Book Title: Acharang Sutram Part 04
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
View full book text
________________ 2-1-1-11-3 (396) श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन CM - 3 1. संसृष्ट हाथ संसृष्ट पात्र निरवशेष द्रव्य संसृष्ट हाथ संसृष्ट पात्र सावशेष द्रव्य संसृष्ट हाथ असंसृष्ट पात्र निरवशेष द्रव्य 4. संसृष्ट हाथ असंसृष्ट पात्र सावशेष द्रव्य असंसृष्ट हाथ संसृष्ट पात्र निरवशेष द्रव्य असंसृष्ट हाथ संसृष्ट पात्र सावशेष द्रव्य 7. असंसृष्ट हाथ असंसृष्ट पात्र निरवशेष द्रव्य 8. असंसृष्ट हाथ असंसृष्ट पात्र सावशेष द्रव्य इसी प्रकार सात पानेषणा और आठ भंग जानीयेगा... किंतु चौथी पानैषणा में विभिन्नता है... क्योंकि- यहां जल स्वच्छ होने से अल्पलेपता है... अतः संसृष्ट आदि का अभाव है... इन एषणाओं में उत्तरोत्तर विशुद्धि की तरतमता होती है इसलिये इस प्रकार के उनका अनुक्रम उचित हि है... अब इन एषणाओं का अभिग्रह लेनेवाले एवं पूर्वकाल में अभियह लीये हुए साधुओं को जो करना चाहिये वह कहतें हैं... सूत्रसार : प्रस्तुत सूत्र में विशिष्ट अभिग्रहधारी मुनियों के सात पिंडेषणा एवं सात पानैषणा का वर्णन किया गया है। इसमें आहार एवं पानी ग्रहण करने के एक जैसे ही नियम हैं। ये सातों एषणाएं इस प्रकार हैं अलिप्त हाथ एवं अलिप्त पात्र से आहार ग्रहण करना प्रथम पिण्डैषणा है और अलिप्त हाथ एवं अलिप्त पात्र से पानी ग्रहण करना प्रथम पानैषणा है। लिप्त हाथ और लिप्त पात्र से आहार ग्रहण करना द्वितीय पिण्डैषणा है और ऐसी ही विधि से पानी ग्रहण करना द्वितीय पानैषणा है। अलिप्त हाथ और लिप्त पात्र या लिप्त हाथ और अलिप्त पात्र से आहार एवं इसी विधि से पानी ग्रहण करना तृतीय पिण्ड एवं पानैषणा है। साधु को आहार देने के बाद सचित्त जल से हाथ या पात्र आदि धोने या पुनः आहार बनाने आदि का पश्चात्कर्म नहीं करना चतुर्थ पिण्डैषणा है, इसी तरह पानी देने के बाद भी पश्चात् कर्म नहीं लगाना चतुर्थ पानैषणा है। इसमें तिल, तुष, यव (जौ) का धोवन, आयाम-जिस पानी में गर्म वस्तु ठण्डी की जाती है, कांजी का पानी और उष्ण