Book Title: Acharang Sutram Part 04
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
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________________ 447 श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका आचाराङ्गसूत्रे श्रुतस्कन्ध-२ चूलिका - 2 अध्ययन - 6 सप्तैककः - 6 म परक्रिया... // अब परक्रिया नामका छट्ठा सप्तैकक-अध्ययन कहतें हैं... पांचवे अध्ययन के बाद इस छडे अध्ययन का परस्पर अभिसंबंध इस प्रकार है... पांचवे अध्ययन में राग एवं द्वेष की उत्पत्ति के निमित्तों का निषेध कहा गया है, अब यहां छठे अध्ययन में भी अन्य प्रकार से वही बात कहतें हैं... अतः इस संबंध से आये हुए इस छठे अध्ययन का नाम “परक्रिया' ऐसा आदान पद है, उनमें “पर” शब्द का छह (6) निक्षेप आधी गाथा से कहतें हैं... नाम-पर, स्थापना-पर, द्रव्य-पर, क्षेत्र-पर, काल-पर, एवं भाव-पर... उनमें नाम एवं स्थापना सुगम है... अब द्रव्य-क्षेत्र-काल एवं भाव-परके प्रत्येक निक्षेप के 6-6 उत्तर भेद होतें हैं... वह इस प्रकार- तत्-पर-१ / अन्य-पर-२ | आदेश-पर-3 | क्रम-पर-४ / बहुपर-५ / एवं प्रधान-पर-६ / इनमें द्रव्यतत्पर याने तद्-रूपता से रहा हुआ जो पर याने अन्य वह तत्पर... जैसे कि- परमाणु का पर परमाणु है... 1. तथा अन्य पर याने अन्य रूप जो पर याने अन्य हो वह अन्यपर... जैसे कि- परमाणु से द्वयणुक त्र्यणुक आदि भिन्न (अन्य) है... इसी प्रकार द्वयणुक से एकाणुकत्र्यणुकादि... 2.. तथा आदेश पर याने जो आदेश-आज्ञा किया जाय वह आदेश.. अब जो कोइ कर्मकर याने सेवक किसी भी क्रिया में नियुक्त किया जाय वह ऐसा जो पर है वह आदेश पर... 3. तथा क्रमपर द्रव्यादि चार प्रकार से होते हे... उनमें द्रव्य से क्रमपर याने एकप्रदेशी द्रव्य से द्विप्रदेशी द्रव्य... इसी प्रकार द्वयणुक से त्र्यणुक... तथा क्षेत्र से क्रम पर याने एक प्रदेशावगाढ से द्विप्रदेशावगाढ इत्यादि... तथा काल से क्रम-पर याने एक समय स्थितिवाले से द्विसमयस्थितिवाला इत्यादि... तथा भाव से क्रम पर याने एकगुणकृष्ण से द्विगुणकृष्ण इत्यादि... 4. तथा बहुपर याने बहुत्व से जो पर है वह बहुपर... अर्थात् जिससे बहु वह उससे बहुपर है... जैसे कि- जीव सभीसे थोडे... पुद्गल अनंतगुण अनंतगुण समय