Book Title: Acharang Sutram Part 04
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
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________________ 528 2-3-32 (540) श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन अपवाद मार्ग में साधु सरस आहार ग्रहण कर सकता है। परन्तु उत्सर्ग मार्ग में ब्रह्मचर्य की रक्षा के लिए उसे सरस आहार नहीं करना चाहिए। ब्रह्मचर्य की सुरक्षा के लिए साधु को स्त्री, पशु एवं नपुंसक से रहित मकान में ठहरना चाहिए। क्योंकि स्त्री आदि का अधिक संसर्ग रहने से मन में विकारों की जागृति होना संभव है। इससे उसकी साधना का मार्ग अवरुद्ध हो जाएगा। अतः साधु को इनसे रहित स्थान में ही ठहरना चाहिए। इस तरह चौथे महाव्रत के सम्बन्ध में दिए गए आदेशों का आचरण करना तथा उनका सम्यक्तया परिपालन करना ही चौथे महाव्रत की आराधना करना है और इस तरह उसका परिपालन करने वाला निर्ग्रन्थ-साधु ही आत्मा का विकास कर सकता है। ___ अब पांचवें महाव्रत का उल्लेख करते हुए सूत्रकार महर्षि सुधर्म स्वामी आगे का सूत्र कहते हैं..... I सूत्र // 32 // // 540 // अहावरं पंचमं भंते ! महव्वयं सव्वं परिग्गहं पच्चक्खामि, से अप्पं वा बहुं वा अणुं वा थूलं वा चित्तमंतं वा अचित्तमंतं वा, नेव सयं परिग्गहं गिण्हिज्जा, नेवण्णेहिं परिग्गहं गिण्हाविज्जा, अण्णं पि परिग्गहं गिण्हतं न समणुजांणिज्जा, जाव वोसिरामि, तस्सिमाओ पंच भावणाओ भवंति। तत्थिमा पढमा भावणा- सोयओऽणं जीवे मणुण्णाऽमणुण्णाई सद्दाइं सुणेड़, मणुण्णामणुण्णेहिं सद्देहिं नो सज्जिज्जा नो रज्जिज्जा नो गिज्झिज्जा नो मुज्झिज्जा नो अज्झोववज्जिज्जा नो विणिघायमावज्जेज्जा, के वली बूया- णिग्गंथे णं मणुण्णामणुण्णेहिं सद्देहिं सज्जमाणे रज्जमाणे जाव विणिघायमावज्जमाणे संतिभेया संतिविभंगा संति केवलीपण्णत्ताओ धम्माओ भंसिज्जा, न सयका न सोउं सद्दा सोतविसयमागया। रागदोसा उ जे तत्थ, ते भिक्खू परिवज्जए // सोयओ जीवे मणुण्णामणुण्णाइं सद्दाइं सुणेड़ इइ पढमा भावणा। अहावरा दुच्चा भावणा-चक्खूओ जीवे मणुण्णामणुण्णाई रूवाइं पासइ, मणुण्णामणुण्णेहिं रूवेहिं सज्जमाणे जाव विणिघायमावज्जमाणे संतिभेया जाव भंसिज्जा, न सक्का रुवमटुं चक्खुविसयमागयं / रागदोसा उ जे तत्थ, ते भिक्खू परिवज्जए / चक्खूओ जीवे मणुण्णामणुण्णाई रुवाइं पासइ इइ दुच्चा भावणा।। अहावरा तच्चा भावणा-घाणओ जीवे मणुण्णामणुण्णाई गंधाई अग्घायड़,