Book Title: Acharang Sutram Part 04
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
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________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 2-2-4-1-3 (504) 439 स: भिक्षुः वा० अन्यतरान् विरूपरूपान् महोत्सवान् एवं जानीयात्, तद्यथास्त्री: वा पुरुषान् वा स्थविरान् वा बालान् वा मध्यमान् वा आभरणविभूषितान् वा गायत: वा वादयत: वा नृत्यत: वा हसत: वा रममाणान् मुह्यतो वा विपुलं अशनं पानं खादिम स्वादिमं परिभुज्जानान् वा परिभाजयतः वा विक्षिपत: वा विगोपयतः वा अन्य० तथा० विरूपरूपान् महोत्सवान् कर्णश्रवणप्रतिज्ञया न अभिo सः भिक्षुः० न इहलौकिकैः शब्दैः, न परलौकिकैः शब्दैः, न श्रुतैः शब्दैः, न अश्रुतैः शब्दैः, न दृष्टैः शब्दः, न अदृष्टैः शब्दैः, न कान्तैः शब्दैः सज्येत न गृद्धयेत न मुह्येत, न अध्युपपद्येत, एतत् खलु० यावत् यतेत इति ब्रवीमि // 504 // III सूत्रार्थ : संयमशील साधु या साध्वी कथा करने के स्थानों, महोत्सव के स्थानों जहां पर बहुत परिमाण में नृत्य, गीत, वादित्र, तंत्री, वीणा, तल-ताल, त्रुटित, ढोल इत्यादि वाघ बजते हों तो उन स्थानों में होने वाले शब्दों को सुनने के लिए जाने का मन में विचार नहीं करना चाहिए। इसी प्रकार कुलह के स्थान, अपने राज्य के विरोधी स्थान, पर राज्य के विरोधी स्थान, दो राज्यों के परस्पर विरोध के स्थान, वैर के स्थान और वहां पर राजा के विरुद्ध वार्तालाप होता हो इत्यादि स्थानों में होने वाले शब्दों को सुनने के लिए भी जाने का मन में संकल्प न करे। ___ यदि किसी वस्त्राभूषणों से शृंगारित और परिवार से घिरी हुई छोटी बालिका को अश्वादि पर बिठा कर ले जाया जा रहा हो तो उसे देखकर तथा किसी एक अपराधी पुरुष को वध के लिए वध्यभूमि में ले जाते हुए देखकर साधु उन स्थानों में होने वाले शब्दों को सुनने की भावना से उन स्थानों पर जाने का मन में विचार न करे। . जो महा आश्रव के स्थान हैं— जहां पर बहुत से शकट, बहुत से रथ, बहुत से म्लेच्छ, बहुत से प्रान्तीय लोग एकत्रित हुए हों तो साधु साध्वी वहां पर उनके शब्दों को सुनने की प्रतिज्ञा से जाने का मन में संकल्प भी न करे। जिन स्थानों में महोत्सव हो रहे हों, स्त्री, पुरुष, बालक, वृद्ध और युवा आभरणों से विभूषित होकर गीत गाते हों, वाद्य बजाते हों, नाचते और हंसते हों, एवं आपस में खेलते और रतिक्रीड़ा करते हों, तथा विपुल अशन, पान, खादिम और स्वादिम पदार्थों को खाते हों, परस्पर बांटते हों, गिराते हों, तथा अपनी प्रसिद्धि करते हों तो ऐसे महोत्सवों के स्थानों पर होने वाले शब्दों को सुनने के लिए साधु वहां पर जाने का कभी भी संकल्प न करे।