह तक मल त्याग को रोक सकतें हैं... तथा स्थविर कल्पवाले साधु कारण प्राप्त होने पर बाहर जायें किंतु सभी उपकरण लेकर न जायें... . यहां तक जुगुप्सित (निंदनीय) कुलों में संभवित दोषके दर्शन होने से प्रवेश का निषेध कहा है... . ... अब अनिन्दनीय कुलों में भी कहिं कहिं दोष दिखने से सूत्रकार महर्षि आगे के सूत्र से प्रवेश का निषेध करेंगे... V सूत्रसार : प्रस्तुत सूत्र में बताया गया है कि- यदि देश व्यापी वर्षा बरस रही हो, धुंध पड़ रही हो, आंधी के कारण धूल उड़ रही हो, पतंगे आदि स जीव पर्याप्त संख्या में उड़ एवं गिर रहे हों, ऐसी अवस्था में सभी भण्डोपकरण लेकर साधु को आहार के लिए या शौच एवं स्वाध्याय के लिए अपने स्थान से बाहर नहीं जाना चाहिए। और ऐसे प्रसंग पर एक गांव से दूसरे गांव को विहार भी नहीं करना चाहिए। क्योंकि- ऐसे प्रसंग पर यदि साधु गमनागमन करेगा तो अप्कायिक जीवों की एवं अन्य प्राणियों की हिंसा होगी। अतः उनकी रक्षा के लिए साधु को वर्षा आदि के समय पर अपने स्थान पर ही अवस्थित रहना चाहिए।