Book Title: Acharang Sutram Part 04
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
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________________ 342 2-1-5-1-4 (478) श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन है कि इस प्रकरण को पिंडैषणा के प्रकरण की तरह समझना चाहिए। अर्थात् साधु को सदा . निर्दोष वस्त्र ही ग्रहण करना चाहिए। - अब उत्तर गुणों की शुद्धि को रखते हुए वस्त्र ग्रहण की मर्यादा का उल्लेख करते हुए सूत्रकार महर्षि आगे का सूत्र कहतें हैं... I सूत्र - // 4 // // 478 // से भि0 से ज० असंजए भिक्खुपडियाए कीयं वा धोयं वा रत्तं वा घटुं वा मटुं वा, संपधूमियं वा, तहप्पगारं वत्थं अपुरिसंतरकडं जाव नो० अह पु० पुरिसं० जाव पडिगाहिज्जा // 478 // II संस्कृत-छाया : स: भि० स: यत्० असंयत: भिक्षुप्रतिज्ञया कृतं वा धोतं वा रक्तं वा घृष्टं वा मृष्टं वा संप्रधूमितं वा, तथाप्रकारं वयं अपुरुषान्तरकृतं यावत् न० अथ पुनः० पुरुषान्तरण यावत् प्रतिगृह्णीयात् // 478 // . III सूत्रार्थ : संयमशील साधु या साध्वी को वस्त्र के विषय में यह जानना चाहिए कि यदि किसी गृहस्थ ने साधु के लिए वस्त्र खरीदा हो, धोया हो, रंगा हो, घिस कर साफ किया हो, शृंगारित किया हो या धूप आदि से सुगन्धित किया हो और वह पुरुषान्तरकृत नहीं हुआ हो तो साधु साध्वी उसे ग्रहण न करे। यदि वह पुरुषान्तर कृत हो गया हो तो साधु-साध्वी उसे ग्रहण कर सकते हैं। IV टीका-अनुवाद : साधुओं के लिये यदि गृहस्थ वस्त्र खरीद कर लावें या धोकर लावें तो वे अपुरुषांतर कृत होने से साधु उन वस्त्रादि को ग्रहण न करें... किंतु यदि वह गृहस्थ अन्य पुरुष के लिये स्वीकार करके साधु को दे तब साधु उन वस्त्रादि को ग्रहण करें यह यहां सारांश है... V सूत्रसार : . प्रस्तुत सूत्र में उत्तर गुण में लगने वाले दोषों से बचने का आदेश दिया गया है इस में बताया गया है कि जो वस्त्र साधु के लिए खरीदा गया हो, धोया गया हो, रङ्गा गया हो, अच्छी तरह से रगड़ कर साफ किया गया हो, शृङ्गारित किया गया हो या धूप आदि से सुवासित बनाया गया हो तो साधु को वैसा वस्त्र ग्रहण नहीं करना चाहिए। यदि इस तरह का वस्त्र