Book Title: Acharang Sutram Part 04
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
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________________ 340 2-1-5-1-2 (476) श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन किया जा सकता था। आगम में भी ऐसे वस्त्राभूषणों का उल्लेख मिलता है कि- जो वजन में हल्के और बहुमूल्य होते थे। इससे उस युग की शिल्प कला की उन्नति का स्पष्ट परिचय मिलता है। इस (वस्त्र के) विषय को और स्पष्ट करते हुए सूत्रकार महर्षि सुधर्म स्वामी आगे का सूत्र कहतें हैं... . I सूत्र // 2 // // 476 // से भि० परं अद्धजोयणमेराए वत्थ पडिया० नो अभिसंधारिज्जा गमणाए / / 476 // II संस्कृत-छाया : सः भि० परं अर्ध-योजनमर्यादायां वस्त्रप्रति० न अभिसन्धारयेत् गमनाय / / 476 // III सूत्रार्थ : साधु या साध्वी को वस्त्र की याचना करने के लिए आधे योजन से आगे जाने का विचार नहीं करना चाहिए। IV टीका-अनुवाद : वह साधु या साध्वीजी म. वस्त्र की गवेषणा के लिये आधे योजन के उपर जाने का मन न करें... V सूत्रसार: - प्रस्तुत सूत्र में वस्त्र ग्रहण करने के लिए क्षेत्र मर्यादा का उल्लेख किया गया है। साधु या साध्वी को आधे योजन से आगे के क्षेत्र में जाकर वस्त्र लाने का संकल्प भी नहीं करना चाहिए। जैसे आगम में साधु-साध्वी को आधे योजन से आगे का लाया हुआ आहार-पानी करने का निषेध किया गया है, उसी तरह प्रस्तुत सूत्र में क्षेत्र का अतिक्रान्त करके वस्त्र ग्रहण करने का भी निषेध किया गया है। वृत्तिकार ने केवल शब्दों का अर्थ मात्र किया है। यह नहीं बताया कि यह आदेश . सामान्य सूत्र से सम्बद्ध है या अभिग्रह विशेष से। . इस विषय पर और प्रकाश डालते हुए सूत्रकार महर्षि सुधर्म स्वामी आगे का सूत्र