Book Title: Acharang Sutram Part 04
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
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________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 2-1-3-1-6 (459) 283 का भाग ही किया है। वृत्तिकार ने भी इसी बात को पुष्ट किया है। अतः जानु का अर्थ जंघा या गोडे तक पानी का होना ही युक्ति संगत प्रतीत होता है। नदी पार करने के पश्चात् साधु को किस प्रकार चलना चाहिए, इस सम्बन्ध में सूत्रकार महर्षि सुधर्म स्वामी आगे आगे का सूत्र कहतें हैं... I सूत्र // 6 // // 459 / / से भिक्खू वा० गामाणुगामं दूइज्जमाणे नो मट्टियागएहिं पाएहिं हरियाणि छिंदिय, विकुज्जिय विफालिय, उम्मग्गेण हरियवहाए गच्छिज्जा, जमेयं पाएहिं मट्टियं खिप्पमेव हरियाणि अवहरंतु, माइट्ठाणं संफासे, नो एवं करिज्जा, से पुत्वामेव अप्पहरियं मग्गं पडिलेहिज्जा, तओ संजयामेव गामा० / ___ से भिक्खू वा० गामाणुगामं दूइज्जमाणे अंतरा से वप्पाणि वा फ० पा० तो० अ० अग्गलपासगाणि वा गड्डाओ वा दरीओ वा सइ परक्कमे संजयामेव परिक्कमिज्जा, नो उज्जु० केवली०, से तत्थ परक्कममाणे पयलिज्ज वा से तत्थ पयलमाणे वा रुक्खाणि वा गुच्छाणि वा गुम्माणि वा लयाओ वा वल्लीओ वा तणाणि वा गहणाणि वा हरियाणि वा अवलंबिय उत्तरिज्जा, जे तत्थ पाडिपहिया उवागच्छंति ते पाणी जाइज्जा, तओ संजयामेव० अवलंबिय उत्तरिज्जा, तओ संजयामेव गामाणुगामं दूइज्जिज्जा। से भिक्खू वा० गामाणुगामं दूइज्जमाणे अंतरा से जवसाणि वा सगडाणि वा रहाणि वा स चक्काणि वा परचक्काणि वा, से णं वा विरूवरूवं संनिरुद्धं पेहाए सड़ परक्कमे सं, नो उ०, से णं परो सेणागओ वइज्जा- आउसंतो ! एस णं समणे सेणाए अभिनिवारियं करेइ, से णं बाहाए गहाय आगसह, से णं परो बाहाहिं गहाय आगसिज्जा, तं नो सुमणे सिया जाव समाहीए तओ संजयामेव गामाणुगामं दूइज्जिज्जा // 459 // , II संस्कृत-छाया : स: भिक्षुः वा० ग्रामानुग्रामं गच्छन् न मृत्तिकागतैः पादैः हरितानि छित्त्वा छित्त्वा विकुटज्य विकुब्ज्य पाटयित्वा पाटयित्वा उन्मार्गेण हरितवधाय गच्छेत्, यदेनां पादमृत्तिकां शीघ्रमेव हरितानि अपहरन्तु, मातृस्थानं संस्पृशेत्, न च एवं कुर्यात्, सः पूर्वमेव अल्पहरितं मागं प्रत्युपेक्ष्य, तत: संयतः एव गामानुग्रामं गच्छेत्। स: भिक्षुः वा, ग्रामानुग्रामं गच्छन् अन्तरा तस्य वप्राणि वा० अर्गलानि वा