Book Title: Acharang Sutram Part 04
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
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________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 2-1-3-3-1 (461) 291 (भोयरे) वृक्ष विशेषवाले घर या वृक्ष के उपर रहे हुए घर तथा पर्वत के गुफा स्वरुप घर, तथा वृक्ष के नीचे व्यंतर आदि देव के मंदिर या स्तूप, कि- जो व्यंतरादि देवों ने बनाये हुए है उनके प्रति हाथ उंचा करके या अंगुली लंबी करके न देखें और न अन्य को बतावें... तथा शरीर को नीचा करके या उंचा करके भी न देखें, न दिखलावें... क्योंकि- यहां दग्ध और मुषितादि दोष के प्रसंग में साधु के उपर आशंका होवे अथवा यह साधु जितेन्द्रिय नहि है इत्यादि शंका हो शकती है... अथवा वहां रहे हुए पशु-पक्षीओं का समूह संत्रास याने भयभीत होवें... इत्यादि दोषों के भय से साधु संयमी होकर हि विचरें... विहार करें... तथा साधु जब यामांतर जावे तब मार्ग में निम्न कच्छ याने नदी के पासवाले निम्न भूमी प्रदेश या मूले एवं रींगण आदि की वाडी, तथा अटवी में घास के लिये राजकुल ने अपने ताबे में रखी हुइ भूमी,, तथा गर्ता याने गडे... वलय याने नदी आदि से वेष्टित भूमी-प्रदेश... गहन याने निर्जल ऐसा वन प्रदेश... तथा गुंजालिका याने लंबे उंडे (गहरे) एवं टेढे-मेढे वांके जलाशय, सरोवर की पंक्ति, तथ परस्पर जुडे हुए अनेक सरोवरों की पंक्ति, इत्यादि को बाहु उंचा करके न दिखलावें और स्वयं भी न देखें... क्योंकि- केवली भगवान कहतें हैं कि- ऐसा करने से कर्मबंध होता है... कारण कि- वहां रहे हुए पक्षी, पशु एवं सर्प-घो-नउले आदि भयभीत होतें हैं, और वहां रहनेवाले लोगों को भी साधु के उपर शंका होवे... इसलिये साधुओं को पूर्व कही गइ प्रतिज्ञा है कि- साधु ऐसा अनुचित कार्य न करें... किंतु आचार्य उपाध्याय आदि गीतार्थ साधुओं के साथ विहार करें... अब आचार्यादि के साथ जा रहे साधुओं को जो विधि होती है वह यहां कहतें हैं... v सूत्रसार : प्रस्तुत सूत्र में बताया गया है कि- साधु को विहार करते समय रास्ते में पड़ने वाले दर्शनीय स्थलों को अपने हाथ ऊपर उठाकर या अंगुलियों को फैलाकर या कुछ ऊंचा होकर या झक कर नहीं देखना चाहिए। इसका तात्पर्य यह है कि- इससे वह अपने गन्तव्य स्थान पर कुछ देर से पहुंचेगा, जिससे उसकी स्वाध्याय एवं ध्यान साधना में अन्तराय पड़ेगी और किसी सुन्दर स्थल को देखकर साधु के मन में विकार भाव कुतूहत भी जाग सकता है और उसे इस तरह झुककर या ऊपर उठकर ध्यान से देखते हुए देखकर किसी के मन में साधु के प्रति सन्देह भी उत्पन्न हो सकता है। यदि संयोग से उस दिन या उस समय के आसपास उक्त स्थान में आग लग जाए या चोरी हो जाए तो वहां के अधिकारी लोग उस साधु पर दोषारोपण भी कर सकते हैं। अतः इन सब दोषों से बचने के लिए साधु को मार्ग में पड़ने वाले दर्शनीय स्थलों की ओर अपना ध्यान न लगाकर यत्नापूर्वक अपना रास्ता तय करना चाहिए।