Book Title: Acharang Sutram Part 04
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
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________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 2-1-1-7-1 (371) 101 जानकर मालापहृत दोषवाले आहारादि प्राप्त होने पर भी साधु उन्हें ग्रहण न करें... तथा वह साधु यदि जाने कि- कोठी से या भूमि में कीये हुए गोलाकार गडे से आहारादि लेकर गृहस्थ दान दे रहा है, तब ऐसे अधोमालाहृत दोषवाले आहारादि का लाभ होने पर भी साधु ग्रहण न करे... अब पृथ्वीकाय के अधिकार को लेकर कहतें हैं... V सूत्रसार : प्रस्तुत सूत्र में बताया गया है कि- समतल भूमि से बहुत ऊपर या नीचे के स्थान पर आहार आदि रखा हो, वह आहार सीढ़ी या चौकी को लगाकर या उसे ऊंचा करे उस पर चढ़कर वहां से आहार को उतार कर दे या इसी तरह नीचे झूक कर, टेढ़ा होकर नीचे के प्रकोष्ठ में रखे हुए पदार्थों को निकाल कर दे तो उन्हें अप्रासुक अकल्पनीय समझ कर ग्रहण नहीं करना चाहिए। यहां अप्रासुक का अर्थ सचित्त नही, परन्तु अकल्पनीय है। उन अचित्त पदार्थों को अकल्पनीय इसलिए कहा गया है कि उक्त विषम स्थान से सीढ़ी, तख्त आदि पर से उतारते समय यदि पैर फिसल जाए या सीढ़ी या तख्त का पाया फिसल जाए तो व्यक्ति गिर सकता है और उससे उसके शरीर में चोट आ सकती है एवं अन्य प्राणियों की भी विराधना हो सकती है। इसी तरह नीचे के प्रकोष्ठ में झुककर निकालने से भी अयतना होने की सम्भावना है, अतः साधु को ऐसे स्थानों पर रखा हुआ आहार-पानी ग्रहण नहीं करना चाहिए। परन्तु, यदि उक्त स्थान पर चढ़ने के लिए सीढियां बनी हों, किसी तरह की अयतना होने की सम्भावना न हो तो ऐसे स्थानों पर स्थित वस्तु कोई यत्नापूर्वक उतार कर दे तो साधु ले सकता है। ‘पीढं वा फलगं वा निस्सेणिं वा आह? उस्सावय दुरुहिज्जा' पाठ से यह सिद्ध होता है कि हिलने-डुलने वाले साधनों पर चढ़कर उन वस्तुओं को उतार कर दे तो साधु को नहीं लेनी चाहिए, क्योंकि उन पर से फिसलने का डर रहता है। परन्तु, स्थिर सीढ़ियों पर से चढ़कर कोई वस्तु उतार कर लाई जाए या किसी स्थिर रहे हुए तख्त आदि पर चढ़कर उन्हें उतारा जाए तो वे अकल्पनीय नहीं कही जा सकतीं। __ इससे यह स्पष्ट होता है कि जिससे आत्म विराधना, संयम विराधना, गृहस्थ की विराधना एवं जीवों की विराधना हो या गृहस्थ को किसी तरह का कष्ट होता हो तो ऐसे स्थान थत पदार्थ को ग्रहण नहीं करना चाहिए। यदि किसी भी तरह की विराधना एवं किसी भी प्राणी को कष्ट नहीं पहंचता हो तो उस स्थान पर स्थित वस्तु साध के लिए ग्राह्य है। यह ध्यान रखने की आवश्यकता है कि साधु के निमित्त किसी भी प्राणी को कष्ट न हो और आत्मा एवं संयम की विराधना भी न हो।