Book Title: Acharang Sutram Part 04
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
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________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 2-1-2-1-7 (404) 183 सुगम है... V सूत्रसार : प्रस्तुत सूत्र में भी गृहस्थ के साथ गृहवास करने का निषेध किया गया है और बताया गया है कि उसके साथ निवास करने से मन विभिन्न संकल्प विकल्पों में चक्कर काटता रहेगा। कभी गृहस्थ दीपक प्रज्वलित करेगा और कभी जलते हुए दीपक को बुझा देगा। उसके इन कार्यों से साधु की साधना में रुकावट पड़ने के कारण उसके मन में ऊंचे-नीचे संकल्पविकल्प उठ सकते हैं। इन सब संकल्प-विकल्पों से बचने के लिए साधु को गृहस्थ के साथ नहीं ठहरना चाहिए। ___ इस संबन्ध में सूत्रकार और भी बताते हुए सूत्रकार महर्षि सुधर्म स्वामी आगे का सूत्र कहतें हैं... I सूत्र // 7 // // 404 // आयाणमेयं भिक्खुस्स गाहावईहिं सद्धिं संवसमाणस्स, इह खलु गाहावइस्स कुंडले वा गुणे वा मणी वा मुत्तिए म हिरण्णेसु वा सुवण्णेसु वा, कडगाणि वा तुडियाणि वा तिसराणि वा पालंबगाणि वा हारे वा अद्धहारे वा एगावली वा कणगावली वा मुत्तावली वा रयणावली वा तरुणीयं कुमारिं वा अलंकियविभूसियं पेहाए, अह भिक्खू उच्चाव० एरिसिया वा सा, नो वा एरिसिया, इय वा णं बूया, इय वा णं मणं साइज्जा, अह भिक्खूणं पूव्यो०, जं तहप्पगारे उवस्सए नो ठाणं० // 404 // II * 'संस्कृत-छाया : . आदानमेतत् भिक्षोः गृहपत्यादिभिः सार्द्ध संवसतः, इह खलु गृहपत्यादेः कुण्डले आ वा रसना वा मणी वा मौक्तिकः वा हिरण्येषु वा सुवर्णेषु वा कटकानि वा शुटितानि वा त्रिसराणि वा प्रालम्बकानि वा हारः वा अर्द्धहारः वा एकावली वा कनकावली वा मुयतावली वा रत्नावली वा तरुणिकां वा कुमारिकां वा अलङ्कृतविभूषितां प्रेक्ष्य, अथ भितः उच्चावचं० एतादृशी वा सा न वा एतादृशी इति वा ब्रूयात्, इति वा मनः कुर्यात्, अथ भिक्षूणां पूर्वोप०, यत् तथाप्रकारे उपाश्रये न स्थाo || 404 / / -III सूत्रार्थ : गृहस्थ के साथ ठहरना भिक्षु के लिए कर्म बन्धन का कारण है। जो भिक्षु गृहस्थ के साथ बसता है उसमें निम्नलिखित कारणों से राग-द्वेष के भावों का उत्पन्न होना संभव है। यथा-गृहपति के कुण्डल, या धागे में पिरोया हुआ आभरण विशेष, मणि, मुक्ता-मोती,