Book Title: Acharang Sutram Part 04
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
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________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 2-1-1-6-2 (366) 87 उस मार्ग से न जावे... तथा अग्रपिंड याने काकपिंडी में बाहार पिंड उछालने पर कौए इकट्ठे हुए हो तब उन्हें देखकर संयत-साधु अन्य मार्ग होने पर उस सीधे मार्ग में न जावे... क्योंकिउस मार्ग से जाने में उन प्राणियों को खाने में (भोजन में) अंतराय होता है... और वे प्राणी यदि अन्य जगह जावे तब उनका वध (मरण) भी हो... इत्यादि दोषों की संभावना है... अब गृहस्थ के घर में प्रवेश करने पर साधु को क्या करना चाहिये वह विधि सूत्रकार * महर्षि आगे के सूत्र से कहेंगे... V सूत्रसार: प्रस्तुत सूत्र में बताया गया है कि- जिस रास्ते में भोजन की कामना से कुक्कुट आदि पक्षी या सूअर आदि पशु बैठे हों या अयपिंड के भक्षणार्थ कौवे आदि एकत्रित होकर बैठे हों तो अन्य रास्ते के होते हुए मुनि को उन्हें उल्लंघकर उस रास्ते से नहीं जाना चाहिए। क्योंकि मुनि को देखकर वे पशु-पक्षी भय के कारण इधर-उधर भाग जाएंगे या उड़ जाएंगे। इससे उन्हें प्राप्त होने वाले भोजन में अंतराय पडेगी और साधु के कारण उनके उडने या भागने से अन्य प्राणियों की हिंसा होगी। और कभी वे पशु जंगल में भाग गए और हिंसक जन्तु की लपेट में आ गए तो उनका भी वध हो जाएगा। अतः साधु को जहां तक अन्य पथ हो तो ऐसे रास्ते से आहार आदि के लिए नहीं जाना चाहिए। इससे स्पष्ट हो जाता है कि- साधु का जीवन दया एवं रक्षा की भावना से कितना ओत-प्रोत होता है। यही साधुता का आदर्श है कि- उसका जीवन प्रत्येक प्राणी के हित की भावना से भरा है। साधु स्वयं कष्ट सह लेता है, परन्तु अन्य प्राणी को कष्ट नहीं देता। ... गृहस्थ के घर में प्रवेश करने के बाद साधु को वहां किस वृत्ति से खड़े होना चाहिए, इस सम्बन्ध में उल्लेख करते हुए सूत्रकार महर्षि आगे का सूत्र कहते हैंI सूत्र || 2 || || 366 || से भिक्खू वा, जाव नो गाहावइकुलस्स वा दुवारसाहं अवलंबिय अवलंबिय चिद्विज्जा, नो गाहा दगच्छडुणमत्तए चिट्ठिज्जा, नो गाहा चंदणिउयए चिट्ठिजा, नो गाहा सिणाणस्स वा वच्चस्स वा संलोए सपडिदुवारे चिट्ठिजा, नो आलोयं वा थिग्गलं वा संधि वा दगभवणं वा बाहाओ पगिज्झिय अंगुलियाए वा उद्दिसिय उण्णमिय अवनमिय निज्झाइजा, नो गाहावड़ अंगुलियाए उद्दिसिय जाइज्जा, नो गाहा, अंगुलियाए चालिय, जाइज्जा, नो गाहा, अंगुलिए तज्जिय तजिय जाइज्जा, नो गाहा, अंगुलिए उपखुलंपिय जाइजा, नो गाहावई वंदिय जाइज्जा, नो वयणं फरुसं वइज्जा / / 380 ||