Book Title: Acharang Sutram Part 04
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
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________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 2-1-3-1-6 (450) 261 संजयामेव गामा० दूइज्जिज्जा || 450 // II संस्कृत-छाया : स: भिक्षुः वा० गच्छन् अन्तरा तस्य अराजानि वा, गणराजानि वा, युवराजानि वा द्विराज्यानि वा विराज्यानि वा विरुद्धराज्यानि वा सति लाढे विहारे विद्यमानेषु जनपदेषु नो विहारवृत्तितया० केवली ब्रूयात्-आदानमेतत्, ते बालाः तं एव यावत् ततः संयतः एव ग्रामानुग्रामं गच्छेत् // 450 // III सूत्रार्थ : साधु या साध्वी विहार करते हुए जिस देश में राजा का शासन नहीं है, अथवा अशांतियुक्त गणराज्य है, अथवा केवल युवराज है, जो कि राजा नहीं बना है, दो राजाओं का शासन चलता है, या दो राजकुमारों में परस्पर वैर विरोध है, या राजा तथा प्रजा में परस्पर विरोध है, तो विहार के योग्य अन्य प्रदेश के होते हुए इस प्रकार के स्थानों में विहार करने का संकल्प न करे। साधु को विहार योग्य अन्य स्थानों में विहार करना चाहिए शेष वर्णन पूर्ववत् समझें। IV टीका-अनुवाद : ___ यह सूत्र सुगम है, किंतु अराजा याने जहां राजा का मरण हुआ हो, तथा युवराजा याने जहां अभी भी राजा का राज्याभिषेक न हुआ हो, इत्यादि... ऐसे क्षेत्र में विहार न करें... सुगम है... . v सूत्रसार : प्रस्तुत सूत्र में बताय गया है कि- जिस राज्य में राजा न हो या जिस राज्य में या गणतन्त्र में अशान्ति हो, कलह हो, राज्य प्रबन्ध ठीक न हो, राजा और प्रजा में संघर्ष चल रहा हो, एक ही प्रदेश के दो राजा या दो राजकुमार शासक हों और दोनों में संघर्ष चल रहा हो तो ऐसे देश में साधु को नहीं जाना चाहिए। क्योंकि किसी देश का गुप्तचर आदि समझकर वे लोग उन साधुओं के साथ दुर्व्यवहार कर सकते हैं। इससे स्पष्ट होता है कि- उस युग में भारत में गणराज्य की व्यवस्था भी थी। काशी और कौशल में मल्लवी और लिच्छवी जाति के क्षत्रियों का गणराज्य था। इससे यह भी सिद्ध होता है कि उस समय भी भारत कई प्रान्तों (देशों) में विभक्त था, जिनमें अलग-अलग राजाओं ___ का शासन था और एक दूसरे देश के राजा सीमाओं आदि के लिए परस्पर संघर्ष भी करते रहते थे।